संघात्मक शासन व्यवस्था किसे कहते है (sanghatmak shasan vyavastha kise kahate hain) –
राजनीति शास्त्रियों ने राष्ट्रीय सरकार एवं क्षेत्रीय सरकार के संबंधों की प्रकृति के आधार पर सरकार को दो भागों में विभाजित किया है – एकल शासन व्यवस्था एवं संघीय शासन व्यवस्था!
संघीय शासन व्यवस्था वह है जिसमें शक्तियां संविधान द्वारा केंद्र सरकार एवं क्षेत्रीय सरकार में विभाजित होती हैं! दोनों अपने अपने अधिकार क्षेत्रों का प्रयोग सफलतापूर्वक करते हैं! स्वीटजरलैंड, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, रूस, कनाडा, ब्राज़ील, अर्जेंटीना आदि में सरकार का संघीय मॉडल पाया जाता है!
संघीय मॉडल में राष्ट्रीय सरकार को संघ सरकार या केंद्र सरकार या संघीय सरकार के रूप में जाना जाता है और क्षेत्रीय सरकार को राज्य सरकार ने प्रांतीय सरकार के रूप में जाना जाता है!
भारत के संघीय व्यवस्था ‘कनाडाई मॉडल’ पर आधारित है! यह अत्यंत सशक्त केंद्रीय सरकार मॉडल को अपनाते हैं!
संघात्मक शासन व्यवस्था की परिभाषा (sanghatmak shasan vyavastha ki paribhasha) –
फाइनर – संघात्मक व्यवस्था में शक्ति और सत्ता का एक भाग इकाइयों में तथा एक भाग केंद्रीय सरकार में निहित रहता हैं! केंद्र का निर्माण स्थानीय क्षेत्रों द्वारा होता हैं!
गार्नर – संघात्मक शासन वह पद्वति है जिसमें समस्त शासकीय शक्ति एक केंद्रीय सरकार तथा उन विभिन्न राज्यों या क्षेत्रीय उपविभागों की सरकारों के बीच विभाजित रहती हैं, जिसको मिलाकर संघ का निर्माण होता हैं!
संघात्मक शासन व्यवस्था वाले देश (sanghatmak shasan vyavastha wale desh) –
स्वीटजरलैंड, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, रूस, कनाडा, ब्राज़ील, अर्जेंटीना आदि में सरकार का संघीय मॉडल पाया जाता है!
संघात्मक शासन व्यवस्था को अपनाने के कारण –
संविधान निर्माताओं ने संघीय शासन व्यवस्था को दो कारणों से अपनाया है; देश का वृहद आकार एवं सामाजिक सांस्कृतिक विविधता! उन्होंने महसूस किया कि संघीय व्यवस्था से न केवल सरकार की शक्ति बढ़ेगी बल्कि क्षेत्रीय स्वायत्तता और राष्ट्रीय एकता में भी वृद्धि होगी!
संघात्मक शासन व्यवस्था की विशेषताएं (sanghatmak shasan vyavastha ki visheshtaen) –
भारतीय संविधान की संघात्मक शासन प्रणाली की विशेषताएं इस प्रकार हैं –
(1) लिखित संविधान (likhit samvidhan) –
भारत का संविधान विश्व का सबसे लिखित संविधान है जिसमें संविधान निर्माण के समय 395 अनुच्छेद 22 भाग 8 अनुसूचियां थी वर्तमान समय में इसमें लगभग 450 से अधिक अनुच्छेद तथा 24 भाग और 12 अनुसूचियां हैं!
(2) शक्तियों का विभाजन (shaktiyon ka vibhajan)-
संविधान की सातवीं अनुसूची में केंद्र, राज्य एवं दोनों से संबंधित सूचियों के द्वारा शक्तियों का विभाजन किया गया! इन सूचियों में वर्णित विषयों पर केंद्र, राज्य एवं दोनों मिलकर कानून बनाते हैं और उन्हें लागू करते हैं!
