मृदा किसे कहते हैं? (Soil) मृदा निर्माण की प्रक्रिया, मृदा परिच्छेदिका, हयूमस

मृदा किसे कहते हैं (definition of Soil in hindi) –

Soil शब्द लैटिन भाषा के शब्द सोलम से लिया गया है, जिसका तात्पर्य पृथ्वी की ऊपरी सतह से है ! डाकु चैन को मृदा विज्ञान का जनक कहा जाता है !

धरातल पर प्राकृतिक तत्वों के समुच्चय जिसमें जीवित पदार्थ तथा पौधों को पोषित करने की क्षमता होती है ,मृदा कहलाती है ! मृदा एक परिवर्तनशील एवं विकासोन्मुख तत्व है जिसकी बहुत सी विशेषता मौसम के साथ बदलती रहती है!

मृदा निर्माण की प्रक्रिया (soil formation process in hindi)-

मृदा निर्माण की प्रक्रिया सर्वप्रथम अपक्षय की प्रक्रिया शुरू होती है ! अपक्षय और अपरदन के कारकों का चट्टानों में विघटन होता है! चट्टान के अपक्षयित पदार्थों के रंध्रो में कुछ वायुमंडल के गैसों जैसेे- नाइट्रोजन, ऑक्सीजन आदि का समावेश होता है

वर्षा वाले क्षेत्रों में इन रंध्रो में जल प्रवेश कर जाता है जिससे इनमें कई निकृष्ट पौधे नष्ट होते जैसे – कई , लाइकेन उगने लगते हैं ! इन निक्षेपो के अंदर कई सूक्ष्म जीवों भी आश्रय प्राप्त कर लेते हैं

जीव एवं पौधों की मृत अवशेष के एकत्रीकरण में सहायक होते हैं ! प्रारंभ में सूक्ष्म घास एवं फर्न की वृद्धि होती है, बाद में पक्षियों द्वारा लाए गए बीजों से वृक्ष एवं झाड़ियां उगने लगती है ! पौधों की जड़ें नीचे तक घुस जाती हैं! बिल बनाने वाले जानवर कणों को ऊपर लाते हैं,

जिससे पदार्थों का अंबार छिद्रमय एवं स्पंज की तरह हो जाता है! इस प्रकार जल धारण करने की क्षमता, वायु को प्रवेश आदि के कारण अंतत अपरिपक्व खनिज एवं जीव उत्पाद युक्त मृदा का निर्माण होता है!

मृदा निर्माण की प्रक्रिया के चरण (mrida nirmaan ki prakriya) –

मृदा का निर्माण चट्टानों के अवतारी से बने पेत्रक पदार्थों से होता है मृदा निर्माण की प्रक्रिया से मर्दा के विशेष प्रकार के स्तर का निर्माण होता है मृदा निर्माण के चरण निम्नलिखित हैं –
 
(1) ह्यूमिफीकेशन! 
(2) निक्षालन तथा निक्षेपण! 
(3) संस्तरीकरण! 
(4) कैलशिफिकेशन डिकेल्शिफिकेशन! 
(5) पॉडज़ालाइज़ेशन ! 
(6) लेटराइजेशन! 
(7) ग्लाईकरण! 
(8) लवणीकरण एवं क्षारीकरण! 
 

(1) ह्यूमिफीकेशन (humification) – 

मृदा की ऊपरी सतह पर एकत्रित पतियों तथा पौधों के अन्य भाग एवं मृतक जंतु मृदा कार्बनिक पदार्थों का स्त्रोंत हैं! इन कार्बनिक पदार्थों के संश्लेषण के संयुक्त प्रक्रम को ह्यूमिफीकेशन (humification) कहते हैं, जो हयूमस बनने की प्रक्रिया हैं! यह क्रिया मृदा की सतह पर हयूमस परत जिसे, o – संस्तर कहते हैं, बनाने में सहायक होती हैं! यह परत मुख्यतः जंगली क्षेत्रों में पायी जाती हैं! 
 

(2) निक्षालन तथा निक्षेपण – 

इस प्रक्रिया में मृदा की ऊपरी सतह के अवयव विलियन या निलंबन के रूप में ऊपरी सतह से निकल कर निचली सतह में चले जाते हैं या बह जाते हैं, अर्थात – अवयवों का मृदा की ऊपरी सतह से निकलना निक्षालन कहलाता है! इसलिए ऊपरी सतह को निक्षाली संस्तर भी कहते हैं
 
 

(3) संस्तरीकरण – 

मृदा में सभी संस्तरों का विकास होना संस्तरीकरण कहलाता हैं! 
 

