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संसदीय समितियां क्या है (Parliamentary Committees in hindi) –
संसद बहुत बड़ी अथवा भारी-भरकम संस्था है वह अपने समक्ष लाए गए विषय को प्रभावकारी ढंग से स्वयं निष्पादन नहीं कर सकती! संसद के कार्य विविध, जटिल और वृहद होते हैं! साथ ही संसद के पास न तो इतना समय है, न हीं आवश्यक विशेषज्ञता, जिससे कि समस्त विधायी उपायों और तथा अन्य मामलों की गहन छानबीन की जा सके, यही कारण है कि अनेक संसदीय समितियों (Parliamentary Committees) का निर्माण किया गया है, जो कर्तव्य के निर्वहन में मदद करती है!
संसदीय समितियों के प्रकार (Types OF Parliamentary Committees in hindi) –
संसदीय समितियां (Parliamentary Committees) मुख्यतः दो प्रकार की होती है – स्थायी समितियां तथा तदर्थ समितियां!
स्थाई समितियां वे समितियां होती है जिनका स्वरूप स्थाई होता है, जो निरंतरता के आधार पर कार्य करती है जिनका गठन प्रत्येक वर्ष अथवा समय समय पर किया जाता है! लोक लेखा समिति, प्राक्कलन समिति, सार्वजनिक उद्यम के लिए गठित समिति मुख्य स्थाई समितियां हैं!
तदर्थ समितियां की प्रकृति अस्थाई होती है तथा इनका निर्माण जिस उद्देश्य के लिए किया जाता है वह उद्देश्य पूर्ण होते ही इनका कार्यकाल भी समाप्त हो जाता है!
(1) लोक लेखा समिति (Public Accounts Parliamentary Committees in hindi) –
लोक लेखा समिति का गठन भारत सरकार अधिनियम 1919 के अंतर्गत परिवार 1921 में हुआ और तब से यह अस्तित्व में है वर्तमान में इसमें 22 सदस्य हैं जिसमें से 15 लोकसभा तथा 7 राज्यसभा के सदस्य होते हैं! इसे लघु लोकसभा भी कहते हैं!
प्रतिवर्ष संसद द्वारा ऐसे सदस्यों में से समानुपातिक प्रतिनिधित्व के सिद्धांत के अनुसार एकल हस्तांतरणीय मत के माध्यम से लोक लेखा समिति के सदस्यों को चुना जाता है!
समिति के अध्यक्ष को लोकसभा अध्यक्ष द्वारा मनोनीत किया जाता है, तथा लोकसभा सचिवालय समिति के कार्यालय की भूमिका अदा करता है! 1967 में प्रथम बार मीनू मसानी विरोधी दल के नेता इस समिति के अध्यक्ष बने और उसी समय से विरोधी दल के सदस्यों में से किसी सदस्य को समिति का अध्यक्ष मनोनीत करने की परंपरा प्रारंभ हुई!
लोक लेखा समिति के कार्य (Works Public Accounts Parliamentary Committees in hindi)–
(1) भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) द्वारा दिए गए लेखा परीक्षण संबंधी प्रतिवेदनओं की जांच लोक लेखा समिति करती है!
(2) भारत सरकार के व्यय के लिए सदन द्वारा प्रदान की गई राशि का विनियोग दर्शाने वाली लेखाओं की जांच भी लोक लेखा समिति द्वारा की जाती है!
(3) संसद द्वारा प्रदान की गई धनराशि के अतिरिक्त राशि को व्यय गया हो तो समिति उन परिस्थितियों की जांच करती है जिसे कारण अतिरिक्त वही करना पड़ा!
(4) स्वशासी एवं अर्द्ध स्वशासी निकायों की लेखा जांच जिनका लेखा परीक्षण सीएजी द्वारा किया जाता है!
(5) अपव्यय, क्षति, भ्रष्टाचार, अक्षमता तथा निरर्थक खर्चों आदि के मामले की जांच करना लोक लेखा समिति का कार्य है!
(5) समिति राष्ट्रपति के वित्तीय मामलों के संचालन में अप्व्यय, भ्रष्टाचार और कुशलता में कमी के किसी प्रमाण को खोज सकती है!
लोकलेखा समिति के दोष (Limitations Of Public Accounts Parliamentary Combmittees in hindi)–
(1) यह कोई आदेश पारित नहीं कर सकती क्योंकि यह कार्यकारिणी का ही नहीं है!
(2) लोक लेखा समिति की अनुशंसा है परामर्श के रूप में होती है तथा मंत्रालय ने मानने के लिए बाध्य नहीं होता!
(3) इसमें विभाग द्वारा खर्चों पर रोक की शक्ति निहित नहीं होती!

प्राक्कलन समिति (Estimate Parliamentary Committees in hindi) –
प्राक्कलन समिति सबसे बड़ी संसदीय समिति है इस समिति में लोकसभा के 30 सदस्य होते हैं इसमें राज्यसभा का कोई सदस्य शामिल नहीं होता है! इसका कार्यकाल 1 वर्ष का होता है प्रत्येक वर्ष मई में समिति का कार्यकाल प्रारंभ होता है तथा अगले वर्ष 30 अप्रैल को समाप्त हो जाता है!
स्वतंत्रता पश्चात पहली बार जॉन मथाई की सिफारिश पर 1950 में पहली प्राक्कलन समिति का गठन किया गया मुलत; इसमें 25 सदस्य थे, परंतु 1956 में ही सदस्य संख्या बढ़ाकर 30 कर दी गई!
