वैश्वीकरण क्या है (vaishvikaran kya hai) –
वैश्वीकरण (Globalization) से आशय संपूर्ण विश्व का परस्पर सहयोग एवं समन्वय से एक बाजार के रूप में कार्य करने से हैं! वैश्वीकरण की प्रक्रिया के अंतर्गत वस्तुओं और सेवाओं के एक देश से दूसरे देश में आने और जाने की अवरोधों को समाप्त कर दिया जाता है! इससे संपूर्ण विश्व में बाजार शक्तियां स्वंतत्र रूप से कार्य करने लगती हैं और परिणामस्वरूप वस्तुओं की कीमत सभी देशों में लगभग समान हो जाती है!
इस प्रकार वैश्वीकरण (vaishvikaran) के परिणामस्वरूप संपूर्ण विश्व के बाजारों का एकीकरण हो जाता है! अतः कहा जा सकता कि वैश्वीकरण की ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत सभी व्यापारियों क्रियाओं का अंतरराष्ट्रीयकरण हो जाता है और वह एक इकाई के रूप में कार्य करने लगते हैं!
वैश्वीकरण की परिभाषा (vaishvikaran ki paribhasha) –
वैश्वीकरण की प्रमुख परिभाषा इस प्रकार हैं –
मॅलकोल्म वेटर्स – वैश्वीकरण एक सामाजिक प्रक्रिया है जिसमें भूगोल द्वारा सामाजिक और सांस्कृतिक व्यवस्था को दबाया जाता है जिससे लोग इस बात के लिए जागरूक लगते हैं कि उनका प्रश्चप्रवण हो रहा है!
एंथनी गिडेंस – वैश्वीकरण (globalization) को दुनिया भर के सामाजिक संबंधों की गहनता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो दूर के इलाकों को इस तरह से जोड़ता है कि स्थानीय घटनाओं को कई मील की दूरी पर होने वाली घटनाओं से आकार मिलता है और बदले में, दूर की घटनाओं को स्थानीय घटनाओं द्वारा आकार दिया जाता है।”
इण्डा और रोसाल्डो – वैश्विक अनेक जटिल प्रक्रिया है इसमें आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संबंधों के माध्यम से विश्व अत्याधिक अंतसंबंधित हो रहा है इसमें वैश्वीकरण अंतर संबंद्भता का जीवीकरण आंदोलन तथा मिश्रण से परिपूर्ण विश्व संबंध और संपक्र चिरस्थाई सांस्कृतिक अंतक्रियाएं और विनियमन पर बल दिया जाता है!
थॉमस फाइडमैन – वैश्वीकरण वास्तव में बाजारों, अर्थव्यवस्था और प्रौद्योगिकी का एकीकरण है! इसमें विश्व का मध्यम से छोटे रूप में ऐसा संकुचन हो रहा है जिससे हम दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने तक इतनी जल्दी और सस्ते में पहुंच जाएं जितने में पहले कभी संभव नहीं था! पूर्व की सभी अंतरराष्ट्रीय व्यवस्थाओं की भांति यह प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में घरेलू राजनीतियों, आर्थिक नीतियों तथा सभी देशों के विदेशी संबंधों को स्वरूप प्रदान कर रहा है!
रोनाल्ड रॉबर्टसन – वैश्वीकरण एक अवधारणा के रूप में दुनिया के संकोचन और पूरे विश्व के रूप में दुनिया की चेतना की गहनता दोनों को संदर्भित करता हैं _ दोनों ठोस वैश्विक अन्योन्याश्रय और वैश्विक संपूर्णता की चेतना!
वैश्वीकरण के लिए उठाए गए कदम (Steps taken for globalization in hindi) –
(1) आयातों की दरों में कमी –
आयात पर सीमा शुल्क लगाया गया और निर्यात पर लगाए गए शुल्कों को धीरे-धीरे घटाया गया ताकि भारत की अर्थव्यवस्था वैश्विक निवेशक को के लिए आकर्षक बनाया जा सके!
(2) मुद्रा की आंशिक परिवर्तनशीलता –
आंशिक परिवर्तनशीलता का अर्थ है भारतीय मुद्रा को अन्य देशों की मुद्रा में एक निश्चित सीमा तक परिवर्तन करने से है! इसका सीधा फायदा यह हुआ कि विदेशी निवेशक या भारतीय निवेशक अपनी मुद्रा को आसानी से एक देश से दूसरे देश में ले जा सकते हैं!
