मुद्रास्फीति क्या है? मुद्रास्फीति के प्रकार, प्रभाव, उपाय (mudrasfiti)

मुद्रास्फीति क्या है (mudrasfiti kya hai)-

मुद्रास्फीति (mudrasfiti) वही स्थिति है जिसमें कीमत स्तर में वृद्धि होती है तथा मुद्रा का मूल्य गिरता है! यानि मुद्रास्फीति वह अवस्था है जब वस्तुओं की उपलब्ध मात्रा की तुलना में मुद्रा तथा साख की मात्रा में अधिक वृद्धि होती है और परिणामस्वरूप मूल्य स्तर में निरंतर एवं महत्वपूर्ण वृद्धि होती है! 

मुद्रास्फीति दर को मूल्य सूचकांक के आधार पर मापा जाता है, जो दो प्रकार के होते हैं – थोक मूल्य सूचकांक तथा उपभोक्ता मूल्य सूचकांक! मूल्य सूचकांक मूल्यों की औसत स्तर की माप होता है अर्थात इससे किसी एक विशेष वस्तु की वास्तविक मूल्य का पता नहीं चलता है! मुद्रास्फीति दर सामान्य मूल्य स्तर में परिवर्तन की दर होती है! 

मुद्रास्फीति के प्रकार (mudrasfiti ke prakar) – 

बढ़त की रेंज तथा इसकी गंभीरता के आधार पर मुद्रास्फीति (mudraaspheeti) को तीन विस्तृत श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है –

(1) अल्प मुद्रास्फीति क्या हैं (alap mudrasfiti kya hai) – 

ऐसी मुद्रास्फीति धीमी होती है तथा इसकी पहले से भविष्यवाणी की जा सकती है! जिसे लघु अथवा क्रमिक कहा जा सकता है! यह एक तुलनात्मक पद है अल्प मुद्रास्फीति लंबी अवधि के दौरान देखने को मिलती है और इसमें वृद्धि सामान्यता एकल संख्या में होती है! ऐसी मुद्रास्फीति को सरकने वाली मुद्रास्फीति भी कहते हैं! 

(2) सरपट मुद्रास्फीति (sarpat mudrasfiti kya hai) – 

यह अत्यंत उच्च मुद्रास्फीति है जो दूरी एवं तिहरी संख्या में चलती है जैसे 10%, 100%, 500% प्रतिवर्ष! 1980 के दशक के अंत में सोवियत संघ के विघटन के बाद रूसी अर्थव्यवस्था में भी ऐसी ही अत्यंत उच्च मुद्रास्फीति दर दर्ज की गई थी! 

समकालीन पत्रकारिता में इस मुद्रास्फीति को उछल-कूद मुद्रास्फीति, उछाल मुद्रास्फीति तथा दौड़ती-भागती मुद्रास्फीति भी कहा जाता है! 

(3) अति मुद्रास्फीति क्या हैं (ati mudrasfiti kya hai ) – 

मुद्रास्फीति का यह रूप बड़ा और बढ़ता हुआ है, जिसकी वार्षिक दर अरबों एवं खरबो में हो सकती है! ऐसी मुद्रास्फीति में न सिर्फ बढ़त बहुत बड़ी होती है बल्कि बहुत कम समय के अंदर हो जाती है दाम रातों रात बढ़ जाते हैं! 

अति मुद्रास्फीति का सबसे अच्छा उदाहरण 1920 के दशक की शुरुआत में प्रथम विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी का मानते हैं! 1923 के अंत में दाम दो साल पहले के दामों की तुलना में 36 गुना ज्यादा थे! मुद्रास्फीति इतनी ज्यादा थी कि जर्मनी मुद्रा (डाॅइच मार्क) का इस्तेमाल लोग वास्तविक मुद्रा के तौर पर न करके चूल्हा जलाने के लिए ईंधन के तौर पर कर रहे थे! 

मुद्रास्फीति के प्रभाव (mudrasfiti ka prabhav) – 

अर्थव्यवस्था पर मुद्रास्फीति के बहूपक्षी प्रभाव होते हैं, जैसे – सूक्ष्म एवं दीर्घ दोनों ही स्तरों पर! ये आय का पुनः वितरण करती है, सापेक्ष मूल्य को विकृत कर देती है, रोजगार, कर, बचत और निवेश नीतियों में अस्थिरता ला देती है और अंत में अर्थव्यवस्था में मंदी भी ला सकती है! हमें निम्नलिखित आधार पर मुद्रास्फीति के प्रभाव का वर्णन करेंगे –

(1) ऋणदाता और देनदार पर प्रभाव – 

मुद्रास्फीति संपत्ति ऋणदाता से देनदार को पुनवितरण कर देती है, जैसे- उधार देने वाले को नुकसान होता है लेकिन मुद्रास्फीति से उधार लेने वाले को फायदा होता है! अवस्फीति में इसके ठीक विपरीत परिणाम देखने को मिलता है!  

