मृदा अपरदन क्या है? मृदा अपरदन के प्रकार एवं दुष्परिणाम

मृदा अपरदन क्या है (What is Soil erosion in hindi) –

मृदा के ऊपरी सतह के अनावरण (हटाने) को मृदा अपरदन (Soil Erosion) कहते हैं! मृदा अपरदन एक भौतिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा मृदा पदार्थ एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचते हैं! सामान्यतः भूमि की ऊपरी सतह पर कृषि योग्य मिट्टी की 15 से 20 सेमी. परत को मृदा कहते हैं!

यह पौधों की वृद्धि एवं विकास के लिए आवश्यक पोषक तत्व का भंडार है! प्रतिवर्ष कुछ प्राकृतिक शक्तियों, जैसे – जल तथा वायु द्वारा मृदा की ऊपरी परत बहकर अथवा उडकर एक स्थान से दूसरे स्थानों पर एकत्रित होती रहती है! इससे अधिकांश पोषक तत्वों मृदा से  बहकर नष्ट हो जाते हैं! इस प्रकार वायु या जल द्वारा मृदा का कटकर एवं बहकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जमा होने को मृदा अपरदन (mrada apardan) कहते हैं!  

Soil erosion मृदा अपरदन

मृदा अपरदन के प्रकार (Types of Soil Erosion in hindi) – 

मृदा के अपरदन के प्रकार निम्नलिखित हैं –

(1) प्राकृतिक अपरदन (Natural Erosion in hindi) – 

सामान्य परिस्थितियों में भी प्राकृतिक रूप से मृदा स्थानांतरित होती रहती है, परंतु यह परिवर्तन धीमी गति से होने के कारण इसका आरंभ में पता नहीं चल पाता है! कभी-कभी मृदा निर्माण की प्रक्रिया से इस प्रकार के अपरदन की पूर्ति भी होती रहती है! इस प्रकार के अपरदन से कोई भी समस्या नहीं होती है! यह अपरदन सामान्य अपरदन तथा भूगर्भीय अपरदन भी कहलाता है! 

(2) त्वरित अपरदन (Quick Erosion in hindi) – 

मृदा अपरदन (Soil Erosion)  जब सामान्य गति की तुलना में अधिक गति से होता होता है तो वह विनाशकारी एवं अनुत्पादक हो जाता है, उसे त्वरित अपरदन कहते हैं! जब मनुष्य या जानवर विभिन्न क्रियाओं, जैसे – वनस्पति को मृदा से हटाना, बिना सोचे समझे वनों की कटाई, चारागहों पर पशुओं का अत्याधिक चरना, दोषपूर्ण कृषि क्रियाएं आदि द्वारा प्रकृति के संतुलन बाधा डालता है, तब मृदा का हास होता है!  

(3) वायु अपरदन (Air Erosion in hindi) – 

वायु अपरदन प्राय: तेज वायुवेग वाले शुष्क एवं वनस्पति विहीन क्षेत्रों में होता है! मृदा सतह के कण तेज वायु तथा तूफान के साथ उड़कर अपने मूल स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित हो जाते हैं तथा वायु या तूफान की गति धीमी होने पर यह मृदा कण टीलों के रूप में जमा हो जाते हैं! इस प्रकार उर्वरक मृदा कृषि योग्य नहीं रहती! 

(4) जल अपरदन (Water Erosion in hindi)- 

मृदा अपरदन के कारकों में जल सबसे प्रमुख है! जल द्वारा किए जाने वाले मृदा अपरदन को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है – सतही अपरदन या मृदा के सतह का समरूप अपरदन, रिलायंस या क्षुद्र सरिता अपरदन, अवनालिका अपरदन आदि! 

मृदा अपरदन के कारण (mrada apardan ke karan) – 

मृदा के अपरदन के प्रमुख कारण इस प्रकार है

(1) जंगलों की कटाई – 

वनों की लगातार अंधाधुंध कटाई के फलस्वरूप मृदा अपरदन अधिक होता है और यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि पेड़ों के अभाव में वर्षा जल के अपधावन की गति अधिक तीव्र हो जाती है तथा मृदा में जलस्त्रवण कम होता है! 

(2) खेतों का समतल होना – 

खेतों के समतल नही होने से बारिश का पानी ऊंचाई की ओर से नीचे की ओर बहता है, जिससे मृदा अपरदन में वृद्धि होती है! सिंचाई जल भी खेत की ऊपरी सतह भाग से मिट्टी बहाकर निचले स्थानों पर जमा कर देता है! ढालू धरातल पर वायु अपरदन भी अधिक प्रभावी होता है! 