(3) विदेशी निवेश की इक्विटी सीमा में बढ़ोतरी –
क्षेत्रों में विदेशी पूंजी निवेश की सीमा को 40 से लेकर 100% तक बढ़ा दिया गया! 47 उच्च प्राथमिक वाले उद्योगों में बिना किसी प्रतिबंधों के 100 % प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति दी गई इस नीति के लागू होने से भारत में विदेशी मुद्रा का भंडार को मजबूती प्रदान करेगा!
वैश्वीकरण के लाभ या सकारात्मक प्रभाव (Benefits of Globalization in hindi) –
vaishvikaran ke labh इस प्रकार हैं –
(1) विश्व अर्थव्यवस्था का एकीकरण –
सन 1980 क दशक में अमेरिका ने उदारीकरण की नीति का आरंभ की तथा खुली अर्थव्यवस्था और मुक्त बाजार प्रणाली लागू की! इसके परिणामस्वरूप विश्व अर्थव्यवस्था का एकीकरण प्रारंभ हुआ!
अविकसित तथा विकासशील राष्ट्रों की गरीबी वैश्विक समस्या के एजेंडे का महत्वपूर्ण विषय बन गई! गरीबी उन्मूलन अथवा नियंत्रण के लिए वैश्विक प्रयास आरंभ हुए तथा संबंधित नीतियों को निर्मित करने तथा इसके लिए कारगर उपाय ढूंढने के लिए सार्थक प्रयास आरंभ हुए!
(2) विश्व बाजार का एकीकरण –
वैश्वीकरण ने विश्व बाजार का एकीकरण किया है! विश्व बाजार के एकीकरण के परिणामस्वरूप दुनिया के अधिकांश देशों को दूसरे किसी भी देश के बाजार से माल खरीदने तथा उसमें अपना माल बेचने में सुगमता हो गयी है!
(3) संचार क्रांति (sanchar kranti) –
इसने दुनिया में नई जान फूंक दी है! जनसंचार के अत्याधुनिक साधन वैश्वीकरण के प्रमुख निर्वाहक थे! इन्होंने विश्व को एक ग्राम के रूप में परिवर्तित कर दिया है!
(4) कानून व्यवस्था का एकीकरण –
वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप कानून व्यवस्था का एकीकरण हो रहा है! कुछ देशों में विद्यमान दोषपूर्ण कानूनों को अंतरराष्ट्रीय कानूनों ने चुनौती दी है!
उदाहरण के लिए हम देख सकते हैं कि न्यूरेमबर्ग ट्रिब्यूनल कानून बना, इसमें प्रावधान है कि जहां भी मानवीय मूल्यों के रक्षार्थ अंतरराष्ट्रीय कानून और राज्य के कानूनों के बीच द्वंद्व की स्थिति हो तो ऐसे में व्यक्ति को वैकल्पिक रूप से अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पालन करने हेतु प्राथमिकता उपलब्ध होगी!
वैश्वीकरण की प्रक्रिया के एक स्वाभाविक परिणाम के रूप में मानव अधिकारों की वैश्विक स्तर पर वकालत के रूप में देखा जाता है! इसमें यूनाइटेड नेशन की भूमिका अग्रणी रही है!
दिसंबर, 1948 में संयुक्त राष्ट्र संगठन की महासभा ने मानव अधिकारों की विस्वजननी घोषणा जारी की! वास्तव में यह घोषणा एक स्वतंत्र, लोकतंत्र की और कल्याणकारी राज्य है हेतु उपयुक्त है और मानव अधिकारों के सर्वोत्तम योजना प्रस्तुत करती है!
