किसी स्थान पर तापक्रम, वायु, दिशा, आद्रता, वायुदाब के कई वर्षों के औसत को जलवायु कहते हैं! विश्व में एक समान जलवायु नहीं पाई जाती है! प्रत्येक स्थान के अक्षांशीय स्थिति एवं भौतिक रचना की भिन्नता के कारण अनेक प्रकार की जलवायु पाई जाती है!
कुछ जलवायवीय क्षेत्र में मनुष्य के लिए जीवन निर्वाह आसान होता है तो कुछ क्षेत्रों में उसे संघर्ष करना पड़ता है तथा कुछ जलवायवीय क्षेत्र में मनुष्य के लिए जीवन असंभव है! इस प्रकार मानव जीवन पर जलवायु का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है! मानव जीवन पर जलवायु के कारण पडने वाले प्रभाव इस प्रकार है –
शीतल एवं आर्द्र जलवायु में मनुष्य की कार्यक्षमता अधिक होती है, जबकि गर्म एवं आई जलवायु मनुष्य को आलसी बना देती है। भूमध्यरेखीय जलवायु प्रदेश के निवासी अत्यधिक आलसी तथा शारीरिक एवं मानसिक दृष्टि से कम परिश्रमी होते हैं, जबकि पश्चिमी यूरोपीय जलवायु प्रदेश के निवासी 12 से 14 घण्टे प्रतिदिन कार्य करने की क्षमता रखते हैं। धरातल के प्रत्येक क्षेत्र में मनुष्य की कार्यक्षमता वहाँ की जलवायु से प्रभावित होती हैं।
(2) जलवायु का मनुष्य के आवास या मकान पर प्रभाव (Effect of Climate on Shelter) –
हम देखते हैं कि भूमध्यरेखीय प्रदेश का निवासी केवल घास, फूँस, पत्तियों, टहनियों एवं शाखाओं से झोपड़ी बनाकर अपना आश्रय स्थल बना लेता है। मरुस्थलीय प्रदेश का निवासी सूती वस्त्रों तथा चमड़े की सहायता से तम्बू बनाता है, टुण्ड्रा निवासी चारों ओर से बन्द घर झग्लू (ligion) बनाता है।
ऐसा जलवायु की परिस्थितियों के कारण होता है। टुण्ड्रा निवासी यदि दरवाजों, खिड़कियों युक्त खुला मकान बना ले तो अत्यधिक कठोर शीत ऋतु में जहाँ भयंकर बर्फीली आँधियां चलती हैं, उसका जीवित रह पाना सम्भव न रह जायेगा।
(3) जलवायु का मनुष्य के वस्त्रों पर प्रभाव (Effect of Climate on Clothings) –
जलवायु का हमारे वस्त्रों पर भी स्पष्ट प्रभाव पड़ता है। यथा उष्ण एवं आई प्रदेश के निवासी बहुत कम वस्त्रों का उपयोग करते हैं। मानसूनी प्रदेश के निवासी बहुत कम वा का उपयोग करते हैं। मानसूनी प्रदेश के निवासी खुले व हवादार वस्त्रों का उपयोग करते हैं, अत्यधिक ठण्डे प्रदेशों के निवासी बन्द वस्त्र (पेन्ट, कोट आदि) पहनते हैं। टुण्ड्रा निवासी समूर के बने वस्त्र पहनते हैं।
इसी प्रकार सूती वस्त्रों का सर्वाधिक उपयोग गर्म जलवायु वाले प्रदेशों में होत है। ऊनी वस्त्रों का उपयोग ठण्डी जलवायु वाले प्रदेशों में और समूर के वस्त्रों का प्रयोग कठोर ठण्डी जलवायु वाले प्रदेशों में किया जाता है।
(4) जलवायु का मनुष्य के भोजन पर प्रभाव (Effect of Climate on Food) –
मनुष्य का भोजन उसके पर्यावरण की उपज होता है। अतः किसी भी देश या स्थान का निवासी वहाँ की जलवायु के अनुसार उत्पादित खाद्य पदार्थों का प्रयोग करता है। यथा-टुण्ड्रा प्रदेश का निवासी मांस एवं मछली खाता है, क्योंकि वहाँ कृषि उपजें-गेहूं, चावल आदि उत्पादित नहीं हो सकते।
गर्म प्रदेशों के निवासी मक्खन, मांस, दूध, दही, कृषिगत उपजों आदि का प्रयोग करते हैं। शुष्क प्रदेशों के निवासी ज्वार, बाजरा तथा मक्खन, दूध आदि का प्रयोग करते है।
मनुष्य के समस्त क्रिया-कलापों पर जलवायु का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है, यथा-भूमध्यरेखीय जलवायु प्रदेश के निवासियों का प्रमुख व्यवसाय शिकार करना, कन्दमूल, फल एकत्रित करना तथा बांस की टोकरियां आदि बनाना है।
मानसूनी प्रदेश के निवासियों का प्रमुख व्यवसाय कृषि है, शीतल जलवायु प्रदेशों के निवासियों का प्रमुख व्यवसाय उद्योग-धन् हैं परन्तु टुण्ड्रा वासी शिकार करते हैं। परिवहन साधनों का विकास, सिंचाई के साधनों का विकास आदि सभी जलवायु के द्वारा प्रभावित होते हैं।
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