मरुस्थलीकरण क्या है मरुस्थलीकरण के कारण, प्रभाव, लक्षण

मरुस्थलीकरण क्या है (marusthalikaran kya hai) –

 मरुस्थलीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जो शुष्क, अर्ध शुष्क एवं अल्प वर्षा वाले क्षेत्रों में होती है, जिसमें प्राकृतिक क्रियाओं एवं मानवीय क्रियाकलापों दोनों की भूमिका होती है। प्राकृतिक क्रियाओं के अंतर्गत वर्षा व तापमान का असमान वितरण एवं उच्च तापमान के साथ न्यूनतम वर्षा का होना, जबकि मानवीय क्रियाकलापों के अंतर्गत भूमिगत जल का अत्यधिक इस्तेमाल, औधोगिक गतिविधियों के लिए नदियों का रास्ता बदलना एवं अत्यधिक पशु चारण मरुस्थलीकरण के मुख्य कारक है ।

केंद्रीय शुष्क क्षेत्र शोधन संस्थान के अनुसार, मरुस्थलीकरण उन सभी प्रक्रमो का सामूहिक प्रभाव है, जिसके कारण किसी विशेष पारिस्थितिक तंत्र में मूलभूत बदलाव आते हैं एवं मरुस्थलीय क्षेत्र मरुस्थल में परिवर्तित होने लगता है। यह जलवायु एवं जैविक तत्वौ की क्रिया प्रतिक्रिया का परिणाम होता है। दूसरे शब्दों में, किसी मरुस्थल के आसपास के क्षेत्रों के गैर- मरुस्थल के विस्तार को मरुस्थलीकरण कहा जाता है ।

मरुस्थलीकरण के लक्षण (marusthalikaran ke lakshan) – 

किसी क्षेत्र में मरुस्थलीकरण की शुरुआत होने के लक्षण निम्नलिखित है- 
(1) मृदा में लवण की मात्रा का अधिक होना।

(2) नदियों एवं तालाबों की कमी।

(3) सापेक्षिक आर्द्रता का बहुत कम होना। 

(4) अनूपजाऊ तथा रेतीली मृदा का पाया जाना, जिसकी जल धारण क्षमता बहुत कम होती है। 

(5) मरुस्थली दशाओं के साथ अनुकूलित नहीं होने पर स्थानीय वनस्पतियों का अधिक समय तक जीवित नहीं रह पाना।

(6) मृदा अपरदन में अत्यधिक वृद्धि!

मरुस्थलीकरण क्या है (marusthalikaran kya hai)

मरुस्थलीकरण के कारण (marusthalikaran ke karan) – 

(1) अधिक वाष्पीकरण एवं कम वर्षा के कारण लवणता की मात्रा बढ़ जाती है।

 (2) सूखे की अधिकता के कारण वनस्पति आवरण कम हो जाता है। 

(3) दिन और रात के अत्यधिक तापीय अंतर के कारण भूपटल पर चट्टानें टूट जाती है, जिससे उत्पन्न रेतीली कण हवा द्वारा उड़ा ली जाती है।

(4) वनस्पति आवरण मे क्षति के फलस्वरुप वायुमंडल की नमी में कमी हो जाती है। 

(5) बढ़ती जनसंख्या के कारण वृक्षों का कटाव बढ़ गया है क्योंकि मनुष्य दिन प्रतिदिन भक्तों की तरफ से काट रहा है । मरुस्थलीय क्रिया में पर्यावरण की नमी में कमी एवं पारिस्थितिक तंत्र में परिवर्तन के फलस्वरुप शुष्कता का विस्तार होता है।

(6) अत्याधिक गर्मी के कारण हवा में जलधारण की शक्ति बढ़ जाती हैं, जिससे वर्षा नहीं होती है और मरूस्थलीयकरण को बढ़ावा मिलता हैं! 

(7) आदिकाल से वर्तमान तक मनुष्य स्थानांतरण कृषि कर रहा है! इस कृषि में जब एक जगह की उर्वरता खत्म हो जाती है, तो मनुष्य दूसरी जगह वृक्षों को काटकर वहां पर कृषि का कार्य करता है, जिससे मरुस्थलीकरण को बढ़ावा मिलता है!