(3) स्थानांतरित खेती या झूम खेती  – 

स्थानांतरित खेती का भी मृदा अपरदन पर बहुत प्रभाव पड़ता है! एक स्थान पर अत्याधिक कृषि करने से जब मृदा उर्वरकता कम या समाप्त हो जाती है तब दूसरे स्थान पर खेती करना स्थानांतरित कृषि कहलाता है! इससे भूमि की उत्पादकता क्षीण हो जाती है! 

(4) मृदा के ऊपर वनस्पतियों का अभाव – 

वनस्पतियों से आच्छादित मृदा में अपरदन कम होता है! इनकी जड़ें मृदा कणों को बांधे रखती है तथा जल के बहाव को कम कर देती है! मृदा में कार्बनिक पदार्थ का अनुपात बढ़ने से मृदा संरचना सुधरती है, जिससे जलस्त्रवण व पारगम्यता बढ़ जाती है अतः स्पष्ट है कि वनस्पतियों को मृदा सतह से हटाने पर मृदा अपरदन बढ़ जाता है! 

(5) अति पशुचारण – 

घास मृदा के अपरदन को रोकने में काफी सहायक होती हैं क्योंकि ये मिट्टी को बांधे रखतीं हैं! पशुओं द्वारा इनके अत्याधिक चरने या चारागाह को खेती योग्य मृदा में बदलने की प्रक्रिया, दोनों ही मृदा के अपरदन में सहायक हैं! 

मृदा अपरदन के दुष्परिणाम (Effect of Soil Erosion in hindi) –

मृदा अपरदन (Soil erosion) तत्काल भूमि में उत्पादन को बढ़ाने और शुभ पोषित करने वाले पोषक तत्वों की कमी करता है तथा अंततः पारिस्थितिकी असंतुलन का कारण बनता मृदा अपरदन की कुछ प्रमुख परिणामों को निम्न हैं –

(1) हमारी खाद्य एवं पर्यावरण सुरक्षा के लिए भूमि निम्नीकरण एक खतरा है! देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 45% भाग विभिन्न निम्नीकृत कारकों से निम्नीकृत हो चुका है! 

(2) मृदा के अपरदन से उपजाऊ मृदा की पृष्ठ सतह के कटकर बह जाने से पोषक तत्व का भी हास होता है तथा मृदा के महीन कण भी विस्थापित हो जाते हैं! 

(3) मृदा के अपरदन से नदियों, नालों, जलाशयों एवं समुद्र में सिलट के लगातार जमा होने से इनमें पानी को बहाकर ले जाने व एकत्र करने की क्षमता कम हो जाती है! अतः वर्षा का पानी नदी एवं नालों से उफन कर बाढ़ का रूप ले लेता है, जिससे आसपास के क्षेत्र में तबाही होती है! 

(4) पर्वतीय व मैदानी क्षेत्रों में मृदा के अपरदन से सड़क एवं रेलमार्ग में अवरोध पैदा होता है ऊपरी क्षेत्रों से भाग कर आने वाला पानी सड़कों को काट देता है, रेल पटरियों को उखाड़ देता है, यह इतनी शील्ड एवं शिलाखंड जमा हो जाते हैं कि रेल एवं सड़क आवागमन बुरी तरह से अवरुद्ध हो जाता है! 

(5) मृदा अपरदन से ऊपरी उपजाऊ सतह के कट जाने से वनस्पति आच्छादन में कमी आती है! अधोसतह में जल आसानी से प्रवेश नहीं कर पाता, जिससे विशेष रूप से असिंचित क्षेत्रों में आगामी फसल के लिए जल और नमी संचित नहीं हो पाती है! 

मृदा अपरदन को रोकने के उपाय (mrida apardan ko rokane ke upay) –

(1) फसल चक्र – 

मृदा संरक्षण में अपनाए गए फसल चक्रों में यह सिद्धांत अपनाया जाता है कि अधिकाधिक समय तक घासों एवं दलहनी फसलों के मिश्रण से भूमि को आच्छादित रखा जाए! एक सर्वोत्तम फसल चक्र का प्रयोग मृदा के ढाल, मृदा प्रकार, अपरदन के प्रकृति एवं मात्रा तथा मृदा की भौतिक एवं रासायनिक क्रियाओं पर आधारित होता है! फसल चक्र मृदा में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा में वृद्धि करता है!  

प्रश्न :- मृदा के अपरदन से क्या तात्पर्य है? उत्तर

उत्तर :- मृदा के ऊपरी सतह के अनावरण (हटाने) को मृदा का अपरदन (Soil Erosion) कहते हैं! मृदा का अपरदन एक भौतिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा मृदा पदार्थ एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचते हैं! सामान्यतः भूमि की ऊपरी सतह पर कृषि योग्य मिट्टी की 15 से 20 सेमी. परत को मृदा कहते हैं!

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