भारतीय संविधान और संविधान सभा की आलोचना के कारण बताइए

भारतीय संविधान की आलोचना के  कारण (Bhartiya Samvidhan Ki Aalochana Ke Karan) –

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भारतीय संविधान निर्माताओं द्वारा संविधान का निर्माण बहुत सोच समझकर किया गया है उन्होंने इसके निर्माण में काफी समय भी लिया परंतु, भारतीय संविधान की आलोचकों द्वारा निम्न आधार पर संविधान की आलोचना की जाती है! 

(1) 1935 के अधिनियम की कार्बन कॉपी (Carbon Copy of the Act 1935) –

आलोचकों के अनुसार भारतीय संविधान भारत शासन अधिनियम 1935 की कार्बन कॉपी है, क्योंकि संविधान निर्माताओं ने काफी ज्यादा प्रावधान इस अधिनियम से लिए हैं जिससे सविधान 1935 के अधिनियम की कार्बन कॉपी बनकर रह गया है! 

ब्रिटिश संविधानवेता आईवर जेनिंग्स के अनुसार, संविधान भारत सरकार अधिनियम 1935 से सीधे निकलता है, जहां से वास्तव में अधिकांश प्रावधानों के पाठ बिल्कुल उतार लिए गए हैं! 

(2) उधार का संविधान (Constitution of Borrowing) –

आलोचकों के अनुसार भारतीय संविधान उधार का संविधान है,क्योंकि भारतीय संविधान में नया और मौलिक कुछ भी नहीं है! आलोचकों के अनुसार भारतीय संविधान में जो प्रावधान है उसमें से अधिकांश विभिन्न देशों से लिए गए हैं! 

लेकिन इसकी आलोचना पक्षपातपूर्ण एवं अतार्किक है, क्योंकि संविधान बनाने वालों ने अन्य संविधान के आवश्यक तत्व संशोधन करके ही भारतीय परिस्थितियों में उनकी उपयोगिता के आधार पर उनकी कमियों को दरकिनार करके ही स्वीकार किया है! 

(3) महाकाय आकार (giant size) –

आलोचक के अनुसार भारतीय संविधान बहुत विशाल और बहुत विस्तृत है, इसमें अनेक अनावश्यक तत्व को भी शामिल किया गया है जिसके कारण इसके आकार में बहुत ज्यादा वृद्धि हो गई! 

ब्रिटिश संविधानवेता सर आइवर जेनिंग्स के अनुसार,जो प्रावधान बाहर से लिए गए हैं उनका चयन बेहतर नहीं है और संविधान सामान्य रूप से कहीं, तो बहुत लंबा और जटिल है! 

संविधान सभा के सदस्य एच. वी. कामथ के अनुसार – ”प्रस्तावना, जिस किरीट का हमने अपने सभा के लिए चयन किया है, वह एक हाथी है! यह शायद इस तथ्य के अनुरूप है कि हमारा संविधान में दुनिया में बने तमाम संविधान में सबसे भीमकाय है!” उन्होंने यह भी कहा कि -“मुझे विश्वास है सदन इस पर सहमत नहीं होगा कि हमने एक हाथीनुमा संविधान बनाया है! ”

(4) अभारतीय अथवा भारतीयता विरोधी (non-Indian or anti-Indian) – 

आलोचकों के अनुसार भारत का संविधान ‘अ-भारतीय’ या ‘भारतीयता विरोधी’ है क्योंकि यह भारत की राजनीतिक परंपराओं अथवा भावना का प्रतिनिधित्व नहीं करता जिसके कारण यह भारतीय परिस्थितियों के लिए अनुपयुक्त एवं अकारण है! 

भारतीय संविधान सभा के सदस्य लक्ष्मीनारायण साहू का कहना था- “जिन आदर्शों पर यह प्रारूप सविधान गढ़ा गया है भारत की मूलभूत आत्मा उनमें प्रकट नहीं होती! यह संविधान उपयुक्त सिद्ध नहीं होगा और लागू होने के फौरन बाद ही टूट जाएगा!”

(5) गांधीवादी दर्शन से दूर (away from Gandhian philosophy) – 

आलोचकों के अनुसार भारत का संविधान गांधीवादी दर्शन और मूल्यों का प्रतिनिधित्व नहीं करता, क्योंकि गांधी जी हमारे राष्ट्रपिता हैं उनका कहना था कि संविधान ग्राम पंचायत तथा जिला पंचायत के आधार पर निर्मित होना चाहिए! गांधीजी तो राज्य की अवधारणा को स्वीकार नहीं करते थे गांधी जी का मानना था कि राज्य शोषण का साधन है! 

