तापीय प्रतिलोमन क्या है? तापीय प्रतिलोमन के प्रकार एवं कारण

तापमान का व्युत्क्रमण या तापीय प्रतिलोमन क्या है (what is temperature inversion upsc in hindi) –

वायुमंडल के क्षोभमंडल में सामान्य रूप से प्रति 165 मीटर की ऊंचाई पर 1°C तापमान कम होता जाता है, परंतु कभी-कभी ऊंचाई के साथ-साथ तापक्रम घटने का क्रम कुछ समय के लिए एक सीमित क्षेत्र में टूट जाता हैं और ऊंचाई के साथ साथ तापक्रम बढने लगता हैं! इसके कारण ठंडी वायु परत पर गर्म वायु उपलब्ध होतीं हैं! इसे ही तापमान व्युत्क्रमण या तापीय प्रतिलोमन या तापमान विलोमता कहते हैं! 

तापीय प्रतिलोमन के प्रकार (Types of temperature inversion in hindi) –

तापीय प्रतिलोमन के निम्नलिखित प्रकार हैं –

(1) भू-पृष्ठीय तापमान व्युत्क्रमण –

पार्थिव विकिरण से भूतल रात्रि में अत्यधिक ठंडा हो जाता हैं तथा इसके संपर्क में आने से नीचे की वायु राशि तो ठंडी हो जाती हैं, किंतु उस ठंडी वायु राशि के ऊपर की वायु राशि ठंडी नहीं हो पातीं हैं! इस प्रकार का तापक्रम प्रतिलोमन वायुमंडल की निचली परतों में ही होता हैं! 

(2) अभिवहनीय तापक्रम व्युत्क्रमण – 

किसी स्थान पर ठंडी वायु आ जाने पर गर्म वायु उठ जाती हैं, जिससे धरातल के निकट कम तापक्रम तथा ऊॅंचाई पर अधिक तापमान मिलता हैं! ऐसा चक्रवातों के समय भी होता हैं! 

(3) घाटी तापक्रम व्युत्क्रमण – 

इस प्रकार की व्युत्क्रमण पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाती है! सूर्यास्त के बाद घाटी ऊंची पर्वती ढलानें शीघ्र ठंडी हो जाती है! इनके संपर्क की वायु राशि भी ठंडी हो जाती है! ठंडी होने से इसकी सघनता बढ़ जाती है और वह भारी होकर घाटी में नीचे ढलान के सहारे-सहारे उतरने लगती है! 

तापीय प्रतिलोमन के कारण – 

(1) लंबी एवं ठंडी रातें – 

शीत ऋतु में रातें लंबी तथा ठंडी होती है! फलतः भूतल से पार्थिव विकिरण देर तक होता रहता है, जिससे भूपृष्ठ के संपर्क में आने वाली वायु राशि भी ठंडी हो जाती है! जबकि इस वायुराशि के ऊपर की वायु राशियाँ अपेक्षाकृत अधिक गर्म बनी रहती हैं! 

(2) स्वच्छ आकाश – 

मेघ, धूल-कण आदि पार्थिव विकिरण में रुकावट उत्पन्न करते हैं,, जिससे धरातल ठंडा नहीं हो पाता हैं! स्वच्छ आकाश में पार्थिव विकिरण तीव्र गति से होता है! अत: पार्थिव विकिरण की तीव्रता हेतु स्वच्छ होना चाहिए, जिससे धरातल ठंडा हो सके और इसके संपर्क से वायु राशि भी ठंडी हो सके! 

(3) शुष्क वायु – 

आर्द्र वायु में जलवाष्प के कारण उष्मा को ग्रहण करने की तथा धारण करने की क्षमता अधिक होती है! फलतः धरातल से उष्मा का विकिरण वायु में हो जाता है और वायु का तापमान कम नहीं होता है! शुष्क वायु में यह क्षमता नहीं होती हैं! अतः भूतल से पार्थिव विकिरण हो जाने पर भू-पृष्ठ शीतल हो जाता है और इसके संपर्क से नीचे की वायुराशि भी ठंडी हो जाती है! 

(4) शांत वायु – 

पवन प्रवाह से निकटवर्ती क्षेत्रों की वायु ऊष्मा का आदान प्रदान करती रहेगी! इसके साथ ही वाली राशि को शीतल होने के लिए पर्याप्त समय भी मिल सकेगा! अत: शांत वायु के होने पर ही तापमान का आदान-प्रदान न होगा और वहां की वायु राशि को शीतल धरातल के संपर्क में अधिक समय रहकर ठंडा होने का अवसर प्राप्त हो सकेगा! 

(5) हिमावरण – 

जिन स्थानों पर हिमपात के कारण हिम की चादर बिछी जाती है, वहां तापीय प्रतिलोमन की आदर्श दशाएँ उत्पन्न हो जाती है! हिम चादर सूर्य से प्राप्त होने वाली उष्मा का 10% से अधिक भाग परावर्तित कर देती है, जिससे वह हिमाच्छादित भूखंड बहुत ठंडा बना रहता है! उसके संपर्क से नीचे की वायु राशि भी ठंडी हो जाती है, जबकि इसके ऊपर की वायु राशियाँ गर्म बनी रहती है!  

तापीय प्रतिलोमन का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव (tapiy pratiloman ki arthavyavastha par prabhav) – 

तापीय प्रतिलोमन के प्रभाव से धरातल पर घना कोहरा छा जाता है, घाटी के ऊपरी एवं मध्यमवर्तीय ढालों के तापमान कुछ ऊंचे रहते हैं! कई बार कुछ प्रदेशों के तापमान घट भी सकते हैं! समुद्र तट पर गर्म एवं ठंडी धारा मिलने से वहां घना कोहरा पैदा होता है! इस प्रकार शीतकाल में महानगरों का धुआं एवं नमी मिलकर घना कोहरा पैदा कर देते हैं! 

ऐसा कोहरा जलयानो व सामुद्रिक मार्गो एवं वायुयानों की यातायात के लिए विशेष घातक बना रहता है! इसी भांति घाटी के निचले भागों में रात्रि को पाला गिरने से वहां कीमती फसलें चौपट हो जाती है! संयुक्त राज्य की कैलिफोर्निया की पहाड़ी घाटियों एवं मध्यवर्ती यूरोप की पर्वतीय घाटियों में सर्दियों में निरंतर पाला गिरते रहने से द्वितीय विश्व युद्ध से पूर्व तक भारी हानि बार- बार-बार उठानी पड़ती थी! 

पूर्व के अनुभव से लाभ उठाकर अब विश्व के मध्यवर्ती अक्षांशों में फलों, फूलों, मेवों आदि की बागाती कृषि की अन्य फसलें घाटियों में विशेष ऊंचाई पर विकसित की गई है, जैसे – ब्राजील में कहवा, जापान व कोरिया में शहतूत, चाय, सेब एवं मेवों की कृषि, कैलिफोर्निया में अंगूर, सेव व बदाम की कृषि, भारत में चाय, सेब, मेवों एवं अन्य फलों की कृषि आदि घाटी के ऊपर ढालों पर की जाती है! 

आपको यह भी पढना चाहिए –

पृथ्वी का उष्मा बजट क्या हैं? पृथ्वी के ऊष्मा बजट का वर्णन कीजिए

Leave a Comment

error: Content is protected !!