(6) प्रगतिशील प्रतिस्पर्धा –
जितने अधिक उत्पादक होंगे, प्रतिस्पर्धा की मांग के अनुसार वस्तुओं एवं सेवाओं की गुणवत्ता भी उतनी ही बेहतर होगी और ऐसे किसी भी परिस्थिति से मात्र उपभोक्ता का ही लाभ होगा! जैसे-जैसे व्यापार अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को पार करता गया, वैसे-वैसे अधिकाधिक विकल्प उपलब्ध होते गए तथा मानक ऊॅंचे होते गए
(7) सांस्कृतिक आदान-प्रदान (sanskritik adan pradan) –
लोगों के विचारों अनुभव एवं जीवन शैली को परस्पर साझा किया जाना! लोग व्यंजनों एवं अन्य ऐसे उत्पादों का अनुभव कर सकते हैं जो इसके पहले उनके देशों में उपलब्ध नहीं रहे हैं! वैश्वीकरण के कारण आज हम दुनिया के अलग अलग भागों में मनाये जाने वाले त्यौहारों के बारे में जान पाए!
(8) अधिक सहिष्णुता –
सामाजिक तौर पर हम एक-दूसरे के प्रति और अधिक खुले हुए तथा सहिष्णु हो गए हैं तथा लोग जो विश्व के दूसरे भागों में निवास करते हैं, अब किसी और ग्रह के प्राणी नहीं समझे जाते हैं! एक ऐसी परिस्थिति का निर्माण कर दिया गया है जहां मानवाधिकार फल फूल सकते हैं!
वैश्वीकरण से हानियां (Disadvantages of Globalization in hindi) –
(1) निजीकरण (privatization) –
आर्थिक क्रियाओं के दायित्वों का राज्य से निजी क्षेत्र में हस्तांतरण की प्रक्रिया को निजीकरण कहते हैं! इसके कई रूप हो सकते हैं जो संबंधित दायित्वों की प्रकृति और हस्तांतरण किये जाने वालों पर निर्भर करता है! वास्तव में पूंजीवादी के कारण निजीकरण प्रभावी हुआ है! वैश्वीकरण ने निजी करण को तीव्र ऊर्जा एवं गति प्रदान की है!
(2) शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का निजीकरण –
शिक्षा और स्वास्थ्य प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार है! राज्य अन्य मदों से धन अर्जित करके शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं को नि:शुल्क अथवा न्यूनतम दर पर उपलब्ध कराए या कल्याणकारी राज्य की अवधारणा की दलील रही है!
इसे राष्ट् निर्माण का कार्य उत्कृष्ट तथा सम्यक रूप से चलता है! किंतु वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप गतिमान निजीकरण ने शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र का भी तेजी से निजीकरण किया है!
(3) उपभोक्तावाद (upbhokta wad) –
उपभोक्ता व्यवहार का एक ऐसा व्यवहार है जो कि किसी वस्तुओं को खरीदते समय, प्रयोग करते समय, मूल्यांकन करते समय, वस्तुओं को नष्ट करते समय, वस्तुओं से जुड़ी सेवाओं के बारे में आकांक्षा रखते समय उपभोक्ता द्वारा व्यवहार प्रकट होता है!
(4) बाजारवाद (bazarwad) –
1980 के दशक से राजनीतिक उपनिवेशवाद ने आर्थिक उपनिवेशवाद के रूप में पुनर्जन्म में ले लिया है! इसे वैसी व्यवस्था का नाम दिया गया है! इसमें विश्व बाजार का एकीकरण हो गया है!
(5) अंतरराष्ट्रीय वित्त एवं व्यापारिक संस्थाओं का विकासशील देशों पर प्रभाव –
विश्व बैंक, डब्ल्यूटीओ, आईएमएफ जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं वैश्वीकरण की प्रमुख एजेंसी के रूप में क्रियाशील है! आज भी विदेशी निवेश हेतु कृषि क्षेत्र मुक्त करने का दबाव पड़ रहा है! यह दबाव विश्व बैंक तथा आईएमएफ द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से डाला गया है! इनके द्वारा दलील दी गयी कि इस क्षेत्र के खुलने से सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का योगदान बढ़ जाएगा!
(6) नारी शोषण –
वैश्वीकरण ने नारी शोषण को बढ़ावा दिया हैं! वैश्वीकरण के इस युग में औरत के सौंदर्य को उपभोक्ता क्रांति का केंद्र बनाया गया हैं!वैश्वीकरण ने औरतों को लक्ष्यित करते समय नारी की वैयक्तिक विषमताओं पर एवं गौरव पर ध्यान नही दिया!
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