भारत की भूगर्भिक संरचना (bharat ki bhugarbhik sanrachna upsc) –
भारत के वृहद अक्षांशीय तथा देशांतरीय विस्तार, संरचना की विविधता तथा विभिन्न भू-आकृतिक प्रदेशों के कारण यहां पर्याप्त स्थलाकृतिक विविधता पाई जाती है! भारत के प्रायद्वीपीय भाग के पठार जटिल भूगर्भिक संरचना को प्रदर्शित करते हैं! भारत के उत्तर में जहां हिमालय नवीन वलित पर्वत स्थित है तो वहीं दक्षिण में कैंब्रियन पूर्व कार्यकर्ता ने मिलती है!
भारत की भूगर्भिक संरचना के अध्ययन से पहले हमें उसकी उत्पत्ति को जानना जरूरी है! पृथ्वी के भूगर्भिक के इतिहास को पांच कल्पों एजोइक (अजैविक), पैल्योजोइक, मेसोज़ोइक, सेनोजोइक एवं निओजोइक में विभाजित किया जाता है! एजोइक कल्प में जहां पैंजिया का निर्माण हुआ, जिसका विभाजन आगे चलकर कार्बोनिफरस युग में हुआ!
इस विभाजन के कारण पैंजिया दो भागों में बट गया! उत्तरी भाग अंगारालैंड तथा दक्षिणी भाग गोंडवानालैंड कहलाया! जुरैसिक काल में गोंडवानालैंड का विभाजन हुआ तथा प्रायद्वीपीय भारत के अतिरिक्त दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका,आस्ट्रेलिया और अंटार्कटिका का निर्माण हुआ!
यदि हम भारत की भूगर्भिक संरचना के बारे में जानना चाहते हैं, तो इसकी जानकारी भारत के विभिन्न भागों में पाई जाने वाली चट्टानों के स्वरूप तथा प्रकृति से प्राप्त हो सकती है! भारत में प्राचीनतम तथा नवीनतम दोनों प्रकार की चट्टाने पाई जाती है!
भारत की भूगर्भिक चट्टानों का वर्गीकरण (bharat ki bhugarbhik chattan ka vargikaran) –
(1) आर्कियन क्रम की चट्टाने (arkiyan kram ki chattan ) –
इन चट्टानों का निर्माण तप्त पृथ्वी के ठंडे होने के फलस्वरुप हुआ है! ये प्राचीनतम तथा मूलभूत चट्टाने हैं! यद्यपि इनके अत्याधिक रूपांतरण के कारण इनका मूल स्वरूप नष्ट हो चुका है! इनमें जीवाश्म नहीं पाए जाते हैं! आग्नेय चट्टानों के रूपांतरण से ही नीस निर्माण हुआ है!
बुंदेलखंड की नीस की चट्टाने सबसे प्राचीनतम नीस है! आग्नेय चट्टानों में धात्विक तथा अधात्विक खनिजों के साथ-साथ बहुमूल्य पत्थरों तथा भवन निर्माण पत्थरों की प्रचुरता है! आर्कियन युग की चट्टाने मुख्यतः कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, मध्यप्रदेश,उड़ीसा, झारखंड के छोटा नागपुर तथा राजस्थान के दक्षिण पूर्वी भागों में पाई जाती है!
(2) धारवाड़ क्रम की चट्टाने (dharwad kram ki chattan) –
धारवाड़ क्रम की चट्टानों का निर्माण आर्कियन क्रम की चट्टानों के अपरदन तथा निक्षेपण से हुआ हैं! यह चट्टाने प्राचीनतम परतदार चट्टाने हैं, लेकिन इनमें भी जीवाश्म का अभाव पाया जाता है! इसका प्रमुख कारण इनके निर्माण के समय जीवो का उदभव न होना है या फिर लंबे समय के कारण इनके जीवाश्म नष्ट हो गए हैं! अरावली पर्वत का निर्माण इसी क्रम की चट्टानों से हुआ है!
इस क्रम की चट्टाने आर्थिक दृष्टिकोण से सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है! अधिकांश प्रमुख धात्विक खनिज जैसे – सोना, लोहा, मैग्नीज आदि इन्हीं चट्टानों में पाए जाते हैं! इस क्रम की चट्टानों का जन्म यद्यपि कर्नाटक के धारवाड़ तथा शिमोगा जिले में हुआ है, लेकिन फिर भी यह कर्नाटक से कावेरी घाटी तक, नागपुर व जबलपुर के सोंसर श्रेणी, गुजरात में चंपानेर श्रेणी आदि में भी पाई जाती है!