संविधानसभा के सदस्य के. हनुमथैय्या के अनुसार -” यह वही संविधान है इसे महात्मा गांधी कभी नहीं चाहते, नहीं सविधान को उन्होंने विचार किया होगा!” टी. प्रकाशम के अनुसार सभा के एक और सदस्य, इस कमी का कारण गांधी जी के आंदोलन में अंबेडकर की सहभागिता नहीं होना, साथ ही गांधीवादी विचारों के प्रति उनका तीव्र विरोध बताते हैं

(6) वकीलों का स्वर्ग (lawyers’ paradise)- 

आलोचकों के अनुसार भारत का संविधान अत्यंत विधिवादितापूर्ण तथा बहुत जटिल है, उनके अनुसार संविधान में जिस कानूनी भाषा और मुहावरे को शामिल किया गया है उनके चलते संविधान एक जटिल दस्तावेज बन गया है क्योंकि यह सामान्य व्यक्ति के समझ से परे है! संविधान सभा में वकीलों का बहुमत था इसलिए इसे वकीलों का स्वर्ग भी कहा जाता है! 

संविधान सभा के सदस्य एच. के. माहेश्वरी का कहना था कि -“प्रारूप लोगों को अधिक मुकदमेबाज बनाता है अदालतों की और अधिक उन्मुख होंगे, वह कम सत्य निष्ठा होंगे और सत्य और अहिंसा के तरीकों का पालन नहीं करेंगे! यदि मैं ऐसा कह सकू तो यह प्रारूप वास्तव में ‘वकीलों का स्वर्ग‘ है! यह वाद या मुकदमों की व्यापक संभावना खोलता है और हमारे योग्य और बुद्धिमान वकीलों के हाथ में बहुत सारा काम देने वाला है!”

अन्य सदस्य पी.आर. देशमुख के अनुसार -” मैं यह कहना चाहूंगा कि सदन के समक्ष डॉ. अंबेडकर ने जो अनुच्छेदों का प्रारूप प्रस्तुत किया है, मेरी समझ से अत्यंत भारी भरकम है, जैसा कि एक भारी-भरकम जिल्दवाला विधि-ग्रंथ हो! संविधान से संबंधित कोई दस्तावेज इतना अधिक अनावश्यक विस्तार तथा शब्दाडम्बर का इस्तेमाल नहीं करता! शायद उनके लिए ऐसे दस्तावेज को तैयार करना कठिन था जिसे, मेरी समझ से विधि ग्रंथ नहीं बल्कि एक सामाजिक राजनीतिक दस्तावेज होना था, एक जीवंत स्पंदनयुक्त जीवनदायी दस्तावेज! लेकिन हमारा दुर्भाग्य है कि ऐसा नहीं हुआ और हम शब्दों और शब्दों से लग गए हैं जिन्हें बहुत आसानी से हटाया जा सकता था!”

संविधान सभा की आलोचना के कारण (Samvidhan Sabha ki Aalochana Ke Karan) –

संविधान सभा के निम्न आधारों पर आलोचना की जाती है criticism of the constitution in hindi

(1) यह प्रतिनिधि निकाय नहीं थी –

आलोचकों के अनुसार संविधान सभा प्रतिनिधि सभा नहीं थी, क्योंकि के सदस्यों का चुनाव भारत के लोगों द्वारा वयस्क मताधिकार के आधार पर नहीं हुआ था! 

(2) संप्रभुता का अभाव –

संविधान सभा एक संप्रभु निकाय नहीं थी, क्योंकि इसका निर्माण ब्रिटिश सरकार के प्रस्ताव के आधार पर हुआ था. संंविधान सभा अपनी बैठकों से पहले ब्रिटिश सरकार से अनुमति लेती थी! 

(3) समय की बर्बादी –

आलोचकों के अनुसार संविधान सभा ने संविधान निर्माण में जरूरत से ज्यादा समय ले लिया है, उन्होंने कहा कि अमेरिका के संविधान निर्माताओं ने मात्र 4 माह में अपना काम पूरा कर लिया था. संविधान सभा के सदस्य निराजउद्दीन अहमद ने प्रारूप समिति को अपवहन समिति कहां है! 

(4) कांग्रेस का प्रभुत्व – 

संविधान सभा में कांग्रेस का प्रभुत्व था! ब्रिटेन के संविधान विशेषज्ञ ग्रेनविले ऑस्टिन ने टिप्पणी की, कि “संविधान सभा एकदलीय देश का एकदलीय निकाय है, सभा ही कांग्रेस है और कांग्रेस ही भारत है!”

(5) वकीलों और राजनीतिज्ञों का प्रभुत्व – 

यह भी कहा जाता है कि संविधान सभा में वकील और नेताओं का बोलबाला था! उन्होंने कहा कि समाज के अन्य वर्गों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला! उनके अनुसार संविधान के आकार एवं उसकी जटिलता के पीछे भी यही मुख्य कारण है! 

