ज्वालामुखी किसे कहते हैं (jwalamukhi kise kahate hain) –
“ज्वालामुखी (jwalamukhi) गोल आकार का छिद्र अथवा दरार है जिसमें से होकर भूगर्भ की तरल चट्टाने, राख, गैस, चट्टानों के टुकड़े आदि का उद्धार होता है!”
ज्वालामुखी वह छिद्र है जिसमें से लावा, राख, जलवाष्प, का उदगार होता है! ज्वालामुखी क्रिया के अंतर्गत पृथ्वी के आंतरिक भाग में मैग्मा एवं गैस उत्पन्न होने से लेकर भू-पटल के नीचे व ऊपर लावा के प्रकट होने तथा शीतल की जाती है! लावा का यह उद्गार केंद्रीय के रूप में दरारें उद्भेदन के रूप में हो सकता है! मैग्मा में सिलिका की मात्रा अधिक होने पर ज्वालामुखी उद्गार देखे जाते हैं!
अब तक के इतिहास में दर्ज सबसे तेज आवाज क्राकाटोआ ज्वालामुखी के फटने के कारण सुनी गई है! क्राक्राटोआ ज्वालामुखी इंडोनेशिया में स्थित है!
ज्वालामुखी के प्रकार (jwalamukhi ke prakar)-
सक्रियता के आधार पर ज्वालामुखी को निम्नलिखित तीन श्रेणियों में बांटा जाता है –
(1) सक्रिय ज्वालामुखी (sakriya jwalamukhi) –
वैसे ज्वालामुखी जिनसे लावा, गैस तथा विखंडित पदार्थ सदैव निकलते रहते हैं, सक्रिय ज्वालामुखी कहलाते हैं! वर्तमान में इनकी संख्या लगभग 500 है!
सक्रिय ज्वालामुखी के उदाहरण है (sakriya jwalamukhi ka udaharan) –
इनमें सिसली के उत्तर में लिपारी द्वीप का पास स्ट्राम्बोली (भूमध्य सागर का प्रकाश स्तंभ), इटली का एटना, इक्वेडोर का कोटोपैक्सी (विश्व का सबसे ऊँचा सक्रिय ज्वालामुखी), अंटार्कटिका का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी माउंट एरेबस तथा अंडमान व निकोबार के बैरन द्वीप में सक्रिय ज्वालामुखी प्रमुख हैं!
(2) सुषुप्त ज्वालामुखी (susupt jwalamukhi) –
वैसे ज्वालामुखी जो वर्षों से सक्रिय नहीं है परंतु कभी भी सक्रिय हो सकता है, सुषुप्त ज्वालामुखी कहलाते हैं!
सुषुप्त ज्वालामुखी का उदाहरण (susupt jwalamukhi ke udaharan) –
इनमें इटली का विसुवियस, जापान का फ्यूजीयामा, इंडोनेशिया का क्राक्राताओं तथा अंडमान व निकोबार के नारकोंडम द्वीप के ज्वालामुखी उल्लेखनीय है!
(3) मृत ज्वालामुखी (mrit jwalamukhi) –
वैसे ज्वालामुखी जिनमें हजारों वर्षों से उदभेदन नहीं हुआ है तथा भविष्य में इसकी कोई संभावना नहीं है, मृत ज्वालामुखी कहलाते हैं!
मृत ज्वालामुखी के उदाहरण (mrit jwalamukhi ke udaharan) –
अफ्रीका के पूर्व भाग में स्थित केनिया व किलिमंजारो, इक्वेडोर का चिम्बाराजो, म्यांमार का पोपा, ईरान का देमबंद व कोहसुल्तान एवं एंडीज पर्वत श्रेणी का एकांकगुआ इसके प्रमुख उदाहरण है!
लावा की तरलता के आधार पर ज्वालामुखी दो प्रकार के होते हैं –
(1) क्षारीय लावा के ज्वालामुखी
(2) अम्लीय लावा के ज्वालामुखी
ज्वालामुखी के कारण (jwalamukhi ke karan) –
ज्वालामुखियों का जन्म पृथ्वी की आंतरिक भागों में होता है जिसे हम प्रत्यक्ष रुप से नहीं दे पाते हैं, अतः ज्वालामुखी विस्फोट के विभिन्न चरणों को ढूंढने के लिए हमें बाहरी तत्वों का सहारा लेना पड़ता है, इन बाहरी तत्वों के आधार पर ज्वालामुखी विस्फोट के लिए उत्तरदाई जिन कारणों का पता चलता है, वह इस प्रकार है –
(1) भू-गर्भ में अत्यधिक ताप का होना –
पृथ्वी के भूगर्भ में अत्याधिक तापमान होता है. यह उच्च तापमान वहां पर पाए जाने वाले रेडियोधर्मी पदार्थों के विघटन, रासायनिक प्रक्रमों तथा ऊपरी दबाव के कारण होता है, सामान्यतः 32 मीटर की गहराई पर 1° C तापमान बढ़ जाता है!
