सूर्यातप क्या है (suryatap kya hai) –
सूर्यातप का शाब्दिक अर्थ होता है – आवक सौर विकिरण! सूर्य से पृथ्वी तक पहुंचने वाले सौर विकिरण ऊर्जा को सूर्यातप (Suryatap) कहते हैं! अर्थात सौर्यिक ऊर्जा को ही सूर्यातप (Insolation) कहा जाता है!
पृथ्वी का जीव मंडलीय परिस्थितिकी तंत्र को 3 मौलिक की स्त्रोतों से ऊर्जा की प्राप्ति होती है – सौर विकिरण, पृथ्वी का गुरुत्व तथा अंतर्जात बलों द्वारा! परंतु सौर विकिरण पृथ्वी की ऊर्जा का प्रमुख स्त्रोत है! सूर्य की ऊर्जा ही सूर्यातप है! यह ऊर्जा लघु तरंगों के रूप में सूर्य से पृथ्वी पर पहुंचती है! वायुमंडल की बाहरी सीमा पर सूर्य से प्रति मिनट प्रति वर्ग सेमी. पर 1.94 कैलोरी ऊष्मा प्राप्त होती है!
किसी भी सतह को प्राप्त होने वाले सूर्यातप की मात्रा एवं उसी सतह से परावर्तित की जाने वाली सूर्यातप की मात्रा के बीच का अनुपात एल्बिडो (albedo) कहलाता है! सौर विकिरण का यह परावर्तन लघु तरंगों के रूप में ही होता है!
जब सूर्य का प्रकाश पृथ्वी पर पहुंचता है तो इससे पृथ्वी को उष्मा की प्राप्ति होती है वायुमंडल की बाहरी सीमा पर प्राप्त होने वाले सौर विकिरण का लगभग 32% भाग बादलों की सतह से परावर्तित तथा धूल कानों से प्रकरण इस होकर अंतरिक्ष में लौट जाता है सूर्य तथा लगभग 2% भाग धरातल से परावर्तित होकर अंतरिक्ष में वापस चला जाता है इस प्रकार सौर विकिरण का 34% भाग धरातल को गर्म करने के काम में नहीं आता!
पृथ्वी सौर्यिक विकिरण द्वारा प्रसारित ऊर्जा का 51% भाग प्राप्त करती है! वायुमंडल सौर्यिक ऊर्जा का केवल 14% ही ग्रहण पर पता है! पूर्ण मेघाच्छादन के समय सूर्य के प्रकाश में कमी का मूल कारण परावर्तन होता है, न कि अवशोषण!
पृथ्वी की सतह पर सूर्य ताप में पर्याप्त विभिन्नता दिखाई देती है तथा सूर्यातप की मात्रा में प्रतिदिन, हर मौसम और प्रतिवर्ष परिवर्तन होता रहता है! सूर्यातप में होने वाली यह विभिन्नता कई कारकों पर निर्भर करती है! जैसे – पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमना, सूर्य की किरणों का नति कोण, दिन की अवधि, वायुमंडल की पारदर्शिता, स्थल विन्यास इत्यादि!
सूर्यातप को प्रभावित करने वाले कारक (Suryatap ko prabhavit karne wale karak) –
धरातल पर सूर्यातप की मात्रा संसार के विभिन्न भागों में भिन्न-भिन्न होती है! सौर स्थिरांक, सूर्य की किरणों का कोण, सौर विकिरण की अवधि, सूर्य से पृथ्वी की दूरी, धरातल की प्रकृति आदि कारक धरातल पर प्राप्त होने वाले सूर्यातप की मात्रा को निर्धारित करते हैं! सूर्यातप को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक इस प्रकार हैं –
(1) भूमि का ढाल –
पृथ्वी की अपनी स्थिति के कारण भूमि का ढाल भी सूर्यातप की मात्रा को प्रभावित करता है! उत्तरी गोलार्ध में उत्तर ढालों की अपेक्षा दक्षिण ढाल अधिक सुरक्षा प्राप्त करता है, क्योंकि इन ढालों पर सूर्य की किरण अपेक्षाकृत सीधी पड़ती है!
(2) जल और स्थल का प्रभाव –
जल और स्थल भिन्न-भन्न तापमान पर गर्म और ठंडे होते हैं अतः धरातल में जल और स्थल का वितरण भी सूर्यातप की मात्रा को प्रभावित करता है!
(3) धरातल का रंग एवं प्रकृति –
धरातल की कुछ वस्तुएं सूर्यातप को अधिक परावर्तित करती है और कुछ कम! जैसे धरातल पर बिछी गहरे एवं काले रंग की चट्टाने और साधारण मिट्टी वाला धरातल सूर्यातप को अधिक जल्दी अवशोषित करता है, जबकि हल्के रंग की चट्टाने तथा पथरीली बर्फीले एवं वनस्पति से ढॅंके धरातल काफी चिकने और चमकदार होते हैं जो सूर्यताप के अधिकांश भाग को परावर्तित कर देते हैं!
(4) सूर्य की किरणों का तिरछापन (Aagle of the Sun Rays) –
सूर्यातप की प्राप्ति सूर्य की किरणों के लम्बव या तिरछे पड़ने पर निर्भर करती है। लम्बवत् किरणें तिरछी किरणों की अपेक्षा कम वायुमण्डल पार करती हैं और कम स्थान घेरती है। अतः लम्बवत् किरणें तिरछी किरणों की अपेक्षा अधिक सूर्यातप प्रदान करती हैं। यही कारण है कि भूमध्य रेखीय क्षेत्र में सूर्यातप की प्राप्ति अधिक और ध्रुवों की ओर क्रमशः कम होती जाती है।
सौर स्थिरांक किसे कहते हैं (saur sthirank kise kahte hai) –
पृथ्वी की सतह के प्रति इकाई क्षेत्रफल पर सूर्य से प्राप्त ऊर्जा प्रायः स्थिर रहतीं है, इसे ही सौर स्थरांक (solar constant) कहते हैं! सौर स्थरांक सूर्य की विकिरण की दर को प्रभावित करताहैं!
प्रश्न :- एल्बिडो किसे कहते हैं (albedo kise kahate hain)
उत्तर :- किसी भी सतह को प्राप्त होने वाले सूर्यातप की मात्रा एवं उसी सतह से परावर्तित की जाने वाली सूर्यातप की मात्रा के बीच का अनुपात एल्बिडो (albedo) कहलाता है!
प्रश्न :- पृथ्वी के किस भाग में सूर्य ताप अधिकतम प्राप्त होता है?
उत्तर :- पृथ्वी के निम्न अक्षांशीय या अयनवर्ती मण्डल में सूर्य ताप अधिकतम प्राप्त होता है! इस सूर्यताप मंडल का विस्तार कर्क तथा मकर रेखाओं के बीच पाया जाता है! सूर्य के उत्तरायण एवं दक्षिणायन होने के कारण इस मंडल में प्रत्येक स्थान पर सूर्य की किरणें वर्ष में दो बार लंबवत पड़ती है, परिणामस्वरूप प्रत्येक स्थान वर्ष में दो बार अधिकतम तथा दो बार न्यूनतम सूर्यातप प्राप्त करता है!
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