वर्षा किसे कहते हैं (Varsha kise kahate hain) –
जब जलवाष्प युक्त वायु तापमान में वृद्धि के कारण ऊपर उठती है और जब ऊपर जाने पर तापमान में कमी आती है, तो वायु में संघनन की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है! इस तरह बादलों का निर्माण होता है! कुछ समय पश्चात जल कणों की मात्रा इतनी अधिक हो जाती है कि वायु का विरोध इसे नहीं रोक पाता और यह जल बूंदों के रूप में धरातल गिरने लगता है जिसे वर्षा (Rainfall) कहते हैं अर्थात जब जलवाष्प की बूंदे जल के रूप में धरातल पर गिरती है, तो उसे वर्षा कहते हैं!

वर्षा के प्रकार (Varsha ke prakar) –
वर्षा के प्रकार (Varsha ke prakar) निम्न हैं –
(1) संवहनीय वर्षा
(2) पर्वतीय वर्षा
(3) चक्रवातीय वर्षा
(1) संवहनीय वर्षा किसे कहते है (samvahniya varsha kise kahate hai) –
जब भूतल बहुत गर्म हो जाता है, तो उसके साथ लगने वाली वायु भी गर्म हो जाती है! वायु गर्म होकर फैलती है और हल्की हो जाती है! यह हल्की वायु ऊपर उठने लगती है और संवहनीय धारा का निर्माण होता है! ऊपर जाकर यह वायु ठंडी हो जाती है और इसमें उपस्थित जलवाष्प का संघनन होने लगता है संघनन से कपासी मेघ बनते हैं जिससे घनघोर वर्षा होती है! इस प्रकार की वर्षा को संवहनीय वर्षा कहते हैं!
(2) पर्वतीय वर्षा किसे कहते हैं (parvatiya varsha kise kahate hain) –
जब जलवाष्प से युक्त गर्म वायु को किसी पर्वत या पठार की ढलान के साथ ऊपर चढ़ना पड़ता है, तो यह वायु ठंडी हो जाती है! ठंडी होने से यह संतृप्त हो जाती है और ऊपर चढ़ने से जलवाष्प का संघनन होने लगता है! जिससे वर्षा होती है! इसे पर्वतीय वर्षा कहते हैं! संसार में सर्वाधिक वर्षा इसी प्रकार की होती है!
(3) चक्रवाती वर्षा किसे कहते हैं (chakravarti varsha kise kahate hain) –
चक्रवात के आंतरिक भाग में जब ठंडी या गर्म होने आपस में टकराती है, तो ठंडी पवने, गर्म पवनों को ऊपर की ओर धकेलती है! ऊपर की ओर उठने वाली पवन ठंडी हो जाती और वर्षा करा देती है! इस प्रकार की वर्षा को चक्रवाती वर्षा कहा जाता है! यह वर्षा धीरे-धीरे किंतु लंबे समय तक होती है! मध्य अक्षांशों में होने वाली अधिकतर वर्षा चक्रवाती वर्षा होती है!
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