भारतीय संविधान की विशेषताओं का वर्णन कीजिए

भारतीय संविधान की विशेषताएं (bhartiya samvidhan ki visheshya ) –

भारतीय संविधान विश्व का सबसे लंबा और लिखित संविधान है भारतीय संविधान के निर्माण में 2 वर्ष 11 माह 18 दिन का समय लगा! संविधान के प्रारूप पर कुल 114 दिन बहस चली.संविधान के निर्माण कार्य में कुल मिलाकर लगभग 64 लाख ₹ का खर्च आया! 
 

भारतीय संविधान की विशेषताएं (features of indian constitution in hindi) –

भारतीय संविधान की विशेषताएं इस प्रकार हैं -

(1) नम्यता एवं अनम्यता का समन्वय – 

संविधान संशोधन की प्रक्रिया के आधार पर संविधान को नम्य और अनम्य संविधान में वर्गीकृत किया जाता है! वह संविधान जिसमें संशोधन करने के लिए विशेष या कठोर प्रक्रिया की आवश्यकता होती है, उसे कठोर या अनम्य संविधान कहते हैं! 
 
लचीला या नम्य संविधान, वह संविधान जिसमें संशोधन की प्रक्रिया वही हो, जैसी किसी आम कानूनों के निर्माण की हो जैसे – ब्रिटेन का संविधान!
 
भारत का संविधान ना तो इतना लचीला है कि कोई भी सत्ताधारी दल अपने स्वार्थ के लिए उसमें संशोधन कर सके नहीं इतना कठोर है कि उसमें जनकल्याण के लिए संशोधन ना किया जा सके! 
भारत का संविधान ना तो लचीला है नहीं ही कठोर है, बल्कि यह दोनों का मिलाजुला रूप है! अनुच्छेद 368 में दो तरह के संविधान संशोधन का प्रावधान है
 

(2) सरकार का संसदीय रूप – 

भारतीय संविधान में सरकार के संसदीय स्वरूप को अपनाया गया है जिसकी निम्न विशेषताएं है
(1) बहुमत दल की सरकार! 
(2) वास्तविक व नाममात्र कार्यपालिका की उपस्थिति
(3) विधायिका के समक्ष एक कार्यपालिका की संयुक्त जवाबदेही
(4) विधायिका में मंत्रियों की सदस्यता
(5) प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री द्वारा सदन का नेतृत्त्व! 
(6) निचले सदन का विघटन होना और उच्चसदन का स्थाई होना! 
 

(3) एकीकृत एवं स्वतंत्र न्यायपालिका –

भारतीय संविधान एक एकीकृत एवं स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना करता है भारतीय न्याय व्यवस्था में सर्वोच्च न्यायालय शीर्ष पर है इसके नीचे राज्य स्तर पर उच्च न्यायालय है, इसी प्रकार राज्यों में उच्च न्यायालय के नीचे क्रमवार अधीनस्थ न्यायालय है! 
 
सर्वोच्च न्यायालय संघीय न्यायालय है, क्योंकि यह केंद्र और राज्य दोनों के लिए समान है! न्यायालयों का एकल तंत्र केंद्रीय कानूनों के साथ-साथ राज्य कानूनों को भी लागू करता है! सर्वोच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों का संरक्षक है! 
 

(4) सार्वभौम वयस्क मताधिकार –

भारतीय संविधान द्वारा राज्य विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव के आधार स्वरूप सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार को अपनाया गया है! हर वह व्यक्ति जिसकी उम्र 18 वर्ष या उससे अधिक है, उसे धर्म, जाति, लिंग, साक्षरता अथवा संपदा इत्यादि के आधार पर कोई भेदभाव किए बिना मतदान करने का अधिकार है! 
 
वर्ष 1990 में 61 वा संविधान संशोधन अधिनियम 1981 के द्वारा मतदान करने की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया था!
 

