संसदीय व्यवस्था क्या है (parliamentary system in hindi) –
भारत का संविधान केंद्र और राज्य दोनों सरकारों के संसदीय व्यवस्था (parliamentary system) करता है! अनुच्छेद 74 और 75 में संसदीय व्यवस्था का उपबंध करते हैं वही अनुच्छेद 163 और 164 राज्यों के लिए संसदीय व्यवस्था का उल्लेख किया गया है! भारतीय संसद व्यवस्था में लोकसभा अस्थाई (निम्न) और राज्यसभा स्थाई (उच्च) सदन है!
संसदीय सरकार (parliamentary system) को ‘उत्तरदाई सरकार’ या ‘केबिनेट सरकार’ या ‘सरकार का वेस्टमिंस्टर स्वरूप’ भी कहा जाता है तथा यह जापान, कनाडा, ब्रिटेन, भारत आदि में प्रचलित हैं! सरकार की संसदीय व्यवस्था वह व्यवस्था जिसमें कार्यपालिका अपनी नीति एवं कार्यों के लिए विधायिका के प्रति उत्तरदाई होती है! वर्तमान में संसदीय व्यवस्था बहुत लोकप्रिय है,इसका कारण इसकी विशेषताएं हैं!
संसदीय व्यवस्था की विशेषताएं (Feature of parliamentary system in hindi) –
भारत में संसदीय सरकार यह संसदीय व्यवस्था (parliamentary system) की निम्नलिखित विशेषताएं हैं-
(1) सामूहिक उत्तरदायित्व –
सरकार के संसदीय स्वरूप में मंत्रीपरिषद सामूहिक रूप से संसद के प्रति उत्तरदायी होती हैं! मंत्रीपरिषद टीम की तरह काम करती हैं! सामूहिक उत्तरदायित्व सिद्धांत रूप में प्रभावी होता है कि लोकसभा, प्रधानमंत्री नेतृत्व वाली मंत्रिपरिषद को अविश्वास प्रस्ताव पारित कर हटा सकती हैं!
(2) नामिक एवं वास्तविक कार्यपालिका –
संसदीय व्यवस्था में राष्ट्रपति केवल नाम का प्रमुख होता है, जबकि वास्तविक शक्तियां प्रधानमंत्री के हाथों में केंद्रित होती है! इस प्रकार राष्ट्रपति राज्य का नामिक मुखिया होता है जबकि प्रधानमंत्री सरकार का मुखिया होता है!
(3) बहुमत प्राप्त दल का शासन –
जिस राजनीतिक दल को लोकसभा में बहुमत में सीटें प्राप्त होती है, वहीं सरकार बनाती है! उस दल के नेता को राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाता है! अन्य मंत्री की नियुक्ति भी राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री के परामर्श से ही की जाती है! जब किसी एक दल को बहुमत प्राप्त नहीं होता है तो गठबंधन दलों को राष्ट्रपति द्वारा सरकार बनाने हेतु आमंत्रित किया जाता है!
(4) दोहरी सदस्यता –
संसदीय व्यवस्था (parliamentary system) में मंत्री विधायिका एवं कार्यपालिका दोनों के सदस्य होते हैं इसका अभिप्राय है कि कोई भी व्यक्ति बिना संसद का सदस्य बने मंत्री नहीं बन सकता! सविधान व्याख्या करता है कि यदि कोई व्यक्ति जो संसद का सदस्य नहीं है और मंत्री बनता है तो उसे 6 माह के अंदर संसद का सदस्य बनना अनिवार्य होगा नहीं, तो उसकी सदस्यता रद्द कर दी जाएगी!
(5) प्रधानमंत्री का नेतृत्व
सरकार की व्यवस्था में प्रधानमंत्री नेतृत्वकर्ता की भूमिका अदा करता है! वह मंत्रिपरिषद का, संसद का और सत्तारूढ़ दल का नेता होता है! वह अपनी क्षमताओं से सरकार के संचालन में एक महत्वपूर्ण एवं अहम भूमिका का निर्वहन करता है!