इस प्रकार अधिक गहराई पर पदार्थ पिघलने लगता हैं और पिघला हुआ पदार्थ जब गैसीय अवस्था में आता हैं तो गैस हल्की होने के कारण ऊपर उठती हैं और धरातल के कमजोर भागों को तोडकर वह बाहर निकल आती हैं, जिसके कारण ज्वालामुखी विस्फोट होता है!
(2) कमजोर भूभाग का होना –
ज्वालामुखी विस्फोट के लिए कमजोर भू भागों का होना अति आवश्यक है, ज्वालामुखी पर्वतों का विश्व वितरण देखने से स्पष्ट हो जाता है कि संसार के कमजोर भू-भागों में ज्वालामुखी का निकट संबंध है, प्रशांत महासागर के तटीय भाग, पश्चिम द्वीप समूह और एंडीज पर्वत क्षेत्र इस तथ्य का प्रमाण देते हैं!
(3) गैसों की उपस्थिति –
ज्वालामुखी विस्फोट के लिए गैसों की उपस्थिति, खासकर जलवाष्प की उपस्थिति महत्वपूर्ण हैं, वर्षा का जल भू-पटल के दरारों तथा रंध्रों द्वारा पृथ्वी की आंतरिक भागों में पहुंच जाता है और वहां पर अधिक तापमान के कारण जलवाष्प में बदल जाता है,
समुद्र तट के नजदीकी समुद्री जल भी रिसकर नीचे की ओर चला जाता है जलवाष्प बन जाता है जब जलवाष्प बनता है तो उसका आयतन एवं दबाव काफी बढ़ जाता है, अत: वह भू-तल पर कोई कमजोर स्थान पाकर विस्फोट के साथ बाहर निकल आता है, जिसे ज्वालामुखी कहते हैं!
(4) भूकंप –
भूकंप के कारण भूपृष्ठ में विकार उत्पन्न हो जाते हैं और उनमें भ्रंश पड जाते हैं! इन भ्रंशों से पृथ्वी के आंतरिक भाग में उपस्थित मैग्मा धरातल पर आ जाता हैं और ज्वालामुखी विस्फोट होता हैं!
ज्वालामुखी के प्रभाव (jwalamukhi ke prabhav) –
ज्वालामुखी का मानव जीवन पर प्रभाव इस प्रकार हैं –
ज्वालामुखी के सकारात्मक प्रभाव (jwalamukhi ke Sakaratmak parinam) –
(1) नवीन स्थलाकृतियों का निर्माण
(2) वैश्विक तापन को कम होना
(3) उपजाऊ मृदा का निर्माण
(4) पृथ्वी की आंतरिक संरचना की जानकारी प्राप्त होना
ज्वालामुखी के हानिकारक प्रभाव (jwalamukhi ke hanikarak prabhav) –
ज्वालामुखी उद्गार के समय बड़ी मात्रा में तप्त लावा, ठोस, शैलखंड, विषैली गैस आदि भूमि पर तथा वायुमंडल में फैल जाते हैं और मानवकृत संरचनाओं (भवन, सड़क, रेलमार्ग, औद्योगिक इकाइयां आदि) जीव-जंतुओं तथा प्राकृतिक पर्यावरण को भारी क्षति पहुंचाते हैं! इससे जन-धन की अपार क्षति होती है!
(1) ज्वालामुखी का लावा जब तेजी से आगे बढ़ता है, तो मार्ग में आने वाले प्रत्येक वस्तु, जैसे – मानवकृत रचनाएं, कृषि क्षेत्र एवं चारागाह आदि का विनाश कर देता है! नदियों एवं झीलों में भी लावा भर जाता है और जंगलों में भी आग लग जाती है!
(2) प्राय: ज्वालामुखी उद्गार के कारण भूकंप भी आते हैं, जो लोगों की मृत्यु का कारण बनते हैं! जब भी ज्वालामुखी उद्गार से समुद्र में सुनामी आती है तो ऊंची ऊंची लहरें उठती है और तटवर्ती इलाकों में हजारों लोगों को वह आकर ले जाती है, इससे जनधन की व्यापक पैमाने पर हानि होती है!
(3) ज्वालामुखी से निसृप्त पदार्थ जैसे शैल पिंड, धूल, राख आदि कुछ समय तक वायुमंडल में रहकर उसे प्रदर्शित करते हैं और बाद में गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभावाधीन भूमि पर गिरते हैं और फसलों, मानव बस्तियों औद्योगिक इकाइयों आदि को अत्यधिक नुकसान पहुंचाते हैं! कुछ अम्लीय गैस वायुमंडल में प्रवेश करके अम्लीय वर्षा का कारण बनती है!
ज्वालामुखी से बचने के उपाय (jwalamukhi se bachne ke upay) –
ज्वालामुखी उद्गार को न तो रोका जा सकता है और नहीं संपत्तियों को नष्ट होने से बचा जा सकता है! परंतु यदि समय रहते हैं उद्गार का पूर्वानुमान लगा लिया जाए एवं संभावित आपदा स्थल से लोगों को हटाकर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया जाए, तो मानव जीवन को बचाया जा सकता है! ज्वालामुखी आपदा से बचने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं –
(1) अपने घर के सदस्यों के साथ मिलकर बचाव हेतु स्थान छोड़े जाने का प्रयास करें!
