ग्रीवाखंड क्या है (What is Nappes in hindi)-
हिमालय आल्पस पर्वतों से अधिक्षिप्त वलन प्रकार के ग्रीवाखंड (greeva khand) मिलते हैं! ग्रीवा खंड भूपटल पर जटिल संरचना का परिचायक है!
वास्तव में ग्रीवाखंड (Nappe) एक फ्रांसीसी शब्द है, जिसका अर्थ है मेजपोश/परिवलन मोड़ो जिसमें दोनों भुजाएं समानांतर तथा क्षैतिज होती हैं! संपीड़न की अधिकता के कारण एक भुजा वलन के अक्ष पर टूटती है और क्षेत्रीय संचालन द्वारा अपने मूलस्थान से अधिक दूरी तक खिसक कर अन्य प्रकार की शैल पर आरूढ़ हो जाती है! इस टूटे हुए तथा स्थान पर इस शैलखंड को ग्रीवा खंड कहते हैं इसके उदाहरण वलित पर्वतों में मिलते हैं!

ग्रीवाखंड का निर्माण (construction of Nappes in hindi) –
क्षितिज संपीड़नात्मक बलों के प्रभाव के कारण धरातलीय चट्टानों में संवलन तथा वलन पड़ जाते हैं, परंतु वलन की प्रक्रिया लचकदार तथा कोमल चट्टानों में ही संभव होती है! इसलिए अधिकांश वलन अवसादी चट्टानों में पाए जाते हैं!
कठोर रवेदार चट्टानों में दबाव के कारण भी वलन की अपेक्षा दरारे पड़ जाती है! इस प्रक्रिया से व्युत्क्रम भ्रंशों का निर्माण होता है! वलन के फलस्वरुप चट्टानों के ऊपर उठे भागों को अपनति तथा नीचे धंसे भागों को अभिनति कहते हैं!
वह तल जिसके साथ परतदार चट्टान मुड़ती है उसे वलन का अक्ष कहते हैं! जब एक अपनति अथवा अभिनति के दोनों ओर के ढाल वलन के अक्ष के साथ समकोण बनाते हैं तो उसे सममित वलन कहते हैं! इन दोनों ढालों के कोणों के असमान होने पर वलन कों असममित वलन कहते हैं! यदि चट्टानों पर प्रभाव डालने वाले संपीडन बल दोनों ओर से समान होते हैं तो वलन सममित होता है!
यदि किसी एक दिशा में संपीड़न अधिक होता है, तो वलन असममित होता है! किसी एक दिशा से अत्याधिक संपीडन के कारण कई बार वलन की एक भुजा दूसरी भुजा के ऊपर चढ़ जाती है तथा वालन क्षैतिज हो जाते हैं!
इस प्रक्रिया अतिवलन कहा जाता है कभी-कभी क्षैतिज संचलन तथा संपीडन के कारण वलन की भुजाएं टूट जाती है तथा एक टूटी हुई भुजा अपने स्थान से दूर चली जाती है! इस प्रकार की स्थानांतरित स्थलखंडों को ग्रीवाखंड या नापे कहते हैं!
प्रश्न :- ग्रीवाखंड किसे कहते हैं
उत्तर :- वास्तव में ग्रीवाखंड (Nappe) एक फ्रांसीसी शब्द है, जिसका अर्थ है मेजपोश/परिवलन मोड़ो जिसमें दोनों भुजाएं समानांतर तथा क्षैतिज होती हैं संपीड़न की अधिकता के कारण एक भुजा वलन के अक्ष पर टूटती है और क्षेत्रीय संचालन द्वारा अपने मूलस्थान से अधिक दूरी तक खिसक कर अन्य प्रकार की शैल पर आरूढ़ हो जाती है! इस टूटे हुए तथा स्थान पर इस शैलखंड को ग्रीवा खंड कहते हैं इसके उदाहरण वलित पर्वतों में मिलते हैं!
प्रश्न :- अपनति किसे कहते हैं
उत्तर :- कठोर रवेदार चट्टानों में दबाव के कारण भी वलन की अपेक्षा दरारे पड़ जाती है! इस प्रक्रिया से व्युत्क्रम भ्रंशों का निर्माण होता है! वलन के फलस्वरुप चट्टानों के ऊपर उठे भागों को अपनति तथा नीचे धंसे भागों को अभिनति कहते हैं!