मानव के लिए महासागरों का महत्व बताइए (manav ke liye mahasagaro ka mahatva bataiye)

मानव के लिए महासागरों का महत्व (manav ke liye mahasagaro ka mahatva) –

महासागरों का महत्व इस प्रकार हैं –

(1) बहुधात्विक पिण्डों का खजाना –

सागरों में विभिन्न प्रकार के खनिज भण्डार पाये जाते हैं। 1991 में हिन्द महासागर की तली में 8 से 10 सेण्टीमीटर व्यास वाले लगभग 20 मिलीग्राम वजन वाले विभिन्न धातुओं के मिश्रण से बने टुकड़ों का पता लगाया था। इन पिण्डों में लोहा तथा मैंगनीज का प्रतिशत अधिक था। इनके अतिरिक्त इसमें कोबाल्ट, निकिल ताँबा, सीसा, क्रोमियम, बोरियम, टिटेनियम आदि धातुएँ भी पायी जाती है। 

ऐसा अनुमान लगाया गया है कि हिन्द महासागर के लगभग एक वर्ग किलोमीटर से भी अधिक क्षेत्र में ये बहुतायत में बिखरे पड़े हैं। हिन्द महासागर की तली में बहुधात्विक पिण्डों का भण्डार लगभग 50 लाख अरब टन है एवं प्रतिवर्ष लगभग एक करोड़ टन पिण्डों का सृजन होता जा रहा है। हिन्द महासागर की भाँति अन्य महासागरों में भी खनिजों का भण्डार है।

(2) पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस के भण्डार – 

महासागर में पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस के अपार भण्डार हो सकते हैं। हिन्द महासागर में अनेक स्थानों पर खनिज तेल व प्राकृतिक गैस के विशाल भण्डारों का पता चला है जिनमें अलियाबेट तेल क्षेत्र, बेसीन तेल क्षेत्र तथा मुम्बई हाई महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इन तीनों तेल क्षेत्रों से पर्याप्त मात्रा में पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस का उत्पादन हो रहा है।

खम्भात तट के निकट प्राकृतिक गैस के भण्डारों का पता चला है। मुम्बई हाई महाराष्ट्र में महाद्वीपीय मग्नतट पर मुम्बई से 175 किलोमीटर दूर उत्तर-पश्चिम में अरब सागर में स्थित है। यहाँ 1973 से तेल की खुदाई का काम प्रारम्भ हो गया था तथा 1976 से व्यापारिक स्तर पर खनिज तेल का उत्पादन प्रारम्भ हो गया। 

यहाँ प्राप्त होने वाले खनिज तेल में पेट्रोल तथा मिट्टी के तेल की मात्रा अधिक व गन्धक की मात्रा न के बराबर है। मुम्बई हाई के दक्षिण में जंजीरा से 50 किलोमीटर की दूरी पर बसीन तेल क्षेत्र स्थित है। यहाँ खनिज तेल के भारी भण्डार होने का अनुमान है।

(3) ज्वारीय ऊर्जा का स्त्रोत- 

लगातार प्रयोग करते रहने से परम्परागत ऊर्जा स्रोतों का ह्रास हो चला है अतः इसके गैर परम्परागत स्रोतों की खोज की जा रही है। इनमें ज्वारीय ऊर्जा भी महत्वपूर्ण है। 

वैज्ञानिकों ने ऐसी शक्ति का विकास किया है जिसके सहारे समुद्री ज्वार की शक्ति से विद्युत उत्पन्न की जा सकती है, विद्युत उत्पादन ज्वारभाटा की लहरों के अन्तर पर निर्भर करता है। ज्वारभाटा की लहरों का अन्तर जितना अधिक होगा, विद्युत उत्पादन की सम्भावनाएँ उतनी ही अधिक होगी।

( 4 ) विभिन्न जीव-जन्तुओं के आश्रय स्थल-

 महासागर विभिन्न जीव-जन्तुओं के आश्रय स्थल होते हैं भारत-अमेरिका परियोजना के अन्तर्गत वैज्ञानिकों ने समुद्री जीव जन्तुओं से 500 से अधिक ऐसे रसायन निकर्षित तैयार किये हैं, जिन्हें गर्भरोधी, वायरसरोधी आदि के रूप में उपयोग में लाया जा सकता है। 

यह भी पता चला है कि भारत के निकटवर्ती सागरों में ऐसे जीव-जन्तु और वनस्पतियाँ पायी जाती हैं जिनसे कई औषधियाँ कीटाणुनाशक, गर्भनिरोधक तथा प्रदूषण रोधी रसायन प्राप्त किये जा सकते हैं।

(5) रसायनों के भण्डार- 

वैज्ञानिक खोजों से पता चला है कि समुद्री जीवों से कम से कम दो हजार प्रकार के रसायन प्राप्त किये जा सकते हैं, जिनमें ट्यूमररोधी, सूक्ष्म जीवरोधी, हृदय को शक्ति देते तथा रोग प्रतिरोधी शक्ति बढ़ाने की क्षमता होती हैं समुद्र से प्राप्त नये रसायनों में सबसे प्रमुख है जिससे टयूमर की वृद्धि रोकी जा सकती हैं। 

कैरेबियाई स्पंजों से प्राप्त क्रिस्टोलीन एरालसिनोसाइड एवं बहुत सी उपयोगी ट्यूमररोधी औषधि सिद्ध हुई है। इसके अतिरिक्त ऐसे अनेक रसायनों का पता चला है जो जीवाणु और विषाणुओं को समाप्त करने में प्रभावी है। इसके साथ कुछ ऐसे भी रसायन मिले हैं जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को अप्रत्याशित रूप से बढ़ाते हैं। इन रसायनों का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है कि क्योंकि आधुनिक युग में सबसे घातक रोग एड्स में इसका उपयोग होने की सम्भावना हैं।

महासागरों का अन्य महत्व – 

समुद्री जन्तुओं से प्राप्त पदार्थों से विभिन्न प्रकार की दुर्लभ औषधियाँ प्राप्त की जाती है। हवाई द्वीप समूह के निकटवर्ती सागर से मिलने वाली जूजेन्धीरिया से इथेनोलिक निस्सारित किया जाता है। भूरी शैवालों से एलजीनेट्स और लाल शैवालों से एगार प्राप्त किये जाते हैं। इनसे अनेक प्रकार की खाद्य सामग्री, सौन्दर्य प्रसाधन तथा औषधियाँ बनायी जाती हैं। सूक्ष्म जीवों के कल्चर उत्पादन में एगार एक बेजोड़ पदार्थ हैं।

हमारे भोजन में आयोडीन की कमी होने से धंधा रोग हो जाता है। जापान और चीन के निवासी अपने भोजन में आयोडीन की कमी को पूरा करने के लिए अनेक प्रकार के समुद्री शैवालों का उपयोग करते हैं। इनमें आयोडीन की प्रचुर मात्रा होती है।

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