(2) एक घरेलू आपातकालीन योजना बनाएं! अपने घर के लिए तथा साथ लेकर जा सकने वाली आपातकालीन बचाव वस्तुओं को व्यवस्थित करें और उनका रखरखाव बनाए रखें!
(3) अपनी आपातकालीन योजना में पालतू पशुओं और पशुधन को शामिल करें!
(4) अपने स्थानीय रेडियो केंद्रों को सुनें जहां आपातकालीन प्रबंधन कर्मचारी आपके समुदाय के लिए सर्वाधिक उपयुक्त जानकारी प्रसारित करेंगे!
(5) यदि आप विकलांग हैं या आप को सहायता की आवश्यकता हो तो अपने सहयोगी नेटवर्क से संपर्क करें और नागरिक के प्रति रक्षा सलाह के प्रति जागरूक रहें!
(6) यदि उद्गार के समय आप घर से बाहर हैं, तो कार या किसी भवन में आश्रय ले! यदि ज्वालामुखी राख में फंस जाएं, तो डस्ट मास्क पहने या अपने मुंह व नाक को रुमाल से ढक ले!
ज्वालामुखी का विश्व वितरण (jwalamukhi ka vishwa vitran) –
प्लेट विवर्तनिकी के आधार पर प्लेट किनारों के परिवेश में ज्वालामुखी के क्षेत्रों का वितरण सर्वाधिक सामान्य संकल्पना है! विश्व के 80% ज्वालामुखी विनाशी प्लेटो किनारों के सहारे, जबकि 15% ज्वालामुखी रचनात्मक प्लेटों के सहारे पाए जाते हैं!
(1) परिप्रशांत महासागरीय पेटी –
प्रशांत महासागर में स्थित द्वीपों और उसके चारों ओर तटीय भागों में ज्वालामुखियों की संख्या सर्वाधिक पाई जाती है! यहां विनाशात्मक प्लेट के किनारों के सहारे ज्वालामुखी मिलते हैं! इसे प्रशांत महासागर का अग्नि वलय या रिंग ऑफ फायर कहा जाता है! विश्व के ज्वालामुखी का लगभग दो-तिहाई ज्वालामुखी इसी पेटी के सहारे पाए जाते हैं!
(2) मध्य महाद्वीपीय पेटी –
इस श्रृंखला के अधिकांश ज्वालामुखी विनाशी प्लेट किनारों के सहारे पाए जाते हैं, क्योंकि यह क्षेत्र यूरेशियन प्लेट तथा अफ्रीकन एवं इंडियन प्लेट का अभिसरण क्षेत्र होता है! यह श्रंखला यूरेशिया महाद्वीप के मध्यवर्ती भागों में नवीन वलित पर्वतों के सहारे पूर्व से पश्चिम में फैली हुई है!
भू-मध्य सागर के ज्वालामुखी भी इसी पेटी के अंतर्गत आते हैं! स्ट्रांबोली, विसुवियस व एटना भूमध्य सागर के प्रसिद्ध ज्वालामुखी है! स्ट्रांबोली को भूमध्य सागर का प्रकाश स्तंभ भी कहा जाता है!
(3) मध्य अटलांटिक पेटी –
इसे मध्य महासागरीय कटक ज्वालामुखी मेखला के नाम से भी जाना जाता है! यह मेखला रचनात्मक प्लेट किनारों के सहारे मिलती है! जहां दो प्लेटो के अपहरण के कारण दरारों का निर्माण होता है और इस दरार से बेसाल्ट मेग्मा ऊपर उठते हैं! इनके शीतलन से नवीन क्रस्ट का निर्माण होता है!
इस तरह की ज्वालामुखी क्रिया सबसे अधिक मध्य अटलांटिक कटक के सहारे होती है! कटक के पास नवीन लावा, जबकि कटक से बढ़ती दूरी के साथ लावा प्राचीन होता जाता है! आइसलैंड इस मेखला का सबसे सक्रिय क्षेत्र है, जहां हेकला एवं लांकी का उद्गार मुख्य है! इसके अलावा एंटलिज, एजोर्स एवं सेंट हेलेना भी इसके महत्वपूर्ण ज्वालामुखी हैं!
(4) अंतरा प्लेट ज्वालामुखी –
महाद्वीपीय या महासागरीय प्लेट के अंदर भी ज्वालामुखी क्रियाएं होती है, जिसका कारण माइक्रो प्लेट गतिविधियों एवं गर्भस्थल संकल्पना को माना जाता है! हवाई द्वीप से लेकर कमचटका तक के ज्वालामुखी, पूर्वी अफ्रीका के भ्रंश घाटी के ज्वालामुखी, दक्कन ट्रैप व ट्रांस संवर्ग पठार अंतर प्लेटीय ज्वालामुखी के अंतर्गत शामिल किए जा सकते हैं!
प्रश्न :- भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी किस दीप पर स्थित है?
उत्तर :- भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी बैरन दीप पर स्थित है! यह अंडमान निकोबार द्वीप समूह का हिस्सा हैं!
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