समिति का अध्यक्ष लोकसभा के अध्यक्ष द्वारा मनोनीत किया जाता है, किंतु यदि लोकसभा का उपाध्यक्ष इस समिति का सदस्य हो, तो फिर वही समिति का अध्यक्ष चुना जाता है! इस समिति के प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं –
प्राक्कलन समिति (Works Of Estimate Parliamentary Committees in hindi )-
(1) प्राक्कलन समिति सरकारी खर्च में कैसे कमी लाई जाए और प्रशासन में कैसे सुधार किया जाए इस विषय पर रिपोर्ट देती है!
(2) प्रशासन में कार्यकुशलता किफायत लाने के लिए वैकल्पिक नीतियों के बारे में सुझाव देना!
(3) संसद में प्रॉब्लम किसने प्रस्तुत किया जाए, इसके बारे में सुझाव देना!
(4) प्राक्कलन में निहित नीति के अनुसार के अनुसार ही समुचित राशि का प्रावधान किया गया है, इस बात की जांच करना!
(5) प्राक्कलन में निहित नीतियों के अनुरूप क्या किफायत, संगठन में सुधार, तथा कार्यकुशलता और प्रशासनिक सुधार प्रभारी बनाए जा सकते हैं, इसके बारे में प्रतिवेदन देना!
प्राक्कलन समिति के दोष (Limitations Of Estimate Parliamentary Committees in hindi)-
(1) प्राक्कलन समिति के प्रतिवेदन पर सदन में बहस नहीं होती है!
(2) यह बजट प्राक्कलनो की जांच तभी कर सकती है जब इसके लिए संसद में मतदान हो चुका हो, उसके पहले नहीं!
(3) यह प्रतिवर्ष केवल कुछ मंत्रालयों तथा विभागों की जांच करती है, जिसके कारण सभी मंत्रालयों की जांच में वर्षों लग जाते हैं!
सरकारी उपक्रमों की समिति (Public Undertaking Parliamentary Committee in hindi)-
इसे सार्वजनिक उद्यम समिति भी कहते हैं. 1963 में कृष्ण मेनन समिति की संस्तुति पर सार्वजनिक उपक्रमों पर नियंत्रण के लिए लोकसभा द्वारा सार्वजनिक उपक्रम समिति की व्यवस्था की गई!
प्रारंभ में इस समिति की सदस्य संख्या 15 थी, परंतु वर्ष 1974 में सदस्य संख्या 15 बढ़ाकर 22 कर दी गई, वर्तमान में इसमें 15 लोकसभा तथा 7 राज्यसभा सदस्य शामिल होते हैं. इस समिति का कार्यकाल 1 वर्ष का होता है!
इस समिति के सदस्यों का चयन संसद द्वारा एकल संक्रमणीय मत पद्धति के द्वारा किया जाता है. कोई भी मंत्री समिति का सदस्य नहीं होता! समिति का अध्यक्ष लोकसभा अध्यक्ष द्वारा नामित किया जाता है. राज्यसभा के सदस्य समिति के अध्यक्ष नहीं बन सकते हैं! (Parliamentary Committees)
सरकारी उपक्रमों समिति के प्रमुख कार्य (Major Functions of Government Undertakings Committee in hindi) –
(1) सरकारी उपक्रमों के प्रतिवेदन और लेखाओं की तथा उन पर नियंत्रण एवं महालेखा परीक्षक के प्रति आवेदनों की जांच करना
(2) ऐसे विषयों की जांच करना जो सदन या अध्यक्ष द्वारा निर्दिष्ट किया जाए!
(3) सार्वजनिक उद्यमों को प्रबंधन व्यवसायिक सिद्धांतों तथा युक्तिसंगत व्यापारिक प्रचलनों के अनुसार किया जा रहा है, इस बात की जांच करना!
(4) सार्वजनिक उपक्रम से संबंधित ऐसे अन्य कार्यों को लोक लेखा समिति तथा प्रकरण समिति के कार्यक्षेत्र भी होता है तो लोकसभा अध्यक्ष द्वारा समय-समय पर इसे सुपुर्द किया जाता है!
सार्वजनिक उपक्रम समिति के दोष (Defects of Public Undertakings Committee in hindi) –
(1) यह तकनीकी मामलों की जांच नहीं कर सकती क्योंकि सदस्य तकनीकी सदस्य नहीं होते!
(2) इसकी अनुशंसा सलाहकार प्रवृत्ति की होती है, जिससे मंत्रालय मानने के लिए बाध्य नहीं है!
प्रश्न :- लोक लेखा समिति में कितने सदस्य होते हैं?
उत्तर :- लोक लेखा समिति का गठन भारत सरकार अधिनियम 1919 के अंतर्गत परिवार 1921 में हुआ और तब से यह अस्तित्व में है वर्तमान में लोक लेखा समिति में 22 सदस्य हैं जिसमें से 15 लोकसभा तथा 7 राज्यसभा के सदस्य होते हैं! इसे लघु लोकसभा भी कहते हैं!
प्रश्न :- प्राक्कलन समिति में कितने सदस्य होते हैं?
उत्तर:- प्राक्कलन समिति सबसे बड़ी संसदीय समिति है इस समिति में लोकसभा के 30 सदस्य होते हैं इसमें राज्यसभा का कोई सदस्य शामिल नहीं होता है! इसका कार्यकाल 1 वर्ष का होता है प्रत्येक वर्ष मई में समिति का कार्यकाल प्रारंभ होता है तथा अगले वर्ष 30 अप्रैल को समाप्त हो जाता है!
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