(5) स्वतंत्र निकाय – 

भारतीय संविधान केवल विधायिका, कार्यपालिका व सरकार (केंद्र व राज्य) न्यायिक का अंग ही उपलब्ध नहीं कराता है, बल्कि यह कुछ स्वतंत्र निकायों की स्थापना भी करता है इन्है संविधान ने भारत सरकार के लोकतांत्रिक तंत्र के महत्वपूर्ण स्तंभ के रूप में परिकल्पित किया है!

जैसे- निर्वाचन आयोग, संघ लोक सेवा आयोग, राज्य लोक सेवा आयोग, वित्त आयोग, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारत के महान्यायवादी, राज्य का महाधिवक्ता आदि! 

(6) विभिन्न स्त्रोतों से विहित –

भारत का संविधान में अधिकतर उपबंध विश्व के कई देशों के संविधानों तथा भारत शासन अधिनियम 1935 के उपबंधो से है! सविधान का अधिकांश ढांचागत हिस्सा भारत शासन अधिनियम 1935 से लिया गया है! 
 
भारतीय संविधान में जो अनुच्छेद अन्य देशों से लिए गए हैं उन्हें संशोधित करके भारतीय व्यवस्था के अनुरूप अपनाया गया है!भारतीय संविधान में आयरलैंड, अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, रूस, फ्रांस, दक्षिण अफ्रीका, जापान इत्यादि देशों के संविधान से प्रावधान ग्रहण किए गए है! 
 

(7) धर्मनिरपेक्ष राज्य (secular state) –

भारत का संविधान धर्मनिरपेक्ष है,क्योंकि यह किसी धर्म विशेष को भारत के धर्म के तौर पर मान्यता नहीं देता और सभी धर्म के प्रति समानता का भाव रखता है! भारतीय संविधान में सभी धर्मों को समान आदर अथवा सभी धर्मों की समान रूप से रक्षा करते हुए, धर्मनिरपेक्षता के सकारात्मक पहलुओं को शामिल किया गया है! 
 

(8) एकल नागरिकता – 

यद्यपि भारतीय संविधान संघात्मक है, परंतु इसमें केवल एकल नागरिकता का प्रावधान किया गया है! भारत में सभी नागरिकों को चाहे वह किसी भी राज्य में पैदा हुए हो या रहते हो, संपूर्ण देश में नागरिकता के समान राजनीतिक और नागरिक अधिकार प्राप्त होते हैं और उनमें कौई भी भेदभाव नहीं किया जाता! 
 

(9) मौलिक अधिकार –

भारतीय संविधान द्वारा नागरिकों को समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, संस्कृतिक व शिक्षा का अधिकार और संवैधानिक उपचारों का अधिकार प्रदान किया गया है! मौलिक अधिकारों का वर्णन संविधान के भाग 3 में किया गया है! 
 
मौलिक अधिकार प्रदान करने का उद्देश्य वस्तुतः राजनीतिक लोकतंत्र की भावना को प्रोत्साहन देना है! यह कार्यपालिका और विधायिका के मनमाने कानूनों पर निरोधक की भांति कार्य करते हैं! मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के मामले में सीधे सर्वोच्च न्यायालय में जाया जा सकता है! (bhartiya samvidhan ki visheshta)
 

(10) मौलिक कर्तव्य – 

भारतीय संविधान में सरदार स्वर्ण सिंह किस समिति की सिफारिश के आधार पर 1976 के 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से मौलिक कर्तव्य को भारतीय संविधान में जोड़ा गया! वर्तमान में 11 मौलिक कर्तव्य है! 11वें मूल कर्तव्य को 2002 में 86वें संविधान संशोधन द्वारा जोड़ा गया है! (bhartiya samvidhan ki visheshta)
 
मौलिक कर्तव्य का उद्देश्य नागरिकों को यह याद दिलाना है कि उनका अपने अधिकारों के साथ साथ अपने समाज, देश और अन्य नागरिकों के प्रति कुछ जिम्मेदारियां भी है जिनका का उन्हें निर्वहन भी करना है! 
 

