आर्थिक भूगोल क्या है? आर्थिक भूगोल की परिभाषा, विषयक्षेत्र, प्रकृति, महत्व

आर्थिक भूगोल क्या है (aarthik bhugol kya hai) –

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आर्थिक भूगोल (Economic geography) मानव भूगोल की वह महत्वपूर्ण शाखा है जिसके अंतर्गत पृथ्वी के धरातल पर निवास करने वाले मानव की आर्थिक क्रियाओ और उनकी क्षेत्रीय भिन्नताओं और विशेषताओं का अध्ययन किया जाता है! इसके अतिरिक्त मानवीय क्रियाओं का स्थानिक वितरण अथवा उनकी आवश्यकता तथा संबंधों का भी अध्ययन इसके अंतर्गत किया जाता है!

आर्थिक भूगोल की परिभाषाएँ (aarthik bhugol ki paribhasha) –

बैंगस्टन और वॉनरैयन के अनुसार “आर्थिक भूगोल विश्व के विभिन्न भागों में पाए जाने वाले आधारभूत स्त्रोतों की भिन्नता का पर्यवेक्षण करता है! यह विश्व के भिन्न देशों और प्रदेशों में आर्थिक विकास के अन्तरों का अध्ययन करता है! इसके अंतर्गत होने यातायात व व्यापारिक मार्गों और व्यापार का अध्ययन किया जाता है जो कि भौतिक परिस्थितियों द्वारा प्रभावित होते है”!

मारफी के अनुसार,” आर्थिक भूगोल में मनुष्य के जीवोकोपार्जन की विधियो में एक स्थान से दूसरे स्थान पर मिलने वाली समानता एवं विषमता का अध्ययन किया जाता है”!

जॉन डबल्यू एलेक्जेंडर, “आर्थिक भूगोल भूतल पर धन के उत्पादन, उपभोग और विनिमय से संबंधित मानव की आर्थिक क्रियाओं से उत्पन्न क्षेत्रीय विभिन्नता का अध्ययन करता हैं!

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि आर्थिक भूगोल जीविकोपार्जन की विविध विधियों और उनकी समस्याओं संबंधित विज्ञान हैं जिसमें में भूतल के आधारभूत संसाधनों और उनसे संबंधित मानव क्रियाओं मध्य पाए जाने वाले क्षेत्रवार व परिवर्तनशील संबंधों का अध्ययन किया जाता है!

आर्थिक भूगोल की प्रकृति (aarthik bhugol ki prakriti) –

आर्थिक भूगोल की प्रकृति विविध, बहुरूपी एवं व्यापक है! इसमें देश एवं काल के अनुसार क्षेत्रवार प्रत्येक बार निरंतर परिवर्तन आते रहे हैं! इसमें संसाधन उपलब्धि के स्तर एवं उन पर निर्भरता के स्वरूप के अध्ययन पर विशेष महत्व रहा है! इसी कारण आर्थिक भूगोल का विषय क्षेत्र बहुत व्यापक है!

भूतल पर न तो जैव एवं अजैव प्राकृतिक संसाधन का वितरण समरूपी हैं, न हीं मानव द्वारा विकसित द्वितीयक, तृतीयक स्तर की व्यवसायिक सुविधा भूतल पर समान रूप से विकसित है! इसी कारण देशवार आर्थिक विकास के अंतर संबंधों में न सिर्फ समंजन की विविधता पाई जाती है बल्कि परिणामी आर्थिक विकास एवं समृद्धि के स्वरूप के स्तर में भी भिन्नताएं पाई जाती है!

प्रारंभ में आर्थिक भूगोल को पहले मानव भूगोल एवं बाद में सामाजिक भूगोल की मुख्य शाखा माना गया हैं! वर्तमान में तो आर्थिक-भूगोल स्वयं भूगोल की वृहद शाखा है! इसमें मानवीकरण के पहलुओं के अनुसार अनेक शाखाएं एवं उसी के अनुसार इसके व्यापक क्षेत्र में विविधता पाई जाती है!

अतः आर्थिक भूगोल के व्यापक क्षेत्र में ऐसे तथ्यों एवं विधियों को सम्मिलित किया जाता है जिनके द्वारा यह ज्ञात हो सके कि मानव किस प्रकार विविध चरणों में संसाधनों का कच्चा माल, खाद्यान्न एवं निर्मित माल के उत्पादन के लिए उपयोग करता है एवं किस प्रकार की वस्तुओं को सीधे अथवा पुनः विशेष प्रक्रिया द्वारा उन्हें बदलकर उपभोग करता है या स्वयं के लिए अनेक प्रकार की सुविधाएं जुटाता हैं!

