वाताग्र क्या हैं? वाताग्र की परिभाषा, प्रकार, विशेषता, vatagra प्रदेश

वाताग्र क्या हैं (vatagra kya hai)-

जब किसी भू-भाग में दो विपरीत स्वभाव अथवा भौतिक गुणों वाली वायुराशि जिसमें एक वायुराशि गर्म तथा दूसरी ठंडी है, एक-दूसरे की ओर बढ़ती है तो इनके मिलन तल को वाताग्र (Vatagra) कहते हैं! 

वाताग्र की परिभाषा (vatagra ki paribhasha) –

पीटरसन – वाताग्र सतह अथवा धरातलीय सतह का प्रतिच्छेदन करने वाली रेखा को वाताग्र कहा जाता है! 

ट्रिवार्था – वे ढलुवा सीमा पृष्ठ जो विपरीत स्वभाव वाली वायु राशियों को अलग करते हैं, असातन्य पृष्ठ अथवा वाताग्र कहलाते हैं! 

वाताग्र के प्रकार या वर्गीकरण (vatagra ke prakar ya vargikaran) – 

(1) उष्ण वाताग्र

(2) शीत वाताग्र

(3) अधिधारिता वाताग्र

(4) स्थिर या स्थायी वाताग्र

(1) उष्ण वाताग्र क्या है (usan Vatagra kya hai)- 

जब गर्म वायु राशि, ठंडी वायु राशि के ऊपर पर संचालित होती है तो इससे चलने वाले वाताग्र को उष्ण वाताग्र कहते हैं! इस वाताग्र में उष्ण एवं हल्की वायु आक्रामक होतीं हैं! इस वाताग्र का झुकाव 90° से कम होता है! उष्ण वाताग्र का ढाल सामान्यतया 1:100 से 1:400 तक पाया जाता है!

यह स्थिति मध्य अक्षांश में पाई जाती है! उष्ण वाताग्र किसी स्थान पर शीत वाताग्र की अपेक्षा शीघ्र पहुंचता है और उस स्थान का मौसम भी उष्ण वाताग्र के अनुकूल हल्की वर्षा, बौछार, फुहार वाला हो जाता है!   

(2) शीत वाताग्र क्या है (sheet Vatagra kya hai)-

शीत वाताग्र की उत्पत्ति उस क्षेत्र में होती है जहाँ ठंडी वाली राशि गर्म वायु राशि के नीचे संचारित होती है! जब ठंडी वायु राशि अधिक गतिशील होने के साथ गर्म वायुराशि को नीचे से काटती हुई से ऊपर उठने के लिए बाध्य करती है तो इस अवस्था में शीत वाताग्र की उत्पत्ति होती है! शीत वाताग्र का पृष्ठीय झुकाव 1:25 से 1:100 तक होता है, जो कि उष्ण वाताग्र के झुकाव कोण से काफी अधिक है! 

(3) अधिधारित वाताग्र – 

इस वाताग्र की उत्पत्ति शीत वाताग्र तथा उष्ण वाताग्र के मिलने पर होती है! शीत वाताग्र की गति उष्ण वाताग्र की अपेक्षा काफी तीव्र होती है! वाताग्र तीव्र गति के कारण अपनी यात्रा के दौरान अपने मार्ग की गर्म हवा को धक्का देकर ऊपर की ओर विस्थापित करता रहता है और साथ ही आगे की ओर खिसकता जाता है! 

इस प्रकार से शीत वाताग्र उष्ण वाताग्र के अधिक समीप आ जाता है और उष्ण वाताग्र का आकार छोटा होता जाता है! यात्रा के दौरान एक ऐसी स्थिति आती है कि शीत वाताग्र उष्ण वाताग्र पर स्थापित हो जाता है और नये वाताग्र का निर्माण करता है! इस नये वाताग्र को अधिधारित वाताग्र कहते हैं! अधिधारित या अधिविष्ट वाताग्र दो प्रकार के होते हैं –

(1) शीत वाताग्र अधिधारण

(2) उष्ण वाताग्र अधिधारण

(4) स्थिर या स्थायी वाताग्र – 

जब दो विपरीत स्वभाव वाली वायुराशियां एक वाताग्र से इस प्रकार अलग होती है कि दोनों एक दूसरे के समानांतर हो जाती है और वायु का ऊपर उठना बंद हो जाता है, अब वायुराशि में किसी प्रकार की गति नहीं होती!

ऐसी स्थिति में स्थायी वाताग्र की उत्पत्ति होती है! इस प्रकार का वाताग्र कुछ समय के लिए स्थायी हो जाता है! जिन क्षेत्रों में इन वाताग्रों की उत्पत्ति होती है वहाँ मौसम कई दिनों तक मेघाच्छादित वाला रहता है! इन वाताग्र वाले क्षेत्रों में वर्षा अथवा फुहार होती रहती है! 

वाताग्र की विशेषता (vatagra ki visheshta) – 

(1) वाताग्रों में गति होती है किंतु मौसम मानचित्र में ये स्थिर दृष्टिगोचर होते हैं! इनकी गति 50 से 80 किलोमीटर प्रति घंटा होती है! 

(2) वाताग्रों में वायु सदैव नीचे से ऊपर की ओर उठती रहती है! वाताग्रों से गर्म वायुराशियां ठंडी वाली राशियों पर चढ़ जाती है, क्योंकि उष्ण वायुराशियां हल्की होती है! इससे मेघ बनते हैं तथा वर्षा होती है! 

(3) जो वायुराशियां वाताग्रों की उत्पत्ति करती है वे ऊपरी तलों की अपेक्षा निम्न तलों पर गति करतीं है! स्पष्ट है कि वाताग्र धरातल के समीप अधिक बनते हैं तथा 3,000 मीटर की ऊंचाई पर उनकी उत्पत्ति नहीं होती हैं! 

(4) वाताग्र विभिन्न चौड़ाइयों में पाए जाते हैं! ये सामान्यतः 5 से 80 किलोमीटर चौड़े होते हैं! 

वाताग्रों का मौसम पर प्रभाव (Vatagra ka mausam par prabhav) – 

माता अपने स्वयं के भौतिक लक्षणों के अनुसार क्षेत्र-विशेष के मौसम पर तत्काल प्रभाव डालकर उसमें परिवर्तन आते रहते हैं , जैसे – उष्ण वाताग्र का प्रभाव उसकी धरातलीय से काफी पहले या आगे तक दिखाई देता है! 

उष्ण वाताग्र अधिक ऊंचाई तक अनेक प्रकार के वर्षा वाले बादलों के निर्माण में सहायक होता है! इससे वहाँ पर्याप्त वर्षा भी हो सकती है! संरोधित वाताग्र में भी ऊंचाई पर फैली गर्म वायु की नमी से संघनन से वर्षा हो सकती है! 

वाताग्र प्रदेश (vatagra pradesh) – 

जब दो भिन्न स्वभाव वाली वायुराशियाँ आपस में मिलकर एक संक्रमणीय क्षेत्र का निर्माण करती हैं जहाँ दोनों वायुराशियों की विशेषताएँ पाई जाती हैं। ऐसे संक्रमणीय क्षेत्र को वाताग्र प्रदेश कहते हैं। भूतल पर शीत एवं शीतोष्ण कटिबंधों में निम्न प्रधान वाताग्र प्रदेश पाए जाते हैं –

(1)  ध्रुवीय वाताग्र प्रदेश

(2) आर्कटिक वाताग्र प्रदेश

(3) भूमध्यसागरीय वाताग्र प्रदेश

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