वाताग्र किसे कहते हैं? (Front) वाताग्र प्रदेशों का वर्णन कीजिए

वाताग्र किसे कहते हैं (what is the front in hindi) –

जब किसी भू-भाग में दो विपरीत स्वभाव अथवा भौतिक गुणों वाली वायुराशि जिसमें एक वायु राशि गर्म तथा दूसरी वायु राशि ठंडी हो, एक दूसरे की ओर बढ़ती है तो इनके मिलन तल को वाताग्र (Front) कहते हैं! 

वाताग्र प्रदेश किसे कहते हैं (what is the frontier region in hindi) –

जब दो भिन्न स्वभाव वाली वायुराशियाँ आपस में मिलकर एक संक्रमणीय क्षेत्र का निर्माण करती हैं जहाँ दोनों वायुराशियों की विशेषताएँ पाई जाती हैं। ऐसे संक्रमणीय क्षेत्र को वाताग्र प्रदेश कहते हैं। भूतल पर शीत एवं शीतोष्ण कटिबंधों में निम्न प्रधान वाताग्र प्रदेश पाए जाते हैं –

(1) ध्रुवीय वाताग्र प्रदेश

(2) आर्कटिक वाताग्र प्रदेश

(3) भूमध्यसागरीय वाताग्र प्रदेश

(1) ध्रुवीय वाताग्र प्रदेश (Polar Frontal Zone) –

उत्तरी एवं दक्षिणी गोलार्द्ध के (50° से 70° अक्षांश के मध्य) के उच्च अक्षांशों में विशेषकर शीतकाल में ध्रुवीय एवं उपोष्ण वायु राशियों का अभिसरण अधिक प्रभावी व गतिशील बना रहता है। इससे यहाँ पर लहरदार ध्रुवीय वाताग्र प्रदेश का विकास होता है। यह विकास दो प्रदेशों में होता है- 

(i) अन्ध महासागरीय वाताग्र का विकास उत्तरी अन्ध महासागर में होता है। 

(ii) प्रशान्त महासागरीय वाताग्र का विकास उत्तरी एवं उत्तरी-पूर्वी प्रशान्त महासागर में उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तट से झील प्रदेश तक फैला है। ध्रुवीय वाताग्र प्रदेश की क्रियाशीलता ग्रीष्मकाल में शिथिल पड़ जाती है, क्योंकि तब पछुआ एवं ध्रुवीय पवन के भौतिक गुणों में अन्तर कम होता जाता है।

(2) आर्कटिक वाताग्र प्रदेश (Arctic Frontal Zone) –

इस वाताग्र की उत्पत्ति अपेक्षाकृत सँकरे क्षेत्र में उत्तरी ध्रुव प्रदेश में होती है। यहाँ पर आर्कटिक महाद्वीपीय एवं आर्कटिक महासागरीय गतिशील वायु राशियों के मिलने से ऐसा वाताप्र थोड़े समय के लिए सीमित आर्कटिक तटीय क्षेत्रों के निकट विकसित होकर गतिशील रहता है।

(3) भूमध्यसागरीय वाताग्र प्रदेश (Mediterrancean Frontal Zone) – 

पछुआ वायु राशि की पेटी के शीतकाल में विषुवत रेखा की ओर खिसकने से भूमध्य सागर क्षेत्र में इस विशेष वाताग्र प्रदेश का विकास होता है। इसमें यूरोप व मध्य एशियाई कठोर ठण्डी व शुष्क वायु राशि उत्तर अफ्रीका की पछुआ वायु मिश्रित नम वायु राशि से भूमध्यसागरीय पट्टी की उत्तरी सीमा पर आमने-सामने मिलती है।

इन दिनों वायु राशियों के भौतिक लक्षणों में उच्चस्तरीय भिन्नता होने से इसका प्रभाव दक्षिणी-पूर्वी यूरोप एवं समस्त मध्य-पूर्वी से उत्तरी भारत तक के मौसम पर शीत ऋतु में स्पष्ट दिखाई देता है।

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