संसदीय व्यवस्था के दोष (Defects of parliamentary system in hindi) –
उपरोक्त गुणों के बावजूद संसद व्यवस्था(parliamentary system) में निम्नलिखित दोष पाए जाते हैं –
(1) अस्थिर सरकार –
संसदीय व्यवस्था, स्थाई सरकार की व्यवस्था नहीं करती! इसकी कोई गारंटी नहीं कि कोई सरकार अपना कार्यकाल पूरा करें कि या नहीं! एक अविश्वास प्रस्ताव या राजनीतिक दल परिवर्तन या बहुदलीय गठन सरकार को अस्थिर कर सकता है!
(2) मंत्रिमंडल की निरकुंशता –
जब सत्तारूढ़ पार्टी को संसद में पूर्ण बहुमत प्राप्त होता है तो वह कैबिनेट ने निरंकुश हो सकती है और वह लगभग असीमित शक्तियों की तरह कार्य करने लग जाती है! लास्की के अनुसार – ‘संसदीय व्यवस्था कार्यकारिणी को तानाशाही का अवसर उपलब्ध करा देती है!’ इंदिरा गांधी एवं राजीव गांधी का काल भी उसका गवाह है!
(3) नीतियों में अनिश्चितता –
संसदीय व्यवस्था में सत्तारूढ़ दल के परिवर्तन के कारण संचालित नीतियों में भी परिवर्तन होता रहता है इसलिए संसद व्यवस्था में दीर्घकालिक नीतियां लागू नहीं हो पाती! जैसे- 1977 में मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली जनता सरकार ने पूर्व की कांग्रेस सरकार की नई नीतियों को बदल दिया! ऐसे ही कांग्रेस सरकार ने 1980 में सत्ता वापस आने पर किया!
(4) शक्ति के पृथक्करण के विरुद्ध –
संसदीय व्यवस्था में विधायिका एवं कार्यपालिका एक साथ और अविभाज्य होते हैं! कैबिनेट, विधायिका एवं कार्यपालिका दोनों की नेता होती है! इस तरह सरकार की यह पूरी व्यवस्था शक्तियों को विभाजित करने वाले सिद्धांत के खिलाफ जाती है! वास्तव में यह शक्तियों का मेल है!
(5) अकुशल व्यक्तियों का सरकार का संचालन –
संसदीय व्यवस्था (parliamentary system) प्रशासनिक कुशलता से पारित नहीं होती क्योंकि मंत्री अपने क्षेत्र में निभाना नहीं होते मंत्रियों के चयन में भी प्रधानमंत्री के पास सीमित विकल्प होते हैं उसकी पसंद संसद के सदस्य को प्रतिबंधित करती है और बाह्य प्रतिभा तक विस्तारित नहीं होती! इसके अलावा मंत्री अधिकांश समय अपने संसदीय कार्यो, कैबिनेट की बैठकों एवं दलीय गतिविधियों में ही व्यस्त रहते हैं!
प्रश्न :- संसदीय व्यवस्था किसे कहते हैं?
उत्तर :- संसदीय सरकार को ‘उत्तरदाई सरकार’ या ‘केबिनेट सरकार’ या ‘सरकार का वेस्टमिंस्टर स्वरूप’ भी कहा जाता है तथा यह जापान, कनाडा, ब्रिटेन, भारत आदि में प्रचलित हैं! सरकार की संसदीय व्यवस्था वह व्यवस्था जिसमें कार्यपालिका अपनी नीति एवं कार्यों के लिए विधायिका के प्रति उत्तरदाई होती है! वर्तमान में संसदीय व्यवस्था बहुत लोकप्रिय है,इसका कारण इसकी विशेषताएं हैं!
प्रश्न:- संसदीय व्यवस्था का सर्वप्रथम विकास हुआ?
उत्तर :- संसदीय व्यवस्था का सर्वप्रथम विकास ब्रिटेन में हुआ! ब्रिटेन से ही संसदीय प्रणाली को अपनाया गया है!
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