आर्थिक भूगोल का विषयक्षेत्र (aarthik bhugol ki vishay vastu) –

पृथ्वी पर मानव की आर्थिक क्रियाओं का क्षेत्र बहुत व्यापक है! वर्तमान में इसमें बहुत सारी आर्थिक क्रियाएं सम्मिलित की जाती है!

(1) प्राथमिक उत्पादन संबंधी क्रियाएं-

इन क्रियाओं के अंतर्गत प्रकृति से प्राप्त संसाधनों का सीधा उपयोग होता है! कृषि कार्य में मिट्टी का सीधा उपयोग फसलें लगाने में के लिए किया जाता है!

इस प्रकार जल क्षेत्रों में मछली पकड़ना, खानों से कोयला,लोहा आदि निकालना, वनों से लकड़ियाँ काटना अथवा पशुओं से ऊन चमड़ा, बाल, खाले, हड्डियां आदि प्राप्ति करना प्राथमिक उत्पादन क्रियाएं है! इनमें संबंधित उद्योगों प्राथमिक उद्योग कहा जाता है; जैसे – कृषि करना, खाने खोदना, मछली पकड़ना, आखेट करना, वस्तुओं का संचय करना, वन संबंधी उद्योग आदि!

(2) द्वितीयक उत्पादन क्रियाएं-

इन क्रियाओं के अंतर्गत प्रकृति से प्राप्त संसाधनों का सीधा उपयोग नहीं किया जाता वरन् उनको साफ, परिष्कृत अथवा रूप- परिवर्तित कर उपयोग के योग्य बनाया जाता है! इससे उनके मूल्य में वृद्धि होती है!

जैसे – लोहे को गलाकर इस्पात के यंत्र अथवा अन्य वस्तुएं बनाना, गेहूं से आटा या मैदा बनाना, कपास और उनसे कपड़ा, लकड़ी के फर्नीचर, कागज आदि बनाना! इन वस्तुओं को तैयार करने वाले उद्योगों को द्वितीय उद्योग कहा जाता है!

(3) तृतीयक उत्पादन क्रियाएं-

इन क्रियाओं के अंतर्गत वे सभी क्रियाएं आती है जो प्राथमिक अथवा गोण उत्पादन की वस्तुओं को उपभोक्ता, उद्योगपति तक पहुंचाने से संबंधित होती है! इस प्रकार की क्रियाओं के अंतर्गत वस्तुओं का परिवहन, संचार और संवादवाहन, वितरण एवं संस्थाओं और व्यक्तियों की सेवाएं; जैसे – व्यापारी, दलाल, बैंक, बीमा, सामाजिक सेवाएं तथा विनिमय सम्मिलित की जाती है!

आर्थिक भूगोल का महत्व (aarthik bhugol ka mahatva) –

(1) यह हमें ऐसे प्राकृतिक संसाधनों की स्थिति, प्राप्ति और वितरण आदि से परिचित कराता है जिनके द्वारा वर्तमान में किसी भी देश की आर्थिक उन्नति हो सकती है!

(2) इसके अध्ययन से यह ज्ञात हो सकता है कि विशेष जलवायु के अनुसार किसी देश की आवश्यकता की पूर्ति के लिए कच्चा माल, भोज्य पदार्थ अथवा यंत्र आदि कहां से प्राप्त किए जा सकते हैं!

(3) पृथ्वी के गर्भ में कौन कौन से खनिज पदार्थ छिपे पड़े हैं, इसका पता लगाकर वहां पर अनेक प्रकार के खनिजों पर आधारित उद्योग की स्थापना की जा सकती है! इस प्रकार उद्योगों की दृष्टि से यह विषय अत्यंत उपयोगी है!

(4) विश्व के विभिन्न भागों में मानव समुदाय किस प्रकार अपने भौतिक आवश्यकताएं पूरी करता है? उसका रहन-सहन, खान-पान, वेशभूषा एवं अन्य सामाजिक परंपराएं आदि कैसी है? या उसके जीवन स्तर ऊंचा उठाने के लिए प्राकृतिक संसाधन के प्रकार उपयोग किया है? यह सब तथ्य आर्थिक भूगोल के अध्ययन से ज्ञात हो सकते हैं!

