शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात क्या हैं (sheetoshna katibandh chakrawat kya hai) –
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों से दूर मध्य एवं उच्च अक्षांशों में विकसित होते हैं! मध्य एवं उच्च अक्षांशों में जिन क्षेत्रों से ये गुजरते हैं, वहां मौसम संबंधी अवस्था में परिवर्तन आता हैं! यह उष्णकटिबंधीय चक्रवात की अपेक्षा कम विनाशकारी होते हैं एवं सामान्यतः इनसे आपदाएं उत्पन्न नहीं होती हैं!
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात के प्रकार (sheetoshna katibandh chakrawat ke prakar) –
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात को तीन भागों में वर्गीकृत किया जाता हैं!
(1) गतिक चक्रवात!
(2) तापीय चक्रवात!
(3) गौण चक्रवात!
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति (sheetoshna katibandh chakrawat ki utpatti) –
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति में दो सिद्वांत महत्वपूर्ण हैं जो इस प्रकार हैं – तापीय सिद्वांत एवं भंवर सिद्वांत!
(1) तापीय सिद्वांत –
इस सिद्धांत के अनुसार स्थानीय रूप से जिन भागों में गर्मी अधिक पड़ती है या तापमान उच्च बने रहते हैं, वहां की वायु तेजी से गर्म होने लगती है! गर्म हवा हल्की होकर ऊपर उठती है एवं वहां निम्न वायुदाब की दशा विकसित होती जाती है! ऐसे में निकटवर्ती भागों से उत्तरी गोलार्द्ध वामावर्त (एंटी क्लॉक वाइज) दिशा में पवनें भीतरी भागों की ओर चलती है!
यह कारण मध्य अक्षांशीय या शीतोष्ण चक्रवात की उत्पत्ति का भी माना जाता है, क्योंकि तब सर्दियों में चक्रवात आने के साथ ही तापमान घटने एवं नमी बढ़ने से मौसम में स्पष्ट परिवर्तन आने का कारण इसी तथ्य से आसान से स्पष्ट किया जा सका हैं!
(2) भंवर सिद्वांत –
जब भूतल पर वायुदाब की पेटियां की व्यवस्था 19वीं सदी में स्पष्ट की जाने लगी, तभी शीतोष्ण कटिबंध के कुछ भागों में स्थानीय निम्न वायुदाब के कारणों को समझने का प्रयास किया गया! इसी आधार पर तब विद्वानों ने बताया कि जिस प्रकार नदी में स्थानीय रूप से भॅंवर पड़ते हैं एवं कहीं कहीं स्थानीय रूप से बवंडर विकसित हो जाता है, उसी प्रकार वायुमंडल की निचली परतों में विशेष कारणों से स्थानीय भंवर पड़ने लगते हैं!
इसी के प्रभाव से वहां पवनें हल्की हो जाती है एवं वहां (शीतोष्ण प्रदेशों में) निम्न वायुदाब की दशा विकसित होती है! इसी कारण वहां का मौसम शीतोष्ण कटिबंध में परिवर्तनशील बना रहता है एवं वहाँ चक्रवात आते रहते हैं, क्योंकि उस समय तक शीतकाल में चक्रवातों के आने की प्रक्रिया को इसी विधि से ही समझा जा सकता था!
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात की विशेषता (sheetoshna katibandh chakrawat ki visheshta) –
(1) स्थिति –
शीतोष्ण या मध्य अक्षांशीय चक्रवात का प्रभाव क्षेत्र का सामान्यतः 35° से 65° उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांश के मध्य रहता है! शीत ऋतु में वायुदाब पेटियों के विषुवत की ओर खिसकने पर इनका प्रभाव क्षेत्र 30° उत्तर एवं दक्षिण अक्षांश तक बढ़ जाता है!
(2) आकृति एवं विस्तार –
शीतोष्ण चक्रवातों की आकृति दीर्घवृत्ताकार अथवा अंडाकार होती है! यदि कोई वृताकार उष्णकटिबंधीय चक्रवात अपने सीमांत प्रदेश में मध्य अक्षांशीय प्रदेश में प्रवेश कर भी जाता है तो वह भी वृताकार से अंडाकार आकृति धारण कर लेगा!
(3) दिशा –
शीतोष्ण चक्रवात निरंतर गतिशील रहते हैं! ये चक्रवात पछुआ हवाओं के सहारे पश्चिम से पूरब की ओर चलते हैं! इनकी गति 30 से 45 किलोमीटर प्रति घंटा रहती है, जबकि इनके भीतर बहने वाली पवनों की गति इससे भी कम होती है! अतः ये चक्रवात उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की भांति न तो घातक होते हैं और न ही भारी नुकसान देने वाले हैं!
(4) वायुदाब व्यवस्था एवं पवनें –
शीतोष्ण चक्रवात के मध्यवर्ती भाग से कुछ पीछे के भाग में उसका वास्तविक केंद्र या निम्न वायुदाब का क्षेत्र होता हैं! एक मध्यम आकार के शीतोष्ण चक्रवात को दो समदाब रेखाएँ एवं बड़े चक्रवातों वालों को चार से छह समदाब रेखाएँ चार मिलीबार के अंतर पर घेरे रह सकती हैं!
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात का वर्षा पर प्रभाव (Sheetoshna katibandh chakrawat ka varsha par prabhaav) –
शीतोष्ण चक्रवात के आगमन के साथ तापमान धीमी गति से बढ़ने लगते हैं तथा मंद समीर चलती है! आकाश में हल्के पक्षाभ एवं स्तरी पक्षाभ मेघ अधिक ऊंचाई पर हल्की आभा के रूप में फैले होते हैं! इससे सूर्य या रात्रि में चंद्रमा के चारों ओर आभामंडल या कुंडली सी बन सकती है! वायुदाब घटने एवं नमी व ताप बढने से वायु की सहनशीलता क्षमता मानव के लिए घटने लगती है!
कुछ घंटों बाद या 12 घंटे बाद आकाश में पक्षाभ बादल गहरे और काले कपासी व वर्षी मेघ छाने लगते हैं! यही चक्रवात का उष्ण खंड कहलाता है! आकाश में घने बादलों से सूर्य छिप जाता है एवं धीरे-धीरे वर्षा होने लगती है! वायु में अस्थिरता की दशा होने एवं वायुदाब प्रवणता अधिक रहने पर वर्षा अधिक तेज या भारी वर्षा हो सकती है!
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