सूखा आपदा क्या है सूखा आपदा के प्रकार, कारण एवं प्रभाव (sukha)

सूखा आपदा क्या है (sukha aapda kya hai) –

सूखा (sukha), एक ऐसा प्राकृतिक संकट है, जो कि एक मौसम में अथवा उससे भी अधिक समय पर सामान्य वर्षा के न होने का परिणाम होता है! 

दूसरे शब्दों में सूखा एक ऐसी परिस्थिति है, जिसके तहत् एक क्षेत्र विशेष में वर्षा के अभाव में लंबे समय के लिए जल तथा नमी की कमी हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप प्राकृतिक वनस्पतियाँ समाप्त होने लगती है एवं शाकाहारी पशुओं को संकट का सामना करना पड़ता है और वे मरने लगते हैं! 

यह एक ऐसी आपदा हैं, जिसमें कोई त्वरित बचाव कार्य कार्य संभव नहीं हो पाता हैं! वर्षा के अभाव में ऐसे क्षेत्रों में कृषि कार्य नहीं होने के कारण धीरे धीरे इन क्षेत्रों से लोगों तथा पशुओं का पलायन होने लगता है! 

सूखा आपदा के प्रकार (sukha aapda ke prakar) – 

(1) सामान्य सूखा (samanya sukha) – 

कृषि के लिए 100 सेमी. औसत वर्षा की आवश्यकता होती हैं, परंतु कई प्रदेश ऐसे हैं, जहां 100 सेमी. से कम वर्षा होती है ऐसे क्षेत्रों में फसल उत्पादन के लिए सिंचाई की आवश्यकता होती है ऐसे चलते सामान्य सुखा से प्रभावित रहते हैं इन क्षेत्रों के अंतर्गत गुजरात एवं राजस्थान के जिला आते हैं! 

(2) मौसमी सूखा (mausami sukha) – 

भारतीय मौसम विभाग के अनुसार, मौसमी सूखा की स्थिति उत्पन्न होती है जब औसत वर्षा सामान्य से 75% या उससे कम होती हैं! मानसून के समय सामान्य से कम वर्षा होने या बौछार के बीच की अवधि लंबी होने से फसल सूखने लगती है! इसी कारण इस स्थिति को मौसमी सूखा कहा जाता है! 

(3) कृषिगत सूखा (krashigat sukha) –

जब मिट्टी की नमी इतनी कम हो जाएगी कि पौधों को उगने के लिए आवश्यक नमी उपलब्ध न हो, तो इस स्थिति को कृषिगत सुखा की स्थिति कहते हैं! सूखा कहीं कारणों से हो सकता है, जैसे – वर्षा का सामान्य से कम होना, मानसून का समय के बाद या समय के पूर्व आना, दो बौछार के बीच की अवधि का लंबा होना (मानसून ब्रेक) अलनीनो आदि! 

कुछ क्षेत्रों की मिट्टियां ऐसी होती है, जिससे पानी आसानी से लेकर भूमि में चला जाता है! इससे भूमि की ऊपरी सतह में नमी की कमी हो जाती है! कृषिगत सूखा या तो फसलों को विकसित नहीं होने देती या उसे बर्बाद कर देती है! 

(4) जलीय सूखा (jaliy sukha) – 

भूमिगत जल स्तर के कम होने एवं सतही जल जैसे तालाब, नहर आदि के सूखे से उत्पन्न सूखे की स्थिति को जलीय सूखा कहते हैं! यह सूखा तब आता है, जब लगातार दो बार मौसमी सूखा की स्थिति उत्पन्न होते हैं! 

सूखा आपदा के प्रभाव (sukha aapda ka prabhav) – 

अन्य प्राकृतिक आपदाओं से हटकर सूखे के कारण कोई संरचनात्मक क्षतियां नहीं होती हैं! इससे पढ़ने वाले विशिष्ट प्रभाव निम्नलिखित है –

(1) सूखे के कारण गरीबी में वृद्धि होती है तथा जीवन स्तर में गिरावट आ जाती है! 

(2) खाद्यान्न एवं अन्य वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि हो जाती है जिससे जनसाधारण की क्रय शक्ति में कमी आ जाती है! 

(3) सूखा पड़ने से मृदा की आर्द्रता में कमी आ जाती है और भूजल का स्तर काफी नीचे आ जाता है! इससे पौधों को पर्याप्त जल नहीं मिलता और वह सूख कर नष्ट हो जाते हैं! 

(4) सारा क्षेत्र बंजर दिखाई देता है! जलाशय से सूख जाते हैं और पालतू एवं अन्य प्राणियों की भारी क्षति होती है! 

(5) कृषि उपज में भारी कमी से मानव एवं पशुओं के लिए भोज्य पदार्थों की उपलब्धता में भारी कमी आ जाती है! 

(6) सूखे के कारण फसल बर्बाद होने से अन्न की कमी हो जाती है, इसे अकाल कहा जाता है! चारा कम होने की स्थिति को तृण अकाल कहा जाता है! जलापूर्ति की कमी जल अकाल कहलाती है! तीनों परिस्थितियां मिल जाए तो त्रि-अकाल कहलाती है जो सबसे अधिक विध्वंसक है!

सूखा आपदा से बचाव के उपाय (sukha aapda se bachne ke upay) –

(1) सूखा प्रभावित क्षेत्रों की पहचान कर उन्हें वर्षा के जल को इकट्ठा करने के लिए तालाब एवं जलाशयों का निर्माण किया जाना चाहिए ताकि सूखे की स्थिति में इन जलाशयों से खेती की सिंचाई की जा सके! 

(2) अधिक जल वाले क्षेत्रों में से कम जल वाले क्षेत्रों में नदी जल का अंतद्रोणी स्थानांतरण काफी हद तक सहायक सिद्ध हो सकता है! इसके लिए नदी जोड़ो परियोजना पर बल दिया जाना आवश्यक है! 

(3) सूखे से निपटने के लिए उन फसलों को उपजाया जाना चाहिए, जो शुष्क इलाकों में भी पैदा की जा सकती हैं एवं जिन्हें बहुत कम पानी की आवश्यकता पड़ती है! 

(4) वैसे परिवार जिनका जीविका उपार्जन का साधन कृषि एवं पशुचारण पर निर्भर है, उन्हें इन व्यवसायों पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहना चाहिए बल्कि अन्य वैकल्पिक व्यवसाय को भी विकसित करना चाहिए! 

(5) सूखे से बचने के लिए कृषि प्रधान क्षेत्रों में चारागाह तथा दूध उद्योग का विकास एक महत्वपूर्ण विकल्प हो सकता है! इससे सूखे की स्थिति में किसान अपनी जीविका सुचारू रूप से चला सकेगा! 

(6) कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सूखा रोधी फसलों की कृषि को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए! 

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