(4) कैल्सिफीकेशन डिकैल्सिफीकेशन – 

कैल्सिफीकेशन का तात्पर्य है मृदा परिच्छेदिका में CaCO₃ का जमा होना! यह CaCO₃  अघुलनशील होता है, जिससे इसकी मात्रा लगातार बढ़ती जाती है! यह क्रिया मुख्यता कम वर्षा वाले क्षेत्रों में तथा मृदा के पैतृक पदार्थ में क्षारों की अधिक मात्रा के कारण होती है! इस प्रकार लीचिंग द्वारा मृदा से CaCO₃ का हटना डिकैल्सिफीकेशन कहलाता है! 

 
 

हयूमस किसे कहते है (hyumas kise kahte hai) –

मृत जैविक पदार्थ के अपघटन के पश्चात जो अंतिम उत्पाद प्राप्त होता है, उसे हयूमस कहते हैं! इसका रंग गाढ़ा भूरा या काला तथा चिपचिपा होता है जिसका स्वरूप संरचनाविहीन होता है! इसकी उपस्थिति मृदा में फिर या फिर मृदा सतह के नीचे होती है! यह मृदा की उर्वरता को बनाए रखता है! अलग-अलग मृदाओं में हयूमस की मात्रा अलग-अलग होती है! 

soil

मृदा निर्माण प्रक्रियाओं को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Soil Formation Processes in hindi) –

मृदा निर्माण को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक इस प्रकार हैं –

(1) जलवायु –

जलवायु मृदा निर्माण में एक महत्वपूर्ण सक्रिय कारक हैं मैदा के विकास में संलग्न जलवायु तत्वों में प्रमुख है ;

प्रवणता, वर्षा एवं वाष्पीकरण के बारंबारता व अवधि तथा आंद्रता.

आपका में मौसमी एवं दैनिक भिन्नता!

(2) मूल शैल –

मृदा निर्माण में मूल शैल एक निष्क्रिय नियंत्रक कारक है मूल शैल मृदा के निर्माण में लगने वाले समय, उसके रासायनिक संगठन संगठन, बनावट ,खनिज अंश तथा उर्वरता को भी प्रभावित करती है!

(3) स्थलाकृति(उच्चावच) –

मूल शैल की भांति स्थलाकृति भी एक दूसरा निष्क्रिय नियंत्रक कारक हैं! तीव्र ढालों वाले क्षेत्रों में मृदा छिछली और सपाट क्षेत्र में मृदा गहरी व मोटी होती है! निम्न ढाल वाली स्थलाकृतियों में जहां अपरदन मंद तथा जल का परिश्रवण अच्छा रहता है मृदा निर्माण के लिए बहुत अनुकूल होता है!
 

(4) जैविक क्रियाएं –

जैविक क्रियाएँ मृदा एवं जैव पदार्थ, नमी धारण की क्षमता तथा नाइट्रोजन इत्यादि जोड़ने में सहायक होती है! मृत पौधे मृदा को सूक्ष्म विभाजित जैव पदार्थ हयूमस प्रदान करते हैं! बैक्टीरियल कार्य की गहनता ठंडी एवं गर्म जलवायु की मिट्टियों में अंतर को दर्शाती है!

(5) समय –

मृदा का निर्माण बहुत धीरे-धीरे होता है! पूर्ण रूप से विकसित मृदा का निर्माण तभी होता है; जब भौतिक, रासायनिक और जैविक प्रक्रिया बहुत लंबे समय तक कार्य करती है! मृदा निर्माण की विभिन्न प्रक्रिया में लगने वाले समय की अवधि, मृदा की परिपक्वता एवं उसके पार्श्विक के विकास का निर्धारण करती है! 

(6) वाष्पीकरण –

मृदा सतह से नमी का वाष्पीकरण विभिन्न गतियों से होता है, क्योंकि यह वायुमंडल की आर्द्रता एवं ताप पर निर्भर होता है! नमी के अधिक होने पर वाष्पीकरण कम तथा ताप अधिक होने पर वाष्पीकरण अधिक होता है! वाष्पीकरण की मात्रा एवं गति को मृदा की रचना, संगठन, कणाकार, नमी की मात्रा तथा रंग आदि कार्य प्रभावित करते हैं! 

मृदा परिच्छेदका किसे कहते हैं (Soil Profile in hindi) –

किसी मृदा के ऊपरी सतह से लेकर उसके मूल चट्टान तक के मृदा स्तरों का एक ऊर्ध्वाधर खंड मृदा परिच्छेदिका कहलाता है!समान मूल चट्टान के समान स्तरों वाली मृदा परिच्छेदिकाओ की, उनकी अवस्थिति के कारण, विशेषताएं अलग-अलग हो सकती हैं!

मृदा संरचना क्या है (mrada sanrachna kya hai) –

मृदा प्राथमिक कण (बालू सिल्ट, तथा क्ले) एवं द्वितीयक कण (जो प्राथमिक कणों के पारस्परिक सहयोग से बनते हैं) से मिलकर बनी होती है! मृदा में ये कण कई प्रकार से व्यवस्थित होते हैं! मृदा के इन कणों की व्यवस्था एवं उनके समूच्चयों को मृदा संरचना कहते हैं!

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