(5) किसी देश में पाई जाने वाली प्राकृतिक संपत्ति (वन्यपदार्थ व वन्य प्राणी, कृषि पदार्थ, पालतू जैव-जगत, खनिज एवं ऊर्जा पदार्थ) का किस विधि द्वारा, कहां पर हो और किस कार्य के लिए उपयोग किया जा सकता है, इन बातों का ज्ञान इकोनॉमिक ज्योग्राफी के अध्ययन से ही प्राप्त हो सकता है!

(6) आज के युग में वाणिज्य एवं अर्थशास्त्र के विद्यार्थियों के लिए आर्थिक संसाधनों का समुचित ज्ञान होना अनिवार्य हैं, क्योकिं कोई भी देश इनमें स्वावलम्बी नहीं हैं! पारस्परिक सहयोग की भावना के बिना न तो व्यक्ति और न ही किसी राष्ट्र का आर्थिक विकास संभव हैं!

आर्थिक भूगोल का अन्य विज्ञानों से संबंध (aarthik bhugol ka anya vigyano se sambandh) –

आर्थिक भूगोल मानव द्वारा भूतल के प्राकृतिक संसाधनों के विविध प्रकार से विदोहन से संबंधित विज्ञान है, जिसमें अनेक उत्पादन, परिवहन, वितरण और उपयोग का अध्ययन किया जाता है! आर्थिक-भूगोल एक विज्ञानों से जुड़ा हुआ हैं! 

आर्थिक भूगोल का अन्य विषयों से संबंध –

(1) आर्थिक भूगोल एवं अर्थशास्त्र – 

आर्थिक भूगोल का सबसे घनिष्ठ संबंध अर्थशास्त्र से है! अर्थशास्त्र भी मानव की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन करता है परंतु उसका दृष्टिकोण भिन्न होता है! अर्थशास्त्र आजीविका कमाने वाले मानव का अध्ययन” के रूप में जाना जाता है! इसके विपरीत आर्थिक भूगोल भूतल के विभिन्न भागों में आर्थिक क्रियाओं के प्रतिरूपों, वाणिज्यिक क्रियाकलापों तथा उत्पादन की उपलब्धियों का वर्णन करता है! 

(2) आर्थिक भूगोल एवं राजनीतिशास्त्र –

विश्व की आधुनिक अर्थशास्त्र मात्र संसाधनों एवं उनके उपयोग का प्रतिफल नहीं रह गई है! विश्व में विभिन्न क्षेत्रों में राजनीतिक स्थिति एवं नीतियाँ क्षेत्र की आर्थिक क्रियाओं पर बहुत प्रभाव डालती है! इस कारण आर्थिक भूगोल एवं राजनीति शास्त्र में घनिष्ठ संबंध स्थापित हो जाता है! 

राजनैतिक नीतियों का ज्ञान राजनीतिशास्त्र प्रदान करता है, जिनके परिप्रेक्ष्य में आर्थिक क्रियाओं की व्याख्या एवं विश्लेषण सही रूप में हो पाती है उसी प्रकार राजनीति शास्त्र में क्षेत्र के आर्थिक विकास एवं स्वरूप को समझने में क्षेत्र का आर्थिक -भूगोल प्रदान करता है!  

(3) आर्थिक भूगोल एवं समाजशास्त्र – 

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है! उसकी हर प्रकार की क्रिया-प्रतिक्रिया उसके सामाजिक जीवन से जुड़ी होती है एवं प्रभावित भी करती है! आर्थिक भूगोल समाजशास्त्र में मानव व्यवहार उसकी अनेक समस्याओं के अध्ययन में सहयोग प्रदान करता है! यूरोप एवं अमेरिका की सामाजिक व्यवस्था का अध्ययन उस क्षेत्र के आर्थिक स्वरूप के अध्ययन के बिना संपूर्ण नहीं हो सकता है! इस अध्ययन में इकोनॉमिक ज्योग्राफी समाजशास्त्र को सहयोग प्रदान करता है! 

(4) आर्थिक भूगोल एवं भूविज्ञान – 

आर्थिक भूगोल के अंतर्गत विभिन्न खनिजों पदार्थों का उत्पादन, वितरण एवं उस पर आधारित उद्योग प्रमुख अध्ययन का केंद्र है! इनके गहन अध्ययन में भूविज्ञान बहुत सहायता प्रदान करता है! खनिजों का रासायनिक विश्लेषण, गुण, उपयोगिता एवं खनन की तकनीक आदि पक्षों के संबंध में भूविज्ञान में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है! चट्टानों के प्रकार, उनकी स्थिति, भूगर्भ में खनिजों की खोज में भूविज्ञान महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है! इन सूचनाओं के बाद ही संसाधनों के उत्पादन की प्रक्रिया शुरू होती है! 

