भूस्खलन क्या है? भूस्खलन के कारण, परिणाम, बचाव

भूस्खलन क्या है (bhuskhalan kya hai – 

भूस्खलन (bhuskhalan) एक वैज्ञानिक घटना है, जिसके अंतर्गत भारी वर्षा, बाढ़ या भूकंप के कारण आधारहीन हुई चट्टाने, मिट्टी एवं वनस्पति पहाड़ी ढलानों से गुरुत्वाकर्षण शक्ति के प्रभाव में अपने स्थान से खिसककर नीचे गिरते हैं। इस तरह की घटना प्राय: पहाड़ी इलाकों में विशेष रूप से घटित होती है। 

भूस्खलन (landslide) के लिए जिम्मेदार कारकों में प्राकृतिक एवं मानवीय दोनों ही कारक महत्वपूर्ण है। इनमें प्राकृतिक कारकों के अंतर्गत भारी वर्षा, पर्वतों का तीव्र ढलान, चट्टानों की कच्ची परते, पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति, पहाड़ी नदियों द्वारा होने वाला अपरदन, भूकंप गतिविधियां आदि आते हैं।

जबकि मानवीय कारको के अंतर्गत पहाड़ों पर खुदाई, खनन क्रियाएं, वनों की अंधाधुंध कटाई, कच्चे चट्टानों के ऊपर भारी निर्माण कार्य आदि कारक शामिल है, जो भूस्खलन की  प्रक्रिया को और तीव्र कर देते हैं।  

भूस्खलन के प्रकार (bhuskhalan ke prakar) –

भूस्खलन के प्रमुख प्रकार इस प्रकार हैं – स्लाइड्स, फॉल्स, प्रवाह, मलबे का प्रवाह, मलबे हिमस्खंलन, पृथ्वी प्रवाह, मड फ्लो, रेंगना, टोपल्स, फैलाव आदि!

भूस्खलन के कारण (bhusankhalan ke karan) –

(1) तीव्र ढाल –

पर्वतीय तथा समुद्री तटीय क्षेत्रों में तीव्र ढाल भू-स्खलन की घटनाओं की तीव्रता में कई गुना वृद्धि कर देता है! ढाल अधिक होने तथा गुरुत्वाकर्षण बल के कारण पहाड़ी ढलानों का कमजोर भाग तीव्र गति से सरककर नीचे आ जाता है!

(2) जल –

जल भू-स्खलन की घटनाओं के प्रमुख कारकों में से एक है! जब ऊपरी कठोर चट्टान की परत के नीचे कोमल शैलों (चटटान) का स्तर पाया जाता है तब वर्षा होने के कारण दरारों के माध्यम से जब जल कोमल शैल में प्रवेश कर जाता है! जिस कारण कोमल शैल फिसलन जैसी परत में बदल जाते हैं! परिणामस्वरूप ऊपरी शैल स्तर सरककर नीचे आ जाता है!

(3) अपक्षय तथा अपरदन –

क्ले माइका, क्ले साइट, जिप्सम आदि खनिज पदार्थों की अधिकता वाली चट्टानों में अपक्षय तथा अपरदन की क्रिया तीव्र गति से होती है! जिस कारण चट्टानों में मिश्रित खनिज तत्वों के पानी घुलने (अपक्षय) तथा अपरदन की क्रिया के कारण इन क्षेत्रों में भूस्खलन की घटनाएं होती रहती है!

(4) वनों की कटाई –

मानव ने अपने आर्थिक स्तर में सुधार हेतु वनों का तेजी से कटाव किया है! वनस्पति की जड़े मिट्टी की ऊपरी परत को जकड़ कर रखती है, जिस कारण मृदा के अपरदन एवं बहाव की दर बहुत कम होती है! परंतु वनों की कटाई के कारण क्षेत्र विशेष की मिट्टी ढीली पड़ जाती है और साथ ही अपरदन की क्रिया में तीव्र गति से घटित होती है! परिणामस्वरूप भू-स्खलन की घटना को बल मिलता है!