(11) राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत

राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों भारतीय संविधान की अनूठी विशेषता है, इसे आयरलैंड के संविधान से लिया गया है! राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग 4 में किया गया है! नीति निदेशक तत्व का उद्देश्य सामाजिक व आर्थिक लोकतंत्र को बढ़ावा देना है तथा भारत में कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है! 
 
राज्य के नीति निर्देशक तत्व को लागू कराने के लिए न्यायालय की शरण में नहीं जाया जा सकता है! इनको लागू करना राज्य का नैतिक कर्तव्य है! यह सरकार के द्वारा लागू करने के बाद ही नागरिकों को प्राप्त होते है! 
 

(12) संसदीय संप्रभुता एवं न्यायिक सर्वोच्चता में समन्वय –

संसद की संप्रभुता का नियम ब्रिटिश संसद से जुड़ा हुआ है, जबकि न्यायपालिका की सर्वोच्चता का सिद्धांत अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय से किया गया है! 

जिस प्रकार भारतीय संसदीय प्रणाली, ब्रिटिश प्रणाली से भिन्न है, ठीक उसी प्रकार भारत में सर्वोच्च न्यायालय की न्यायिक समीक्षा शक्ति अमेरिका सर्वोच्च न्यायालय से कम है! ऐसा इसलिए हैं क्योंकि अमेरिका संविधान में ‘विधि के नियत प्रक्रिया’ का प्रावधान है, जबकि भारतीय संविधान में ‘विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया’ का प्रावधान है! 

इस कारण भारतीय संविधान निर्माताओं ने ब्रिटेन की संसदीय संप्रभुता और अमेरिका की न्यायपालिका सर्वोच्चता के बीच में उचित संतुलन बनाने की कोशिश की! जहां एक ओर, सर्वोच्च न्यायालय अपनी न्यायिक समीक्षा शक्तियों के तहत संसदीय कानूनों को असंवैधानिक घोषित कर सकता है, वहीं दूसरी ओर संसद अपनी संवैधानिक शक्तियों के बल पर संविधान के बड़े भाग को संशोधित कर सकती है।

 

(13) आपातकालीन प्रावधान –

 देश की एकता अखंडता एवं संप्रभुता को बनाए रखना प्रत्येक लोकतांत्रिक सरकार का कर्तव्य होता है, यदि उसके समक्ष असामान्य परिस्थितियां (युद्ध, आक्रमण एवं सशस्र विद्रोह)  उत्पन्न हो जाए तो उससे निपटने के लिए विशेष प्रावधान की आवश्यकता होती है. सी आशय को ध्यान में रखते हुए भारतीय संविधान के भाग 18 में आपातकालीन प्रावधानों का उपबंध किया गया है! (bhartiya samvidhan ki visheshta)
 

(14) त्रिस्तरीय सरकार –

भारतीय सविधान के दो प्रमुख विशेषता त्रिस्तरीय सरकार की स्थापना है, जो विश्व के किसी भी संविधान में नहीं है! मूल रूप से अन्य संघीय संविधान की तरह भारतीय संविधान में भी दो स्तरीय  राजव्यवस्था (केंद्र एवं राज्य )और संगठन के संबंध में प्रावधान तथा केंद्र एवं राज्यों की शक्तियां अंतविष्ट थी! बाद में वर्ष 1992 में 73 वें एवं 74 वें संविधान संशोधन द्वारा तीन स्तरीय स्थानीय सरकार का प्रावधान किया गया!
 

(15) सबसे लंबा लिखित संविधान –

भारत का संविधान विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान है! यह बहुत बृहद समग्र और विस्तृत दस्तावेज है! संविधान निर्माण के समय इसमें 395 अनुच्छेद, 22 भाग और 8 अनुसूचियां थी! वर्तमान में इसमे 22 भाग और 12 अनुसूचियां हैं! 

आपने इस आर्टिकल में भारतीय संविधान की विशेषताओं 
 के बारे में जाना 

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2 thoughts on “भारतीय संविधान की विशेषताओं का वर्णन कीजिए”

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