कृषि को प्रभावित करने वाले कारक (krishi ko prabhavit karne wale karak) –
कृषि को प्रभावित करने वाले कारक भौतिक एवं आर्थिक कारक या घटक इस प्रकार हैं –
कृषि को प्रभावित करने वाले भौतिक कारक (krishi ko prabhavit karne wale bhautik karak) –
(A) जलवायु दशाएँ (Climate Conditons) –
कृषि कार्यों पर सर्वाधिक प्रभाव तापमान और वर्षा का पड़ता है। पौधों की वृद्धि के लिए एक निश्चित तापमान की आवश्यकता होती है, उससे कम में अंकुर निकलना सम्भव नहीं होता। साधारणतः जिन भूभागों में ग्रीष्मकालीन औसत तापमान 50° फा. से कम मिलता है वहाँ कृषि नहीं की जा सकती।
पौधे गरमी में हो बढ़ते हैं इसलिए उन्हें ऊष्णता की आवश्यकता हती है। ऊंचे अक्षांशों में ग्रीष्म ऋतु छोटी होती है किन्तु दिन की लम्बाई अधिक होने से गरमी की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध हो जाती है। निम्न अक्षांशों में जहाँ ठण्डी ऋतु कठोर नहीं होती जहाँ वर्ष भर ही कृषि कार्य निरन्तर चलता रहता है, किन्तु इसमें वर्षा की मात्रा के अनुसार थोड़ा बहुत परिवर्तन होता रहता है।
(B) भूमि की प्रकृति (Natrue of the Land) –
कृषि उन्हीं भू-भागों में की जाती है जहाँ हल चलाने के लिए समतल भूमि उपलब्ध हो। ऐसे भागों में हो यन्त्रों का उपयोग किया जा सकता है तथा फसलों को ढोने की सुविधाएँ प्राप्त होती है। वस्तुतः नदी घाटियों “में, पहाड़ी बालों पर, उपजाऊ समतल भागों में, समुद्रतटीय मैदानों में ही कृषि की जाती है।
यदि यहाँ पर जनसंख्या का भार अधिक होता है तो कृषि पहाड़ो के ढालों पर भूमि को छोटे छोटे टुकड़ों या सीढ़ियों के आकार में काटकर भी की जाती है।
(C) उपजाऊ मिट्टी (Fertile Soil)-
फसलों के लिए उपजाऊ मिट्टी का मिलना भी आवश्यक है। कम उपभागों में मिट्टी की उर्वराशक्ति बढ़ाने के लिए प्राणिज अथवा रासायनिक खादों का उपयोग बढ़ाया जाता है। विश्व में खेती की दृष्टि से कांप, कछार या दोमट मिट्टयों सबसे अधिक महत्वपूर्ण मानी गयी हैं। बलुई, नमकीन या दलदली मिट्टी कृषि के लिए उपयुक्त नहीं होती। इसी कारण मरुस्थलों में अथवा नदियों के दलदली भागों में कृषि क्रिया का अभाव पाया जाता है। इसी प्रकार अधिक वर्षा वाले भागों में भी भूमि को उर्वराशक्ति के धरातल में रिस जाने या बहकर चले जाने से कृषि करना कठिन और व्यवसाध्य होता है।
कृषि को प्रभावित करने वाले आर्थिक कारक (krishi ko prabhavit karne wale aarthik karak) –
(1) बाजार की निकटता (Nearness to Market)-
कोई क्षेत्र उपभोग केन्द्रों से कितनी दूर स्थित है, यह तथ्य भी कृषि को प्रभावित करता है। साग, सब्जियाँ, शीघ्र नष्ट होने वाले फल सामान्यतः घनी जनसंख्या के क्षेत्रों के निकट ही पैदा किये जाते हैं, किन्तु खाद्यान्न और उद्योगों के लिए कच्चा माल दूर स्थित ग्रामीण क्षेत्रों में हो पैदा किया जाता है।
(ii) यातायात के साधन (Means of Transport)-
व्यापारिक ढंग से कृषि तभी सम्मान है जबकि कृषि उत्पादन क्षेत्रों का सम्बन्ध उपभोग के क्षेत्रों से बहुत घनिष्ठ हो। शीत भण्डारों की प्रगति हो जाने से हजारों किलोमीटर दूर पैदा किये गये अण्डे, दूध, मक्खन, सब्जियाँ, माँस, फल आदि शीघ्रता के साथ उपभोग केन्द्रों को पहुंचाये जा सकते हैं। यातायात की प्रगति होने से ही क्षेत्र विशेष में फसलों का विशिष्टीकरण सम्भव हो सका है।
(iii) श्रमिक पूर्ति (Labour Supply)-
कृषि करने के लिए पर्याप्त मात्रा में निपुण और सस्ते श्रमिकों की उपलब्धि आवश्यक है। श्रमिकों की अधिकता के कारण ही दक्षिण पूर्व देशों में चावल और चाय की कृषि तथा ओसीनिया महासागर के द्वीपों में गन्ना और नारियल को कृषि की जाती है किन्तु जहाँ मानव श्रम अधिक महँगा होता है वहाँ यन्त्रों द्वारा द्वारा कृषि की जाती है। रूपक आस्ट्रेलिया और संयुक्त राज्य अमेरिका में यन्त्रों
(iv) पूँजी की उपलब्धता (Availability of Capital)-
पूँजी की उपलब्धि भी कृषि के लिए आवश्यक तत्व है। पूंजी से हो उत्तम बीज, खाद और वैज्ञानिक विधियों का काप्रवेग सिंचाई के साधनों का विकास, उत्पादित वस्तुओं का तक और उन अवश्यकता पड़ने तक संग्राहकों में एकत्रित करने के लिए भी पूंजी की आवश्यकता पड़ती है।
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