(5) निर्माण कार्य –

निर्माण कार्य भी भूस्खलन के कारणों में से एक है! पहाडी़ ढालों पर कटान द्वारा सड़क और रेल लाइनों का निर्माण किया जाता हैं! जिसके कारण पहाड़ी ढाल कमजोर व अस्थिर हो जाते हैं, और वह लैंडस्लाइड में सहायता करते हैं! बरसात में यह लैंडस्लाइड और भी तीव्र हो जाता हैं! 

(6) गुरूत्वाकर्षण बल – 

गुरुत्वाकर्षण के कारण भी भूस्खलन होता है! खडी़ और बडी चटटाने भी गुरूत्वाकर्षण बल के कारण खिसक जाती हैं! इस प्रकार की घटनाएं पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक होती हैं! 

भूस्खलन के प्रभाव (bhuskhalan ke prabhav) –

भूस्खलन का प्रभाव क्षेत्र अपेक्षाकृत छोटा एवं स्थानीय होता है, परंतु अपनी तीव्रता एवं बारंबारता के कारण यह विध्वंसकारी सिद्ध होते हैं। उदाहरण के लिए जून 2013 में उत्तराखंड में भारी वर्षा, बादल फटने, ग्लेशियर एवं अन्य हिम क्षेत्रों के पिघलने से बर्फ से भारी मात्रा में जल निकासी के कारण लैंडस्लाइड बड़ी घटना घटित हुई।

इससे सैकड़ों लोगों की मृत्यु हो गई और हजारों लोग फस गए एवं जन धन की अपार क्षति हुई। भूस्खलन की वजह से पर्वतीय ढलानो पर निर्मित भवन एवं अन्य निर्माण कार्य (सड़क, पुल आदि) पूरी तरह से ध्वस्त हो जाते हैं, जिससे क्षेत्र विशेष में विकास कार्य बाधित होता है। 

भू-स्खलन से बचाव के उपाय (bhuskhalan se bachne ke upay) – 

भूस्खलन से बचाव हेतु निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं-

(1) इन क्षेत्रों में पेड़ लगाकर तथा जल के बहाव को रोकने हेतु छोटे बांध बनाकर लैंडस्लाइड को कम किया जा सकता है। 

(2) इन क्षेत्रों में कृषि का कार्य नदी घाटी तथा कम ढाल वाले क्षेत्रों तक सीमित होना चाहिए।

(3) पानी के निकास का उचित प्रबंधन ताकि पानी का रिसाव पहाड़ी को सुभेध ना बना दे। ऐसी स्थिति में पहाड़ी में भूस्खलन की आशंका बढ़ सकती है 

(4) कटाव व भराव वाले स्थानों पर भवन निर्माण नहीं करना चाहिए । 

(5) पहाड़ी क्षेत्रों में सामान्यतया ढलानो वाली भूमि होती है एवं समतल भूमि कम से कम मिलती है। ऐसी स्थिति में ढलान को सुदृढता प्रदान करना जरूरी है जैसे मृदा अपरदन को रोकने के लिए पौधे,घास, वृक्ष एवं झाड़ियां लगाना ।

(6) आवास का निर्माण नदी से अपेक्षित दूरी बनाकर करना चाहिए। 

(7) भूस्खलन प्रवण क्षेत्र में भवनों को समतल भूमि पर बनाना चाहिए, न की किसी ढाल वाली भूमि पर। 

(8) लैंडस्लाइड प्रभावित क्षेत्र का मानचित्र बनाकर उसे अंकित करना, ताकि उस स्थान को माननीय आवास तथा अन्य गतिविधियों के लिए छोड़ा जा सकता हैं।

(7) भू-स्खलन प्रवण क्षेत्रों में सड़क तथा बड़े बांधों का निर्माण के क्रम में अपेक्षित सतर्कता जरूरी है एवं यह भी सुनिश्चित करना आवश्यक है कि वहां अवैज्ञानिक विकास कार्य ना हो!

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