(2) कुल मांग पर प्रभाव – 

बढ़ती मुद्रास्फीति फुल मांग के बढ़ने का संकेत देती है साथ ही अपेक्षाकृत कम आपूर्ति और उपभोक्ता के बीच उच्च क्रयशक्ति का भी संकेत देती है! आमतौर पर उच्च मुद्रास्फीति से उत्पादक को ये संकेत मिलता है कि वह अपना उत्पादन बढ़ाए क्योंकि इस स्थिति में अर्थव्यवस्था में उच्च मांग के संकेत के तौर पर देखा जाता है! 

(3) खर्च पर प्रभाव – 

मुद्रास्फीति खर्च के दोनों ही प्रकारों – उपभोग और निवेश को प्रभावित करती है! दाम बढ़ने से हमारे उपभोग का स्तर नीचे आता है क्योंकि वस्तुओं और सेवाओं के लिए हमें पहले से ज्यादा कीमत चुकानी पड़ती है!

बढ़ते दाम के प्रभाव को रोकने के लिए लोग अपने उपभोग के स्तर में कटौती कर लेते हैं, जिससे उपभोग पर होने वाला खर्च कम हो जाता है! दूसरी ओर मुद्रास्फीति निवेश के खर्च को बढ़ा देती है क्योंकि रुपए या वित्त की लागत कम हो जाती है!  

(4) अर्थव्यवस्था पर प्रभाव – 

मुद्रास्फीति की वजह से अल्पावधि में रोजगार में इजाफा होता है लेकिन दीर्घकाल में या तो यह बेअसर रहता है या फिर इसका रोजगार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है!  

(5) मजदूरी पर प्रभाव – 

मुद्रास्फीति की वजह से मजदूर की नॉमिनल (फेस) वैल्यू बढ़ जाती है जबकि वास्तविक वैल्यू गिर जाती है! यही कारण की मुद्रास्फीति का क्रय शक्ति और मजदूरी पाने वाले कर्मचारियों के जीवन स्तर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है! इसी नकारात्मक प्रभाव को खत्म करने के लिए भारत सरकार द्वारा हर साल अपने कर्मचारियों को दो बार महंगाई भत्ता दिया जाता है! 

(6) आयात पर प्रभाव –

मुद्रास्फीति की वजह से किसी अर्थव्यवस्था को कम आयात और आयात प्रतिस्थापन का फायदा मिलता है क्योंकि विदेशी चीजें महंगी हो जाती है, लेकिन अनिवार्य आयात के मामलों में अर्थव्यवस्था को यह लाभ नहीं मिलता और उसे विदेशी मुद्रा बचाने के बजाय ज्यादा खर्च करना पड़ती है! 

मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के उपाय (mudrasfiti ko niyantrit karne ke upay)- 

मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए मुख्यतः दो प्रकार के उपाय राजकोषीय उपाय एवं मौद्रिक उपाय किए जाते हैं –

(1) राजकोषीय उपाय – 

राजकोषीय उपाय के तहत निम्न कदम उठाए जाते हैं-

(1) सार्वजनिक व्यय विशेषकर अनुत्पादक व्यय नियंत्रण पर रखना! 
(2) संतुलित बजट बनाना और सार्वजनिक ऋण में वृद्धि करना! 
(3) बचत को प्रोत्साहित करना एवं उत्पादन में वृद्धि करना! 
(4) प्रगतिशील करो का आरोपण करना! 

(2) मौद्रिक उपाय – 

मौद्रिक उपाय के तहत निम्न कदम उठाए जाते हैं-

(1) मुद्रा निर्गमन के नियमो को कठोर बनाना! 
(2) मुद्रा की मात्रा को संकुचित करना! 
(3) कठोर साख नीति अपनाना! 

अति मुद्रास्फीति क्या है –

जब स्फीति की दर 3 अंकों से भी अधिक हो जाए तो उसे अति मुद्रास्फीति कहते हैं ऐसी स्थिति में स्थिर आय वाली सभी परिसंपत्तियों, यथा – वेतन, गिरवी, बचत, बांड, बीमा पॉलिसी आदि का वास्तविक मूल्य कम हो जाता है!

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