महासागरीय जलधाराएं क्या है (mahasagariya jaldhara kya hai) –
सागरीय जल की विशाल जलराशि की एक निश्चित दिशा में होने वाली सामान्य गति को महासागरीय धारा (mahasagariya jaldhara) कहा जाता है! धाराओं की गति आकार एवं दिशा में पर्याप्त अंतर होता है!
इन धाराओं में सागर का जल सदा गतिशील रहता है और इस सागरीय जल को गति प्रदान करने वाले कारकों में सनमार्गी पवनों का प्रवाह, जल के ताप एवं घनत्व में अंतर, वर्षा की मात्रा, पृथ्वी का घूर्णन, सागरी लवणता आदि प्रमुख है!
इसके अतिरिक्त महाद्वीपों का आकार, सागरीय उच्चावच्चों की स्थिति एवं स्थानीय पवने भी महासागर की धारा का स्वरूप निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है!
उत्तरी एवं दक्षिणी गोलार्ध में धाराओं की दिशा में होने वाला परिवर्तन पृथ्वी के अपने अक्ष पर घूमने के कारण उत्पन्न कोरियोलिस बल के कारण होता है, जिसके फलस्वरूप उत्तरी गोलार्ध में धाराएं अपने दाहिनी ओर और दक्षिणी गोलार्ध में बाई ओर मुड़ जाती है!
प्रमुख महासागर की जलधाराएं –
प्रमुख महासागर की धाराएं इस प्रकार है – गल्फ स्ट्रीम की गर्म धारा, लैब्राडोर की ठंडी धारा, पेरू की ठंडी धारा, फॉकलैण्ड की ठंडी धारा, ब्राजील की गर्म धारा, आयोशियो की ठंडी धारा, अलास्का की गर्म धारा, मेडागास्कर की गर्म धारा, मोजांबिक की गर्म धारा आदि!
महासागरीय जलधाराओं का प्रभाव या महत्व –
(1) गर्मी एवं ठंडी धाराओं से मिलने से घना कोहरा उत्पन्न होता है, इसी कारण जलयानों के संचालन में अवरोध उत्पन्न होता है!
(2) गर्म और ठंडी धाराओं के मिलने से जो घना कोहरा उत्पन्न होता है, उसके कारण प्लैंकटन की उत्पत्ति और धाराओं के द्वारा बहाकर भी कई प्रकार के प्लैंकटन तटीय क्षेत्रों में आ जाते हैं, जिससे वहां पर मत्स्य उद्योग के लिए अनुकूल दशाएं पाई जाती है!
(3) महासागरीय धाराएं विशाल महामार्ग की भांति कार्य करती है, जिनका अनुसरण सामान्यतः समुद्री जलयान करते हैं!
(4) गर्म धारा के प्रवाह के कारण ध्रुवीय प्रदेशों के कुछ बंदरगाह लगभग साल भर खुले रहते हैं, जिनका व्यापार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है!
(5) महासागरीय धाराएं पृथ्वी के क्षेत्रीय ऊष्मा संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है!