अतिचालकता क्या है (superconductivity) अतिचालकता के सिद्वांत, क्रियाविधि, गुण, प्रकार

अतिचालकता किसे कहते हैं (What is superconductivity in hindi) –

अतिचालकता (superconductivity) की खोज 1911 में नीदरलैंड के भौतिकशास्त्री हाइके कैमरलिघं ओंस ने की थी! उन्होंने अपने प्रयोग के दौरान पाया कि 4.2 केल्विन ताप पर पारे का प्रतिरोध शून्य हो जाता है अर्थात इस तापमान सीमा के भीतर जब विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो धारा के प्रवाह में कोई रुकावट नहीं होती! चालकता की इस दशा को उसने अतिचालकता नाम दिया! वे पदार्थ जो पूर्णत: विद्युत चालक होते हैं अर्थात जिनका विद्युत प्रतिरोध शून्य होता है अतिचालक (superconductivity) कहलाते हैं!

अतिचालक पदार्थ में इलेक्ट्रॉन का प्रवाह होता है! मुक्त इलेक्ट्रॉन के वाहक पदार्थ अतिचालक कहलाते हैं और पदार्थ की इलेक्ट्रॉन वहन करने की प्रकृति अतिचालकता (superconductivity) कहलाती है!

अतिचालकों के सिद्वांत एवं क्रियाविधि (Principles and Methodology of Superconductors in hindi) – 

संरचनात्मक रूप से ठोस पदार्थ परमाणुओं के परस्पर जोड़ने से निर्मित होते हैं! परमाणुओं की इस परस्पर जुडी़ व्यवस्था को “जाल” या “लेटिस” कहा जाता हैं! विद्युत धारा इस लेटिस के बाहरी भाग-इलेक्ट्रॉनों की सहायता से प्रवाहित होती है! धातुओं में विद्युत अवरोध तब उत्पन्न होता है, जब विद्युत धारा प्रवाहित करने वाले ये इलेक्ट्रान अपनी सममिति छोड़कर इधर-उधर बिखर जाते हैं! 

पदार्थों में यह अवरोध या तो अशुद्धियों द्वारा उत्पन्न होता है या संरचना में कंपन द्वारा! अतिचालकों में क्रांतिक तापमान के नीचे कोई अवरोध नहीं होता! अतिचालकों में विद्युत धारा इलेक्ट्रान के युग्मकों द्वारा प्रवाहित होती है, जिससे कूपर बीयर कहते हैं!  

अतिचालकों का वर्गीकरण (Classification of superconductors in hindi) – 

अतिचालकों को दो वर्गों में बांटा जाता है –
(1) टाईप I अतिचालक

(2) टाईप II अतिचालक

(1) टाईप I अतिचालक (Type I Superconductor in hindi) –

टाईप I अतिचालकों को मृदु अतिचालक भी कहते हैं! यह अतिचालकता की अवस्था में बड़ी तीव्रता से परिवर्तित होते हैं तथा संपूर्ण प्रतिचुंबकत्व का गुण प्रदर्शित करते हैं! कॉपर, सिल्वर, गोल्ड तीन अच्छे धात्विक चालक है, परंतु ये अतिचालक पदार्थों में सम्मिलित नहीं है! लेड, पारा, टिन, थोरियम, एल्युमिनियम, टंगस्टन, प्लैटिनम आदि टाईप I अतिचालक के उदाहरण है!

(2) टाईप II अतिचालक (Type II Superconductor in hindi) –

इस श्रेणी के अतिचालक धात्विक यौगिकों और मिश्रधातुओं के बने होते हैं! इनका क्रांतिक तापमान टाईप I अतिचालक अतिचालक की अपेक्षा ऊंचा होता है! इनका क्रांतिक तापमान सामान्यतः 10 से 130 केल्विन के मध्य होता है! ये पूर्णतः प्रतिचुंबकत्व का गुण प्रदर्शित नहीं करते हैं! टाईप II श्रेणी का प्रथम अतिचालक यौगिक, लैंड एवं बिस्मिथ की मिश्र धातु 1930 में निर्मित की गई! टाईप II श्रेणी के अतिचालक कठोर अतिचालक भी कहलाते हैं! टाईप II श्रेणी के उदाहरण MgB2

अतिचालकों के गुण (Properties of superconductors in hindi) – 

अतिचालक कुछ विशेष प्रकार के गुण प्रदर्शित करते हैं! इन गुणों की खोज करने वाले वैज्ञानिकों के नाम के आधार पर इनका नामकरण किया गया है! 

(1) माइज़नर प्रभाव (meissner effect in hindi) – 

अतिचालक पदार्थ किसी चुंबक द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र का विरोध करते हैं! यदि इन पदार्थों के ऊपर किसी चुंबकीय पदार्थ को रखा जाए तो वह अतिचालक को न छूकर उसके ऊपर हवा में तैरने लगता है! यह घटना को मैग्नेटिक लेविटेशन कहते हैं वर्तमान में बुलेट ट्रेन इस सिद्धांत के आधार पर कार्य करती है! 

