अपक्षय की परिभाषा (Weathering in hindi)
अपक्षय (Weathering) वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा पृथ्वी की सतह पर मौजूद चट्टाने में टूट-फूट होती है ! इस टूट-फूट से निर्मित भूपदार्थों का एक जगह से दूसरी जगह स्थानांतरण या परिवहन नहीं होता ! अपक्षय के द्वारा चट्टानों का विघटन तथा वियोजन होता है! यह स्थैतिक क्रिया है!
अपक्षय के प्रकार (Type of Weathering in hindi) –
अपक्षय के प्रकार (apakshay ke prakar) इस प्रकार है –
(1) भौतिक अथवा यांत्रिक अपक्षय ( भौतिक कारकों द्वारा)
(2) रासायनिक अपक्षय ( रासायनिक कारकों द्वारा)
(3) जैव अपक्षय ( जैविक कारकों)
(1) भौतिक अथवा यांत्रिक अपक्षय (bhautik apakshay kya hai)-
(2) रासायनिक अपक्षय क्या है (rasayanik apakshay kya hai) –
(3) जैविक अपक्षय क्या है (jaivik apakshay kya hai)-
अपक्षय को प्रभावित करने वाले कारक (factors affecting weathering in hindi) –
अपक्षय को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक इस प्रकार है –
(1) चट्टानों की संरचना से अपक्षय की क्रिया धीमी या तेज हो सकती है !
(2) जलवायु में अंतर के कारण भी अपक्षय में पर्याप्त अंतर देखने को मिलता है! अपक्षय की दर तथा प्रकार , तापमान एवं आंध्र द्वारा नियंत्रित होती है!
(3) अपक्षय की प्रक्रिया स्थलाकृति की संरचना से भी प्रभावित होती है !
(4) प्राकृतिक वनस्पतियाँ अपक्षय के अवरोधक के साथ कारक भी है!
अपक्षय का महत्व (importance of weathering in hindi)-
अपक्षय का महत्व इस प्रकार है –
(1) अपक्षय की प्रक्रिया अपरदन के लिए उत्तरदाई है .अपक्षय, अपरदन व उच्चावच के लघुकरण में सहायक होता है!
(2) अपक्षय की प्रक्रिया चट्टानों को छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित कर मृृृदा निर्माण के लिए मार्ग प्रदान करती है ! अतः अपक्षय मृदा निर्माण के लिए एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है!
(3) अपक्षय आवरण की गहराई, वनों का प्रकार निर्धारित करती हैै ! तत्पश्चात इन वनों के परिणामस्वरूप विभिन्नन जीवोम या जैैैव विविधता का निर्माण होता है !
(4) इससे ईट बनाने में प्रयुक्त होने वाली चिकनी मिट्टी जैसे अनेक प्राकृतिक संसाधनों का निर्माण होता है !
(5)अपक्षय से चट्टाने कमजोर हो जाती हैं ! इस प्रकार यह खनन और उत्खनन गतिविधियों को आसान बनाता है
अपरदन क्या है (What is Erosion in hindi) –
अपरदन (Erosion) शब्द लैटिन भाषा के Erodere शब्द से मिलकर बना है जिसका तात्पर्य घिसना या कुतरना है!
अपरदन एक गतिशील प्रक्रिया है इसमें शेले गतिशील शक्तियों ( हिम , वायु , लहरों ,भूमिगत जल एवं नदी) द्वारा घिसती, कटती, व स्थानांतरित या परिवर्तित होती रहती है !
अपरदन में परिवहन तथा निक्षेपण की क्रियाएं शामिल होती हैं! अपरदन धरातल में होने वाले सतत परिवर्तन के लिए उत्तरदाई है! अपरदन एवं परिवहन की क्रियाओं को गतिज ऊर्जा द्वारा नियंत्रित होती हैं!
अपरदन के प्रक्रम के अंतर्गत नदी ,भूमिगत जल, सागरी तरंग ,हिमानी, पवन आदि द्वारा अपरदन को सम्मिलित करते हैं अपरदन व निक्षेपण के ये प्रक्रम पृथ्वी के धरातल पर विभिन्न स्थलाकृति का निर्माण करते हैं ! अपरदन के द्वारा उच्चावचो का निम्नीकरण होता है!
सर्वप्रथम जेम्स ने अपरदन चक्र के संबंध में चक्रीय पद्धति का अवलोकन किया! तत्पश्चात 19वीं शताब्दी के अंतिम दशक में डेविस ने अपरदन चक्र की संकल्पना का प्रतिपादन किया!
अपरदन को रोकने के उपाय (Measures to prevent erosion in hindi) –
(1) भूमि को उपजाऊ बनाना
(2) पशुचारण को रोकना
(3) वनोंरोपण करना
(4) खेतों में मेड बनाना
(5) वायुरोधी पौधे लगाना
(6) बांध निर्माण करना
अपक्षय और अपरदन में अंतर –
अपरदन | अपक्षय |
अपरदन एक गतिशील क्रिया है! | अपक्षय एक स्थैतिक या स्थिर क्रिया है! |
अपरदन एक बड़े क्षेत्र में होता है! | अपक्षय का क्षेत्र सीमित होता है! |
अपरदन में पदार्थ का परिवहन होता है! | अपक्षय में पदार्थ का परिवहन नहीं होता है! |
अपरदन में विभिन्न गतिशील कारक भूपृष्ठ की शैलों की काट छांट करते हैं! | अपक्षय में शैलें बिना स्थान बदले अपखंडित एवं अपघटित होती है! |
प्रवाहित जल, हिमानी, वायु, सागरी लहरें आदि अपरदन के कारक हैं | ताप, जल, दाब, ऑक्सीजन आदि अपक्षय के कारक हैं! |
अपरदन चक्र क्या है –
समुद्र तल से ऊपर उठने के पश्चात धरातल के किसी भाग पर होने वाली भू -आकृतियों के क्रमिक परिवर्तन को ही अपरदन चक्र चक्र कहते हैं! अपरदन चक्र की विस्तृत व्याख्या विलियम मॉरिस डेविस और वाल्टर पैंक द्वारा की गई है!