केंद्र सूची में 100 विषय है ( मूलतः 97), राज्य सूची में 61 विषय है (मूलतः 66), और समवर्ती सूची में 52 सही है( मूलतः 47)! समवर्ती सूची में वर्णित विषयों पर केंद्र एवं राज्य दोनों कानून बना सकते हैं, परंतु टकराव की स्थिति में केंद्र सरकार द्वारा बनाया गया कानून ही मान्य होगा
(3) द्वैध पद्धति –
संविधान में संघ स्तर पर केंद्र एवं राज्य स्तर पर राज्य पद्धति को अपनाया गया है! प्रत्येक को संविधान द्वारा क्रमशः अपने-अपने क्षेत्र में संप्रभु शक्तियां प्रदान की गई! केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय महत्व के मामलों जैसे- रक्षा, मुद्रा, संचार, विदेश आदि को देखा जाता है, जबकि दूसरी ओर राज्य सरकार द्वारा क्षेत्रीय एवं स्थानीय महत्व के मुद्दों जैसे – सार्वजनिक व्यवस्था, कृषि, स्वास्थ्य, स्थानीय प्रशासन, पुलिस आदि को देखा जाता है!
(4) संविधान की सर्वोच्चता (samvidhan ki sarvochta) –
भारतीय संविधान, संविधान की सर्वोच्चता स्थापित करता है केंद्र या राज्य सरकार द्वारा प्रभावी कानून के विषय में इसकी व्यवस्था सुनिश्चित होनी चाहिए अन्यथा उन्हें उच्चतम न्यायालय या न्यायालय में न्यायिक समीक्षा के तहत आवेदक घोषित किया जा सकता है! इस तरह सरकारों को संविधान की सीमा में रहकर कार्य करना होता है!
(5) कठोर संविधान (kathor samvidhan) –
संविधान द्वारा शक्तियों का विभाजन एवं संविधान की सर्वोच्चता तभी बनाई जा रखी जा सकती है, जब संविधान में संशोधन की प्रक्रिया कठोर हो! भारतीय संविधान में संशोधन इस सीमा तक कठोर है जिससे पे प्रावधान जो संघ की संरचना से संबंधित है मात्र केंद्र एवं राज्य सरकारों की समान संस्तुति से ही संशोधित किए जा सकते हैं!
(6) स्वतंत्र न्यायपालिका (swatantra nyaypalika) –
भारतीय संविधान द्वारा स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना की गई है! संविधान में दो कारणों से उच्चतम न्यायालय के नेतृत्व में स्वतंत्र न्यायपालिका गठन किया है! एक, अपनी न्यायिक सीमा के अधिकार का प्रयोग कर संविधान की सर्वोच्चता को स्थापित करना और दूसरा, केंद्र एवं राज्य के बीच विवादों के निपटारे के लिए संविधान द्वारा न्यायालय को न्यायाधीशों के कार्यकाल की सुरक्षा, निश्चित सेवा शर्तें, अपने कर्मचारियों की नियुक्ति आदि की स्वतंत्रता प्रदान की गई है!
(7) द्विसदनीय व्यवस्था –
संविधान में द्विसदनीय विधायिका की स्थापना की गई है – राज्यसभा (उच्च सदन) और लोकसभा (निम्न सदन)! राज्यसभा भारत के राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है, जबकि लोकसभा भारत के लोगों का प्रतिनिधित्व करती है! राज्यसभा केंद्र के अनावश्यक हस्तक्षेप से राज्यों के हितों की रक्षा करती है!
संघात्मक शासन के दोष (sanghatmak shasan ke dosh) –
(1) विदेशी क्षेत्र में संघीय सरकार कमजोर होती है! राज्य सरकार संधियों को कार्यरूप में परिणत करने में अनेक अवरोध उत्पन्न कर सकती है!
(2) संघीय सरकार ज्यादा खर्चीली होती है क्योंकि इसमें दो तरह की सरकारों की आवश्यकता होती है!
(3) संघीय सरकार एक कमजोर सरकार होती है, क्योंकि यह शक्तियों के विभाजन पर आधारित होती है!
(4) संघीय शासन व्यवस्था में राष्ट्रीय हितों एवं स्थानीय हितों के मध्य टकराव की संभावना हमेशा बनी रहती हैं!
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