अम्लीय वर्षा क्या है? अम्लीय वर्षा के कारण, प्रभाव, रोकथाम

अम्लीय वर्षा आज एक प्रमुख पर्यावरण समस्या है,  जिसका स्वरूप दिनों-दिन व्यापक होता जा रहा है! अम्लीय वर्षा शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1872 ई. में ब्रिटेन के अल्कली प्रमुख इंस्पेक्टर राबर्ट एन्गस स्मिथ ने किया, जब उन्होंने मैनचेस्टर के क्षेत्र में होने वाली वर्षा में अम्लीयता पाई थी! 

अम्लीय वर्षा क्या है (amliy varsha kya hai) –

वर्षा जल में अम्ल की बड़ी मात्रा या उपस्थिति को अम्ल वर्षा करते हैं! जब वायुमंडल की नमी के साथ सल्फर एवं नाइट्रोजन ऑक्साइड प्रतिक्रिया करते हैं तो इसका निर्माण होता है! ऐसी वर्षा जिसका pH मान 5.6 से कम हो, अम्ल वर्षा कहलाती है! 

वर्षा का जल भी पूर्णतया शुद्ध नहीं होता हैं क्योंकि वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड के वर्षा के जल में घुलने से कमजोर कार्बनिक अम्ल का निर्माण होता है जो वर्षा जल को थोड़ा अम्लीय बना देता है! एक घोल जिसका pH मान 4 है, वह pH मान 5 के घोल से 10 गुना ज्यादा तथा pH मान 6 के घोल से सौ गुना ज्यादा अम्लीय होता है!  

अम्लीय वर्षा कैसे होती है (amliy varsha kaise hoti hai) – 

जब जल का पीएच pH 4 से कम हो जाता है तो जल जैविक समुदाय के लिए हानिकारक हो जाता है! मानव जनित स्त्रोतों से निस्सृत सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) वायुमंडल में पहुंचकर जल से मिलकर सल्फेट तथा सल्फ्यूरिक अम्ल (H₂SO₄) का निर्माण करती है! जब यह अम्ल, वर्षा के जल के साथ सतह पर वर्षा के रूप में प्रकट होता है तो यह पर्यावरण को समग्र रूप से नुकसान पहुंचाता है! 

अम्लीय वर्षा के कारण (amliy varsha ke karan) – 

ज्वालामुखियों जैसे प्राकृतिक स्रोतों के कारण भी अम्ल का जमाव हो सकता है , परंतु यह मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन के दहन के दौरान सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड के उत्सर्जन के कारण होता है।

जब ये गैसे वायुमंडल में मिल जाती है, तो वे पानी, ऑक्सीजन और वहां मौजूद अन्य गैसों के साथ प्रतिक्रिया करके सल्फ्यूरिक एसिड, अमोनियम नाइट्रेट और नाइट्रिक एसिड बनाती हैं। ये अम्ल तब हवा के पैटर्न के कारण बड़े क्षेत्रों में फैल जाते हैं और अम्लीय वर्षा या अन्य प्रकार की वर्षा के रूप में वापस जमीन पर गिर जाते हैं।

अम्लीय वर्षा के प्रभाव या परिणाम (amliy varsha ke prabhav ya parinam) – 

अम्लीय वर्षा जलीय और स्थलीय दोनों प्रकार के जीवों को प्रभावित करती है! यह इमारत तथा स्मारकों को भी हानि पहुंचाती है! इसके अलावा पारितंत्र, मृदा, कृषि, पाइपलाइन के चरण, भूमिगत जल स्त्रोत आदि पर भी हानिकारक प्रभाव पड़ता है! नदियों, झीलों, तालाबों और जल के अन्य निकायों पर हानिकारक प्रभाव के कारण जलीय जीवो को संकट का सामना करना पड़ रहा है! अम्ल वर्षा ने संपूर्ण भौतिक एवं जैविक जगत को संकट में डाल दिया है! 

अम्लीय वर्षा को रोकने के उपाय (amliya varsha ko rokne ke upay) – 

(1) पुराने विद्युत संयंत्रों को नए ऊर्जा कुशल उत्पादों से बदलना! 

(2) जीवाश्म ईंधनों का वैकल्पिक विकल्प ढूंढना! 

(3) एयर कंडीशनर का उपयोग कम करें, जरूरत पड़ने पर ही रोशनी और पंखे का उपयोग करें और ऊर्जा बचाने के लिए घरेलू उपकरणों का उपयोग कम करना चाहिए! 

(4) ऐसे कोयला का उपयोग करना, जिसमें सल्फर की मात्रा कम हो! 

(5) धुएँ के ढेर से निकलने वाली गैसों से सल्फर डाइऑक्साइड निकालने वाले स्क्रबर्स को बिजली संयंत्र में स्थापित किया जा सकता है।

भारत में अम्लीय वर्षा (bharat me amliya varsha ) – 

भारत में अम्ल वर्षा की पहली रिपोर्ट 1974 मुंबई में मिली! अम्ल वर्षा की घटनाएं अब अन्य महानगरों से मिल रही है! भारत में SO2 का वार्षिक उत्सर्जन पिछले दो दशकों में जीवाश्म ईधनों के में वृद्धि के कारण दुगना हो गया है!भारत के उत्तरी पूर्वी क्षेत्र, तटीय कर्नाटक एवं केरल, पश्चिम बंगाल एवं बिहार से मृदा के pH मान में कमी की रिपोर्ट विभिन्न अध्ययनों एवं समाचार पत्र में प्रकाशित हो रही हैं!

मथुरा स्थित तेल शोधनशाला से उत्सर्जित सल्फर डाइऑक्साइड कारण ताजमहल की संगमरमर की दीवार को क्षति पहुंचाने की आशंका कई बार जताई गई है! 1998 में ध्यान देने के बाद पता चला कि अम्ल वर्षा के कारण इस सुप्रसिद्ध स्मारक का सफेद संगमरमर पीला पड़ना शुरू हो चुका है!  

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