(3) कुडप्पा क्रम की चट्टाने (kudappa kram ki chattan) –
इनका निर्माण धारवाड़ क्रम की चट्टानों के अपरदन तथा निक्षेपण से हुआ है! ये भी परतदार चट्टाने हैं! इनका नामकरण आंध्रप्रदेश के कुडप्पा जिले के नाम पर किया गया है! ये चट्टाने बलुआ पत्थर, चूना पत्थर, संगमरमर एस्बेस्टस आदि के लिए प्रसिद्ध है! दक्षिण भारत के अलावा ये चट्टाने राजस्थान में भी पाई जाती है!
(4) विंध्य क्रम की चट्टाने (vindhya kram ki chattan) –
इन चट्टानों का निर्माण कुडप्पा चट्टानों के निर्माण के बाद हुआ है! छिछले सागर एवं नदी घाटियों के तलछट के निक्षेपण से इनका निर्माण हुआ है! इस प्रकार ये चट्टाने भी परतदार चट्टानें हैं! इनमें सूक्ष्म जीवों के जीवाश्म के प्रमाण मिलते हैं!
इनका विस्तार मालवा के पठार, सोन घाटी, बुंदेलखंड आदि में मिलता है! इन चट्टानों का उपयोग मुख्यतः भवन निर्माण के लिए किया जाता है! जैसे – बलुआ पत्थर इसके अतिरिक्त चूना पत्थर, चीनी मिट्टी, डोलोमाइट आदि भी विंध्य क्रम की चट्टानों से प्राप्त होते हैं! मध्यप्रदेश के पन्ना जिले एवं कर्नाटक के गोलकुंडा की हीरे की खान इसी क्रम चट्टानों में स्थित हैं!
(5) गोण्डवाना क्रम की चट्टाने (gondwana kram ki chattan) –
इन चट्टानों का निर्माण कार्बोनिफरस से जुरैसिक युग के मध्य हुआ हैं! कार्बोनिफरस युग में प्रायद्वीपीय भारत में कई दरारों या भ्रंशों का निर्माण हुआ, जिससे तत्कालीन वनस्पतियों के दबने से कालांतर में कोयले का निर्माण हुआ! भारत का 98% कोयला इसी प्रकार की चट्टानों में पाया जाता है! यह कोयला आज मुख्य रूप से दामोदर, सोन, महानदी, तवा, गोदावरी, वर्धा आदि नदियों की घाटी में पाया जाता है!
(6) दक्कन ट्रैप की चट्टाने (dakkan trap ki chattan) –
मेसोज़ोइक युग के अंतिम काल में प्रायद्वीपीय भारत में ज्वालामुखी किया प्रारंभ हुई तथा दरारों के माध्यम से लावा उद्गार के फलस्वरुप इन चट्टानों का निर्माण हुआ, जैसे – बेसाल्ट की चट्टाने! ये चट्टाने काफी कठोर होती है तथा इनके विखंडन से ही काली मिट्टी का निर्माण हुआ है! ये चट्टानें मुख्यतः महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश के कुछ भागों में पायी जाती हैं!
(7) टर्शियरी युग की चट्टाने (tarsari yug ki chattan) –
इस क्रम की चट्टानों का निर्माण इयोसीन युग से लेकर प्लायोसीन युग के मध्य हुआ! इस काल में हिमालय पर्वत श्रृंखला का निर्माण हुआ! असम, गुजरात एवं राजस्थान के खनिज तेल इसी क्रम की चट्टानों में पाए जाते हैं!
(8) क्र्वाटरनरी क्रम की चट्टाने (quaternary yug ki chattan) –
एक काल की चट्टाने सिंधु एवं गंगा के मैदानी भागों में पाई जाती है! नदी घाटियों में प्लास्टोसीन काल में जलोढ़ मृदा का निर्माण हुआ, जिसे बांगर के नाम से जाना जाता है! प्लास्टोसीन के अंत में एवं हेलोसीन काल के नवीनतम जलोढ़ मृदा का निर्माण हुआ, जिसे खादर नाम से जाना जाता है!
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