राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (national human rights commission) , एक सांविधिक (संवैधानिक नही) निकाय है। इसका गठन संसद द्वारा पारित मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के अंतर्गत 12 अक्टूबर, 1993 को की गई थी! 2006 में इस अधिनियम को संशोधित किया गया।
यह आयोग देश में मानवाधिकारों का प्रहरी- अर्थात संविधान द्वारा अभिनिश्चित अंतर्राष्ट्रीय संधियों में निर्मित और भारत में न्यायालय द्वारा अधिरोपित किए जाने वाले जीवन, स्वतंत्रता, समता और व्यक्तिगत मर्यादा से संबंधित अधिकार।
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के स्थापना केे उद्देश्य –
(1) उन संस्थागत व्यवस्थाओं को मजबूत करना, जिसके द्वारा मानवाधिकार के मुद्दों का पूर्ण रूप में समाधान किया जा सके।
(2) अधिकारों के अतिक्रमण को सरकार से स्वतंत्र रूप में इस तरह से देखना ताकि सरकार का ध्यान उसके द्वारा मानवाधिकारों की रक्षा की प्रतिबद्धता पर केंद्रित किया जा सके!
(3) इस दिशा में किए गए प्रयासों को पूर्ण व सशक्त बनाना ।
आयोग एक बहु-सदस्यीय संस्था है, जिसमें एक अध्यक्ष व चार सदस्य होते हैं। आयोग का अध्यक्ष भारत का कोई सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश होना चाहिए। एक सदस्य उच्चतम न्यायालय में कार्यरत अथवा सेवानिवृत्त न्यायाधीश, एक उच्च न्यायालय का कार्यरत या सेवानिवृत मुख्य न्यायाधीश होना चाहिए।
दो अन्य व्यक्तियों को मानव अधिकार से संबंधित जानकारी अथवा कार्यानुभव होना चाहिए। इस पूर्णकालिक सदस्यों के अतिरिक्त आयोग में चार अन्य पदेन सदस्य भी होते हैं- राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, राष्ट्रीय राष्ट्रीय अनुसूचित जाति व राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग व राष्ट्रीय महिला आयोग के अध्यक्ष।
आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री के नेतृत्व में गठित छः सदस्यीय समिति की सिफारिश पर होती है। आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष अथवा जब उनकी उम्र 70 वर्ष हो (जो भी पहले हो), का होता है
rashtriya manav adhikar ayog ke karya निम्नानुसार है-
(1) मानवाधिकारो के उल्लंघन की जांच करना अथवा किसी लोक सेवक के समक्ष प्रस्तुत मानवाधिकार उल्लंघन की प्रार्थना, जिसकी कि वह अवहेलना करता हो, की जांच स्वप्रेरणा या न्यायालय के आदेश से करना ।
(2) आतंकवाद सहित सभी कारणों की समीक्षा करना जिनसे मानव अधिकारों का उल्लंघन होता है तथा इनसे बचाव के उपायों की सिफारिश करना।
(3) न्यायालय में लंबित किसी मानव अधिकार से संबंधित कार्यवाही में हस्तक्षेप करना।
(4) जेलों व बन्दीगृहों में जाकर वहां की स्थिति का अध्ययन करना व इस बारे में सिफारिशें करना।
(5) मानव अधिकार के क्षेत्र मैं कार्यरत गैर- सरकारी संगठनों के प्रयासों की सराहना करना ।
(6) मानव अधिकार की रक्षा हेतु बनाए गए संवैधानिक और विधिक उपबंधो की समीक्षा करना तथा उनके प्रभावी कार्यान्वयन हेतु उपायों की सिफारिश करना!
(7) मानव अधिकार को प्रोत्साहित करने के लिए यदि कोई अन्य कार्य आवश्यक हो तो उसे संपन्न करना!
rashtriya manav adhikar ayog ke mahatva इस प्रकार हैं! मानव अधिकार आयोग का कार्य वस्तुतः सिफारिश है या सलाहकार का होता है। आयोग मानवाधिकार उल्लंघन के दोषी को दंड देने का अधिकार नहीं रखता हैं। आयोग की सिफारिशें संबंधित सरकार अथवा अधिकारी पर बाध्य नहीं है।
परंतु उसकी सलाह पर की गई कार्यवाही पर उसे आयोग को एक महीने के भीतर सूचित करना होता है! इस संदर्भ में आयोग के पूर्व सदस्य ने यह पाया कि सरकार आयोग की सिफारिशों को पूर्णतः नहीं नकारती है। आयोग की भूमिका सिफारिश व सलाहकारी हो सकती है तथापि सरकार आयोग द्वारा दिए गए मामलों पर विचार करती है। इस प्रकार यह कहना व्यर्थ होगा कि आयोग शक्तिविहीन है
आयोग अपने अधिकारों का पूर्ण रूप से प्रयोग करता है और कोई भी सरकार इसकी सिफारिशों को नकार नहीं सकती ।
उत्तर :- राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन संसद द्वारा पारित मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के अंतर्गत हुआ था! 2006 में इस अधिनियम को संशोधित किया गया।
उत्तर :- मानवाधिकार आयोग का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है!
उत्तर :- राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग एक बहु सदस्यीय निकाय है। जिसके प्रथम अध्यक्ष न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्र थे। वर्तमान में (2021)न्यायमूर्ति अरुण कुमार मिश्रा इसके वर्तमान अध्यक्ष है।
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