तापमान का वितरण क्या हैं? प्रभावित करने वाले कारक, क्षैतिज – लंबवत वितरण

तापमान का वितरण (temperature distribution in hindi) –

धरातल पर तथा निचले वायुमण्डल में तापमान के स्थानिक एवं कालिक वितरण (spatial and temporal distribution) का अत्यधिक महत्व होता है क्योंकि विभिन्न प्रकार की मौसम दशाओं, जलवायु प्रकारों एवं जलवायु प्रदेशों, वनस्पति प्रदेशों, जीव-जन्तुओं तथा मानव का अस्तित्व तापमान के क्षैतिज एवं लम्बवत वितरण पर आधारित होता है। तापमान का वितरण का अध्ययन कई रूपों में किया जाता है,

यथा : (1) कालिक वितरण, (2) स्थानिक वितरण।

तापमान के स्थानिक वितरण का अध्ययन दो रूपों में किया जाता है :

(अ) तापमान का क्षैतिज वितरण,

(ब) तापमान का लम्बवत वितरण ।

तापमान के क्षैतिज वितरण को प्रादेशिक वितरण के रूप में भी व्यक्त किया जाता है।

तापमान के वितरण को प्रभावित करने वाले कारक –

(1) अक्षांश का प्रभाव –

धरातलीय सतह के पास किसी भी स्थान विशेष के वायुमण्डल का तापमान उस स्थान पर प्राप्त सूर्यातप की मात्रा पर निर्भर करता है। चूंकि धरातल पर प्राप्त होने वाली सूर्यातप की मात्रा भूमध्यरेखा से ध्रुवों की ओर घटती जाती है क्योंकि सौर्यिक  किरणें ध्रुवों की ओर अत्यधिक तिरछी होती जाती हैं। अतः वायु का तापमान भी भूमध्यरेखा से ध्रुवों की ओर कम होता जाता है।

(2) सागर से दूरी –

सागरीय पर्यावरण के कारण तटीय भागों की मौसम सम्बन्धी दशाओं में समरसता आ जाती है क्योंकि स्थलीय एवं सागरीय हवाओं के दैनिक चक्र के कारण तटवर्ती सागरीय भागों एवं तटवर्ती स्थलीय भागों में ऊष्मा का मिश्रण अधिक होने से तापमान सम्बन्धी विभिन्नता कम हो जाती है! 

यही कारण है कि सागर तटीय क्षेत्रों में दैनिक तापान्तर न्यूनतम होता है सागर तट से स्थल की ओर बढ़ती दूरी के साथ दैनिक, मासिक तथा वार्षिक तापान्तर बढ़ते जाते हैं, क्योंकि ग्रीष्म एवं शरदकाल का के मौसमों में तापीय विषमता बढ़ती जाती है। सागरीय जलवायु की प्रमुख विशेषता न्यूनतम दैनिक तापान्तर का होना है, जबकि महाद्वीपीय जलवायु में उच्च दैनिक तापान्तर होता है।

(3) सागर तल से ऊंचाई – 

वायुमण्डल की निचली परत में जलवाष्प एवं धूलिकणों की मात्रा अधिक होती है तथा ऊँचाई के साथ कम होती जाती है। इस कारण से धरातलीय दीर्घतरंग द्वारा विकीर्ण ऊष्मा का अवशोषण ऊँचाई के साथ घटता जाता है जिस कारण तापमान भी कम होता जाता है।

(4) जल एवं स्थल का वितरण – 

स्थल एवं जल का स्वभाव स्थल तथा जल के विरोधी स्वभाव के कारण तापमान के वितरण में पर्याप्त अन्तर होता है। स्थलीय भाग जलीय भाग की अपेक्षा शीघ्र गर्म तथा शीघ्र ठंडा हो जाता है। इसी कारण से स्थल तथा जल पर सूर्यातप की समान मात्रा मिलने पर भी स्थल का तापमान जल से अधिक हो जाता है। स्थल के जल की अपेक्षा शीर्ष गर्म तथा ठंडा होने के कई कारण बताये जा सकते हैं! 