(2) जोसेफसन प्रभाव (josephson effect in hindi) – 

दो अतिचालक पदार्थों के बीच कुचालक पदार्थ रख देने पर बिना विभवांतर के भी, उनके बीच विद्युत का प्रवाह हो सकता है, इसे जोसेफसन प्रभाव कहते हैं! सुपरकंडक्टिंग क्वांटम इंटरफेरेंस डिवाइसेज में इस गुण का प्रयोग किया जाता है! 

अतिचालको के अनुप्रयोग (Applications of superconductors in hindi) –

चालकों में प्रतिरोधक गुण के कारण ऊर्जा का काफी बड़ा भाग अनुप्रयुक्त रह जाता है! अतिचालक पदार्थ के उपयोग से ऊर्जा का अधिकाधिक प्रयोग किया जा सकता है! यह अतिचालकता की प्रथम एवं सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपलब्धि है! अतिचालकों का विभिन्न क्षेत्रों में किया जाने वाला उपयोग इस प्रकार है –

(1) अतिचालक, चुंकि विद्युत का संचालन ऊर्जा की क्षति किए बिना ही करते हैं, इसलिए अतिचालक का उपयोग से ऊर्जा की क्षति को कम किया जा सकता है!

(2) कण त्वरक में अतिचालकों का उपयोग शक्तिशाली इलेक्ट्रोमैग्नेट तैयार करने में किया जाता है, जो आवेशित कणों को लगभग प्रकाश की गति के बराबर गति प्रदान करने में समर्थ होते हैं!

(3) विद्युत प्रतिरोध शून्यता के कारण अतिचालकता ताप को क्षति नहीं पहुंचाते है! संबंद्भ लघु अतिचालक विद्युत-चुंबकों की तुलना में ये अत्यंत शक्तिशाली क्षेत्रों को उत्पादित करने की क्षमता रखते हैं!

(4) चिकित्सा विज्ञान में प्रयुक्त मैग्नेटिक रिजोनेंस इमेजिंग (MRI) तकनीक तथा न्यूक्लियर मैग्नेटिक रिजोनेंस (NMR)की परियोजना पर आधारित चुंबकीय स्पेक्ट्रमापी ही में अतिचालक चुंबकों का प्रयोग किया जाता है!

(5) इंटीग्रेटेड सर्किटओं के लिए ताप ऊर्जा घातक है तथा अतिचालकों में धारा प्रवाह के समय ताप उत्पन्न नहीं हो सकेगा! इसलिए, इंटीग्रेटेड सर्किटों के निर्माण में अतिचालक का उपयोग क्रांतिकारी सिद्ध हो सकता है!

(6) अतिचालकों का उपयोग उच्च शक्ति वाले छोटी विद्युत कार एवं कंप्यूटर में भी किया जा रहा है! 

भारत में अतिचालकता अनुसंधान (superconductor research in india in hindi) – 

भारत में 1987 में अतिचालकता और इससे जुड़े अनुसंधान और विकास कार्यों को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक शीर्ष निकाय और कार्यक्रम प्रबंधन बोर्ड (Programme Menagement Board – PMB) का गठन किया गया! फरवरी 1991 में दोनों को सम्मिलित रूप से राष्ट्रीय अतिचालकता विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी बोर्ड (National Superconductivity Science and Technology Board – NSTB) का नाम दिया गया! 

भारत के राष्ट्रीय अतिचालकता कार्यक्रम के पहले चरण (1988 से 1991) में देशभर में 65 परियोजना को प्रारंभ किया गया! यह परियोजनाएं परमाणु ऊर्जा विभाग, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों और देश के प्रमुख विश्वविद्यालयों में प्रारंभ की गई, जिनमें अतिचालकता से जुड़े कुछ बुनियादी अनुसंधान, अनुप्रयोगों और लघुकालिक अध्ययनों तथा तकनीक प्रदर्शन जैसे कार्य संपन्न हुए! 

प्रश्न :- अतिचालकता की खोज किसने की (superconductivity was discovered by in hindi)

उत्तर :- अतिचालकता (superconductivity) की खोज 1911 में नीदरलैंड के भौतिकशास्त्री हाइके कैमरलिघं ओंस ने की थी! उन्होंने अपने प्रयोग के दौरान पाया कि 4.2 केल्विन ताप पर पारे का प्रतिरोध शून्य हो जाता है अर्थात इस तापमान सीमा के भीतर जब विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो धारा के प्रवाह में कोई रुकावट नहीं होती! चालकता की इस दशा को उसने अतिचालकता नाम दिया!

प्रश्न :- अतिचालक पदार्थ किसे कहते हैं

उत्तर :- अतिचालक पदार्थ में इलेक्ट्रॉन का प्रवाह होता है! मुक्त इलेक्ट्रॉन के वाहक पदार्थ अतिचालक कहलाते हैं और पदार्थ की इलेक्ट्रॉन वहन करने की प्रकृति अतिचालकता (ati chaalakata) कहलाती है!

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