प्रस्तावना की आलोचना के कारण (criticism of preamble of indian constitution in hindi)

विभिन्न व्यक्तियों द्वारा भारतीय संविधान की प्रस्तावना की आलोचना (Prastawana ki Aalochana ke karan) की गई है, जिससे निम्न बिंदुओं के अंतर्गत समझा जा सकता है –

(1) प्रस्तावना सैद्धांतिक आदर्श तो प्रस्तुत करती है, लेकिन कार्य विधि की चर्चा व्यवहार में स्पष्ट नहीं करती! 

(2) भारतीय संविधान की प्रस्तावना न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं है इसलिए इसका कोई कानूनी महत्व नहीं है! 

(3) प्रस्तावना में स्पष्टता का अभाव है, क्योंकि इसमें आदर्श एवं लक्ष्य को सही ढंग से परिभाषित नहीं किया गया! 

(4) प्रस्तावना सिद्धान्तत: ना तो विधायिका शक्ति का स्त्रोत है और नहीं उसकी शक्तियों पर प्रतिबंध लगाती है! 

प्रश्न :- भारत के संविधान की आलोचना के 4 बिंदु लिखिए

उत्तर :- आलोचकों के अनुसार भारतीय संविधान भारत शासन अधिनियम 1935 की कार्बन कॉपी है, क्योंकि संविधान निर्माताओं ने काफी ज्यादा प्रावधान इस अधिनियम से लिए हैं जिससे सविधान 1935 के अधिनियम की कार्बन कॉपी बनकर रह गया है!

(2) आलोचकों के अनुसार भारतीय संविधान उधार का संविधान है,क्योंकि भारतीय संविधान में नया और मौलिक कुछ भी नहीं है! आलोचकों के अनुसार भारतीय संविधान में जो प्रावधान है उसमें से अधिकांश विभिन्न देशों से लिए गए हैं!

(3)आलोचक के अनुसार भारतीय संविधान बहुत विशाल और बहुत विस्तृत है, इसमें अनेक अनावश्यक तत्व को भी शामिल किया गया है जिसके कारण इसके आकार में बहुत ज्यादा वृद्धि हो गई!

(4)आलोचकों के अनुसार भारत का संविधान ‘अ-भारतीय’ या ‘भारतीयता विरोधी’ है क्योंकि यह भारत की राजनीतिक परंपराओं अथवा भावना का प्रतिनिधित्व नहीं करता जिसके कारण यह भारतीय परिस्थितियों के लिए अनुपयुक्त एवं अकारण है!

(5)आलोचकों के अनुसार भारत का संविधान गांधीवादी दर्शन और मूल्यों का प्रतिनिधित्व नहीं करता, क्योंकि गांधी जी हमारे राष्ट्रपिता हैं उनका कहना था कि संविधान ग्राम पंचायत तथा जिला पंचायत के आधार पर निर्मित होना चाहिए! गांधीजी तो राज्य की अवधारणा को स्वीकार नहीं करते थे गांधी जी का मानना था कि राज्य शोषण का साधन है!

(6)आलोचकों के अनुसार भारत का संविधान अत्यंत विधिवादितापूर्ण तथा बहुत जटिल है, उनके अनुसार संविधान में जिस कानूनी भाषा और मुहावरे को शामिल किया गया है उनके चलते संविधान एक जटिल दस्तावेज बन गया है क्योंकि यह सामान्य व्यक्ति के समझ से परे है! संविधान सभा में वकीलों का बहुमत था इसलिए इसे वकीलों का स्वर्ग भी कहा जाता है!

FAQ –

प्रश्न:- भारतीय संविधान की प्रस्तावना की आलोचना के कारण बताइए

(1)प्रस्तावना में स्पष्टता का अभाव है, क्योंकि इसमें आदर्श एवं लक्ष्य को सही ढंग से परिभाषित नहीं किया गया! 

(2)प्रस्तावना सिद्धान्तत: ना तो विधायिका शक्ति का स्त्रोत है और नहीं उसकी शक्तियों पर प्रतिबंध लगाती है! 

(3) प्रस्तावना सैद्धांतिक आदर्श तो प्रस्तुत करती है, लेकिन कार्य विधि की चर्चा व्यवहार में स्पष्ट नहीं करती! 

(4) भारतीय संविधान की प्रस्तावना न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं है इसलिए इसका कोई कानूनी महत्व नहीं है! 

प्रश्न :- भारतीय संविधान वकीलों का स्वर्ग है किसने कहा

उत्तर :- भारतीय संविधान वकीलों का स्वर्ग है संविधान सभा के सदस्य एच. के. माहेश्वरी का कहना था उनके अनुसार प्रारूप लोगों को अधिक मुकदमेबाज बनाता है अदालतों की और अधिक उन्मुख होंगे, वह कम सत्य निष्ठा होंगे और सत्य और अहिंसा के तरीकों का पालन नहीं करेंगे! यदि मैं ऐसा कह सकू तो यह प्रारूप वास्तव में ‘वकीलों का स्वर्ग‘ है!

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