(5) आर्थिक भूगोल एवं इतिहास – 

इतिहास मानव के भूत से वर्तमान तक की क्रियाओं एवं विचारों का विवरण है! आर्थिक क्रियाएँ इतिहास का भी अंग है! भूतकाल में मानव द्वारा किए गए आर्थिक प्रयास, देश की योजनाएं, उत्पादन संबंधित सभी पहलु जिनका विशद अध्ययन इतिहास में होता है! इकोनॉमिक ज्योग्राफी इसी आधार पर वर्तमान विकास की समस्याओं तथा भविष्य के आर्थिक विकास के पहलुओं का अध्ययन करता है! अत: इतिहास एवं आर्थिक भूगोल भी घनिष्ठ रूप से संबंध रखते हैं!  

(6) आर्थिक भूगोल एवं समुद्र विज्ञान – 

आर्थिक भूगोल का समुद्र विज्ञान से भी गहरा संबंध है! अनेक आर्थिक क्रियाएं समुद्र से जुड़ी होती है जैसे मछली उद्योग के बिना देशों के मध्य होने वाला जल परिवहन समुद्र में पेट्रोलियम खनन आदि इस कारण आर्थिक भूगोल में समुद्र एवं उससे जुड़ी सभी जानकारियों की आवश्यकता होती है! 

समुद्र की गहराई उसमें चलने वाली धाराएं उसके जल का खारा पानी में पाए जाने वाले जीव जंतु हाथी का प्रभाव मानव की आर्थिक क्रियाओं पर पड़ता है इन तथ्यों की जानकारी समुद्र विज्ञान से प्राप्त होती है आर्थिक-भूगोल समुद्र विज्ञान की सहायता से प्राप्त करण करता है!   

(7) आर्थिक भूगोल एवं प्राणीशास्त्र – 

प्राणीशास्त्र मानव व विभिन्न जीव-जंतुओं का जैविक विश्लेषण करता है! आर्थिक भूगोल में अनेक उत्पादन एवं आर्थिक क्रियाएं विभिन्न जीव जंतुओं पर आश्रित होती है! जैसे मछली उद्योग, मांस उद्योग, दूध उद्योग, कालीन उद्योग आदि के सफल संचालन में प्राणीशास्त्र आर्थिक भूगोल की सहायता करता है! प्राणियों की बनावट, स्वभाव, आवास तथा उनकी अन्य आवश्यकताओं का ज्ञान प्राणीशास्त्र प्रदान करता है, जिनके आधार पर इनसे आर्थिक लाभ प्राप्त की विधियों का आर्थिक-भूगोल में अध्ययन किया जाता है!  

(8) आर्थिक भूगोल एवं पर्यावरण विज्ञान – 

आधुनिक युग में पर्यावरण प्रदूषण एक प्रमुख समस्या हैं और प्रायः इसके लिए अनियंत्रित आर्थिक क्रियाएं एवं जीवन शैली को उत्तरदाई माना जाता है! आर्थिक लाभ एवं विकास के लिए संसाधनों का अनियमित एवं अनिश्चित दोहन अपशिष्टो के निस्तारण का अनुचित ढंग, ऊर्जा का अत्याधिक प्रयोग एवं उपभोक्तावादी दृष्टिकोण, पृथ्वी पर पर्यावरण एवं जीवो के परस्पर संबंधों को बिगाड़ रहे हैं! 

संसाधनों के शोषण से प्रकृति का संतुलन बिगड़ने लगा है! अनेक प्रजातियाँ तथा पेड़ पौधे लुप्त हो रहे हैं! प्राकृतिक संसाधनों के अनियोजित उपयोग से पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है! आर्थिक विकास तथा पर्यावरण संरक्षण साथ-साथ हो, इस लक्ष्य की प्राप्ति में इकोनॉमिक ज्योग्राफी पर्यावरण विज्ञान से मार्गदर्शन लेता है!   

प्रश्न :- आर्थिक भूगोल के जनक कौन है?

उत्तर :- भूगोलवेत्ता जॉर्ज चिशोल्म ने आर्थिक भूगोल पर पहली पाठ्यपुस्तक लिखी और उन्हें आर्थिक भूगोल के पिता के रूप में जाना जाता है।

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