तड़ित झंझा क्या है (tadit jhanjha kya hai) –
तड़ित झंझा एक तीव्र स्थानीय झंझावात होता है जिनमें विस्तृत एवं घने कपासी वर्षा मेंघ होते हैं तथा नीचे से ऊपर की ओर प्रबल हवा चलती है!
तड़ित झंझाओं की संरचना (tadit jhanjha ki sanrachna) –
तड़ित झंझाओं की उत्पत्ति का प्रमुख आधार है संवाहनिक धाराएं हैं संवाहिक कोशिकाओं में हवाएँ नीचे से ऊपर की ओर चलती है! ये कोशिकाएं तीन अवस्था में होती है – युवावस्था, प्रौढ़ावस्था एवं जीर्णावस्था! तड़ित झंझा में कोशिकाएं अपने विकास की विभिन्न अवस्था में हो सकती है!
प्रथम अवस्था में पवने नीचे से ऊपर की ओर चलती है जिसे कपासी अवस्था कहते हैं इसमें पवनें किनारे से खिचकर ऊपर की ओर उठती है जिससे धीरे-धीरे बादलों का विकास होता है! द्वितीय अवस्था (प्रौढ़ावस्था) में पवनें ऊपर-नीचे दोनों ओर चलती है!
जब पवनें ऊपर उठती है तो ठंडी होती है जिसके वर्षा में सहायक होती है! वृतीय अवस्था (विलीन अवस्था) में ऊपर से नीचे उतरने वाली पवनें धरातल पर फेल जाती है, क्योंकि ये पवनें में ठंड़ी होती है! इस अवस्था में वायु का ऊपर उठना बंद हो जाता है! इस अवस्था में आकाश में उच्चस्तरीय तथा पक्षाभ कपासी बादल फैल जाते हैं!
तड़ित झंझा की उत्पत्ति (tadit jhanjha ki utpatti) –
(1) पवन का ऊपर की ओर तीव्र प्रवाह आवश्यक है! पवनों के ऊपर उठने के लिए तापमान अधिक होना चाहिए, क्योंकि हवाएँ गर्म होकर हल्की हो जाती है अतः ऊपर उठती है! ऐसी परिस्थितियां अधिकतर ग्रीष्मकाल में होती है! इन दिनों में अत्याधिक गर्मी से धरातल गर्म हो जाता है तथा संवहनीय धाराएं उत्पन्न हो जाती है! इस प्रकार गर्म आर्द्र अस्थिर पवन का होना अत्यावश्यक है!
(2) संघनन से बादलों का निर्माण होता है! जब संघनन क्रिया में बादल बनने लगते हैं तो उससे मेघ आधार या मेघ तल कहते हैं! हिमतल वह तल होता है जिस पर जलकण हिमकण में बदलते हैं! तड़ित झंझा की उत्पत्ति के लिए मेघतल एवं हिमतल के मध्य मोटाई अधिक होनी चाहिए! मध्य अक्षांशों में कम ऊंचाई पर हिमांक आ जाने से तड़ित झंझा का विकास नहीं हो पाता!
तड़ित झंझा के प्रकार (tadit jhanjha ke prakar ) –
तड़ित झंझा को दो भागों में बांटा जा सकता है –
(1) वायुराशि जनित तडित झंझा
(2) वाताग्र तडित झंझा
तड़ित झंझा की विशेषताएं (tadit jhanjha ki visheshtayen) –
(1) बादलों का गर्जना –
विद्युत चमकने से तापमान में वृद्धि होती है! तापमान में वृद्धि होने से हवा गर्म होकर फैलती है जिससे आवाज होती है! वायु के फैलने से बादलों में होने वाली आवाज को मेघ गर्जन कहा जाता है!
(2) तीव्रवात –
ऊपर से नीचे उतरती हुई ठंडी हवा को तीव्रवात कहा जाता है अर्थात झंझावात के पूर्व विकसित होने पर जब वर्षा प्रारंभ हो जाती है तो हवा भारी होकर नीचे उतरती है तथा धरातल पर फैलने लगती है!
(3) वर्षा –
तड़ित झंझा में वर्षा अल्पकालिक किंतु घनघोर होती है, क्योंकि वायु तेजी से ऊपर उठकर संघनित होती है! इसके साथ-साथ ग्रीष्मकाल में उच्च तापमान के कारण निरपेक्ष आर्द्रता की अधिकता हो जाती है!
(4) बिजली का चमकना –
संवाहनिक धाराओं के उत्पन्न होने के कारण बिजली का चमकना प्रारंभ हो जाता है! वायुमंडल के ऊपरी भाग में जल वाष्प के एकत्रित हो जाने से वह घनीभूत होकर बड़ी-बड़ी बूंदों के रूप में धरातल पर गिरने लगती है! इन बूंदों में धनात्मक एवं ऋणात्मक आवेश होते हैं! बूंदों के नीचे गिरने से इन पर धनात्मक एवं ऋणात्मक दोनों आवेशित होते हैं जिससे विद्युत चमकती है!
तड़ित झंझा का वितरण (tadit jhanjha ka vitran) –
तड़ित झंझा का संबंध उच्च तापमान, उच्च आर्द्रता तथा अभिसरण से है! अतः इसकी सर्वाधिक उत्पत्ति विषुवत रेखीय प्रदेशों में होती है! विषुवत रेखीय प्रदेशों में वर्ष के 80 से 150 दिन तक तडित झंझा उत्पन्न होते हैं किंतु कहीं-कहीं तो 200 दिनों तक इनकी उत्पत्ति होती है!
विषुवत रेखा से ध्रुवों की ओर जाने पर इनकी उत्पत्ति के दिन कम होते जाते हैं मध्य अक्षांशों से उनकी उत्पत्ति के दिन 45 से 60 दिन होते हैं! उच्च अक्षांशों में शीतोष्ण कटिबंध चक्रवात के साथ इनकी उत्पत्ति होती है जो प्रायः 5 से 80 दिन तक होती है!
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