न्यायिक समीक्षा क्या है? न्यायिक समीक्षा का महत्व, प्रकार एवं विषयक्षेत्र

न्यायिक समीक्षा क्या है (nyayik samiksha kya hai) –

न्यायिक समीक्षा या न्यायिक पुनरावलोकन (judicial review) के सिद्धांत की उत्पत्ति एवं विकास अमेरिका में हुआ! इसका प्रतिपादन में पहली बार मार्बरी बनाम मेडिसन 1803 के जटिल मुद्दों में हुआ! जाॅन मार्शल द्वारा, जो कि अमेरिका सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश थे! 

भारत में दूसरी ओर, संविधान स्वयं न्यायपालिका को न्यायिक समीक्षा की शक्ति देता है (केवल उच्चतम एवं उच्च न्यायालय)! साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने घोषित कर रखा है कि न्यायिक समीक्षा की न्यायपालिका की शक्ति संविधान के मौलिक विशेषता है तथापि संविधान मूलभूत ढांचे का एक तत्व है, इसलिए जुडिशल रिव्यु की शक्ति में संविधान संशोधन द्वारा कमी नही जा सकती है न ही उसे हटाया जा सकता है! 

न्यायिक समीक्षा का अर्थ (Meaning of judicial review in hindi) – 

न्यायिक समीक्षा विधायी अधिनियम तथा कार्यपालिका आदेशों की संवैधानिकता की जांच की न्यायपालिका की शक्ति है जो केंद्र और राज्य सरकारों पर लागू होती है! परीक्षण उपरांत यदि पाया गया कि उनसे संविधान का उल्लंघन होता है तो उन्हें अवैध, असंवैधानिक तथा अमान्य घोषित किया जा सकता है तथा सरकार द्वारा उन्है लागू नहीं किया जा सकता है! 

न्यायिक पुनरावलोकन विधायी अधिनियमों तथा कार्यपालिका के आदेशों की संवैधानिकता की जाँच करने हेतु न्यायपालिका की शक्ति है जो केंद्र एवं राज्य सरकारों पर लागू होती है।

न्यायमूर्ति मोहम्मद कादरी ने जुडिशल रिव्यु को निम्न तीन श्रेणियों में विभाजित किया है-

(1) संवैधानिक संशोधन की न्यायिक समीक्षा! 

(2) संसद और विधायिका द्वारा पारित कानून एवं अधीनस्थ कानूनों की समीक्षा! 

(3) संघ तथा राज्य एवं राज्य के अधीन प्राधिकारियों द्वारा प्रशासनिक कार्रवाई की न्यायिक समीक्षा! 

न्यायिक समीक्षा के प्रकार (nyayik samiksha ke prakar) –

(1) विधायी कार्यों की समीक्षा

(2) प्रशासनिक कार्रवाई की समीक्षा

(3) न्यायिक निर्णयों की समीक्षा

न्यायिक समीक्षा का महत्व (Importance or significance of judicial review in hindi) –

जुडिशल रिव्यु निम्नलिखित कारणों से जरूरी है –

(1) संविधान की सर्वोच्चता के सिद्धांत को बनाए रखने के लिए न्यायिक समीक्षा आवश्यक है! 

(2) संघीय संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक! 

(3) नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा के लिए! 

अनेक मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने देश में जुडिशल रिव्यु की शक्ति के महत्व पर बल दिया है! भारत में संविधान ही सर्वोच्च और किसी वैचारिक कानून की व्यवस्था के लिए उसका संविधान के प्रावधानों एवं अपेक्षाओं के अनुरूप होना अनिवार्य है और न्यायपालिका ही तय कर सकती है कि कोई अधिनियम संवैधानिक है अथवा और असंवैधानिक! 

न्यायिक समीक्षा का विषयक्षेत्र (Scope of judicial review in hindi) – 

किसी विधायी अधिनियम अथवा कार्यपालिका आदेश की संवैधानिक वैधता को सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय में निम्न तीन आधार पर चुनौती दी जा सकती है –

(1) यह आदेश मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है! 
(2) जब आदेश संवैधानिक प्रावधानों के प्रतिकूल हो! 
(3) यह उसी प्राधिकारी की सक्षमता से बाहर का है जिसने इसे बनाया है! 

उपरोक्त से स्पष्ट है कि, भारत में न्यायिक पुनरावलोकन का विषय क्षेत्र संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में सीमित है! जबकि अमेरिकी संविधान अपने किसी भी प्रावधान में न्यायिक समीक्षा के विषय में पूछे नहीं करता! ऐसा इसलिए कि अमेरिका संविधान में “कानून की समुचित प्रक्रिया” को ‘कानून द्वारा स्थापित पद्धति’ के ऊपर तरहीज मिलती है जो कि भारतीय संविधान में अंतनिर्हित है! 

प्रश्न :- न्यायिक समीक्षा का क्या अर्थ है?

उत्तर :- न्यायिक पुनरावलोकन विधायी अधिनियम तथा कार्यपालिका आदेशों की संविदा एकता की जांच की न्यायपालिका की शक्ति है जो केंद्र और राज्य सरकारों पर लागू होती है परीक्षण उपरांत यदि पाया गया कि उनसे संविधान का उल्लंघन होता है तो उन्हें अवैध और असंवैधानिक तथा अमान्य घोषित किया जा सकता है तथा सरकार द्वारा उन्है लागू नहीं किया जा सकता है! 

प्रश्न :- न्यायिक पुनरावलोकन का अधिकार किसे प्राप्त है?

उत्तर :- संविधान स्वयं न्यायपालिका को न्यायिक समीक्षा की शक्ति देता है! न्यायिक पुनरावलोकन का अधिकार केवल उच्चतम एवं उच्च न्यायालय को प्राप्त है!

प्रश्न :- न्यायिक समीक्षा किस देश से लिया गया है

उत्तर :- न्यायिक समीक्षा के सिद्धांत की उत्पत्ति एवं विकास अमेरिका में हुआ! इसका प्रतिपादन में पहली बार मार्बरी बनाम मेडिसन 1803 के जटिल मुद्दों में हुआ! जाॅन मार्शल द्वारा, जो कि अमेरिका सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश थे! 

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