(5) महासागरीय धाराएँ (ocean currents)-

गर्म अक्षांशों से चलने वाली गर्मधाराएं शीतोष्ण तथा शीतकटिबंधों में तटीय भागों में औसत से तापमान अधिक कर देती हैं। गल्फस्ट्रीम यूरोप के उत्तरी-पश्चिमी भाग तथा क्यूरोसिवो जापान तथा उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तट पर अधिक ऊष्मा लाती है। लेब्राडोर, पीरू तथा कैलिफोर्निया धाराएं ठंडी होने के कारण प्रभावित क्षेत्रों में तापमान अधिक नीचा कर देती हैं। गर्म तथा ठंडी धाराएं किसी स्थान पर मिलने पर कुहरा उत्पन्न करती हैं।

(6) मेघाच्छादन (Cloud Cover) –

आकाश में बादलों की स्थिति (बादल आवरण का प्रतिशत, बादलों के प्रकार तथा उनकी मोटाई) स्थानीय, दैनिक तथा मौसमी तापमान को प्रभावित करती है, जिसके द्वारा तापान्तर निर्धारित होता है। यह आनुभविक सत्य है कि बदली वाली रात (clouded night) के समय बादल रहित रात की तुलना में तापमान अधिक रहता है। इसी तरह बादलरहित रात एवं दिन की अपेक्षा बादल सहित रात एवं दिन गर्म होते हैं।

यह स्थिति इसलिए उत्पन्न होती है कि बादल धरातलीय सतह से होने वाले बहिर्गामी दीर्घतरंग पार्थिव विकिरण की अधिकांश मात्रा का अवशोषण कर लेते हैं तथा उसे पुनः धरातल की ओर प्रतिलोम विकिरण (counter radiation) की प्रक्रिया द्वारा वापस लौटा देते हैं।

तापमान का लम्बवत वितरण (Vertical Distribution of Temperature in hindi) –

वैज्ञानिक पर्यवेक्षणों के आधार पर अब यह तय हो है कि वायुमण्डल में धरातल से ऊँचाई पर जाने पर तापमान में गिरावट आती जाती है परन्तु तापमान की गिरावट की दर में मौसम, दिन की अवधि तथा स्थिति के अनुसार अन्तर आता रहता है। औसत रूप से तापमान प्रति हजार मीटर पर 6.5° सें० की दर से कम हो जाता है। तापमान के इस पतन को सामान्य पतन दर (normal lapse rate) कहते हैं।

सामान्य पतन दर का परिकलन धरातलीय सतह के औसत तापमान 15°C तथा 11 किमी० की ऊँचाई पर औसत – 59°C तापमान के आधार पर किया जाता है। 11 किमी० की ऊँचाई तक कुल तापमान का ह्रास 15° + 590 = 74° = 74/11 = 6.7°C, अत: एक किलोमीटर पर ताप पतन 6.5° होता है।

यह तापमान के अक्षांशीय क्षैतिज पतन दर से 1000 गुना अधिक है परन्तु वास्तविक पतन दर, जिसे पर्यावरणीय पतन दर (environ- mental lapse rate) कहते हैं, में स्थानिक तथा कालिक परिवर्तन होते हैं। 1.5 से 2 किमी० की ऊँचाई तक निचले क्षोभमण्डल में पतन दर में बार-बार परिवर्तन होते हैं परन्तु ऊपरी क्षोभमण्डल (2 किमी० से ट्रोपोपाज तक) में पतन दर में कम परिवर्तन होता है।

तापमान का क्षैतिज वितरण (horizontal distribution of temperature in hindi) –

सामान्य रूप से तापमान भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर कम होता जाता है। इस तरह अधिकतम तापमान निम्न अक्षांशों में तथा न्यूनतम तापमान उच्च अक्षांशों में मिलता है। परन्तु यह स्मरणीय है कि अधिकतम तापमान भूमध्य रेखा पर या उसके पास न होकर कर्क तथा मकर रेखाओं के पास होता है, क्योंकि भूमध्य रेखा के समीपस्थ भागों में आकाश के बादलों से आच्छादित रहने के कारण सभी सूर्यातप धरातल को गर्म करने के लिए प्राप्त नहीं हो पाता है तथा अधिकांश ऊष्मा वाष्पीकरण में खर्च हो जाती है, जबकि कर्क तथा मकर रेखाओं के पास खुले आकाश के कारण सौर्यिक ऊष्मा अबाध गति से धरातल पर पहुँच जाती है।

आपको यह भी पढना चाहिए –

वायुमंडल के ठंडे एवं गर्म होने की प्रक्रिया

Leave a Comment

error: Content is protected !!