भारत में राजस्थान के थार मरुस्थल के पूर्वी और उत्तरी सीमावर्ती क्षेत्रों में पड़ोसी राज्यों के कई भागों में मरुस्थलीकरण की समस्या है। डेजर्टिफिकेशन पर चौथी राष्ट्रीय रिपोर्ट, 2011 के अनुसार, भारत का लगभग 69 प्रतिशत क्षेत्र शुष्क एवं और अर्ध-शुष्क है। इनमें से देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 24.8 प्रतिशत क्षेत्र डेजर्टिफिकेशन की प्रक्रिया से गुजर रहा है। 

विश्व का लगभग 35 प्रतिशत भाग मरुस्थलीय है यूरोप के 2 प्रतिशत अमेरिका के 19 प्रतिशत एशिया के 31 प्रतिशत और अफ्रीका के 34 प्रतिशत आस्ट्रेलिया के 75 प्रतिशत भाग पर का मरूस्थल का विस्तार है। 

मरुस्थलीकरण के प्रभाव (marusthalikaran ke prabhav) – 

(1) यह वैश्विक जैव विविधता को कम करता है। विश्व की प्रमुख फसल फसल प्रजातियों जैसे गेहूं, जौ, सोरघम, मक्का आदि के उत्पत्ति केंद्र इससे विशेष रूप से प्रभावित हो रहे हैं।

(2)  यह पृथ्वी के बायोमास एवं जैव- उत्पादकता की क्षति का भी कारक है। साथ ही विश्व के ह्यूमस भंडार को भी क्षति पहुंचाता है।

(3) डेजर्टिफिकेशन का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव वैश्विक भूमि संपदा को क्षति पहुंचाना है, जिससे विश्व की बढ़ती जनसंख्या के लिए खाद्यान्न उपलब्धता को सुनिश्चित करने की क्षमता में कमी आती है, जिसके परिणाम स्वरूप निर्धनता और भूखमरी में वृद्धि होती है। ‌‌‌

(4) मरुस्थलीकरण से प्रभावित क्षेत्रों में आर्थिक अस्थिरता एवं राजनैतिक असंतोष बढ़ता है क्योंकि ऐसे क्षेत्रों में भूमि एवं जल संसाधन की कमी हो जाती है जिसके परिणामस्वरूप आश्रय एवं पोषण की तलाश में पलायन बढ़ जाता है। 

(5) मरुस्थलीकरण वृद्धि के कारण मरुस्थल की सीमा के बाहर स्थित अधिवासो की अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ जाता हे क्योंकि लोग अपने भोजन और अन्य जरूरतों की तलाश में वहीं आकर इकट्ठे हो जाते हैं यह पर्यावरणीय शरणार्थी समस्या को जन्म देता है।

(6) मरुस्थलीकरण के कारण वास्तविक स्थल क्षेत्रफल का विस्तार होता है! साथ ही स्थल के एल्बीडो में वृद्धि होती है और संभावित एवं वास्तविक वाष्पोत्सर्जन की दर में वृद्धि होती है, जिससे धरातलीय उर्जा बजट में और धरातल में संलग्न वायु के तापमान में परिवर्तन हो जाता है! इसके कारण हवा में धूलकण तथा कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा भी बढ़ जाती है!

मरुस्थलीकरण रोकने के उपाय (marusthalikaran rokane ke upay) –

(1) मरुस्थली क्षेत्रों में वनस्पति की कटाई पर रोक लगाना।

(2) चारागाह का विकास, जिससे पशुओं को चारा उपलब्ध हो सके और अनियंत्रित पशुचारण पर रोक लगाई जा सके।

(3) उचित प्रबंधन द्वारा भूमि संरक्षण किया जाना।

(4) उपलब्ध जल (भूमिगत एवं वर्षा) का उचित उपयोग किया जाना।

(5) नमी संरक्षण एवं शुष्क कृषि का विकास किया जाना।

(6) जहां जल उपलब्ध हो वहां उसका समुचित उपयोग करना, ताकि लवणता एवं संचयन से समस्या उत्पन्न ना हो।

(7) मरुस्थलीकरण की समस्या के प्रति विभिन्न संचार माध्यमों की सहायता से जनजागृति पैदा करना।

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