संसाधन किसे कहते हैं? संसाधनों का वर्गीकरण, विशेषताएं, (sansadhan)

संसाधन किसे कहते हैं (sansadhan kise kahate hain) –

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प्रत्येक वस्तु जिसका प्रयोग आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किया जा सकता है, वह संसाधन (sansadhan) है! हमारे पर्यावरण में उपलब्ध प्रत्येक वस्तु जो हमारी आवश्यकता को पूरा करने में प्रयुक्त की जा सकती है और जिसका बनाने के लिए प्रौद्योगिकी उपलब्ध है, जो आर्थिक रूप से संभाव्य और  सांस्कृतिक रूप से मान्य है, एक ‘संसाधन‘ है! 

संसाधनों के प्रकार (sansadhano ke prakar) –

संसाधन मानवीय क्रियाओं का परिणाम है! मानव स्वयं भी एक महत्वपूर्ण संसाधन है! वह पर्यावरण में पाए जाने वाले पदार्थों को संसाधन में परिवर्तित करते हैं तथा प्रयोग करते हैं! इन संसाधनों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया जा सकता है –

(1) उत्पत्ति के आधार पर – जैव और अजैव

(2) समाप्यता के आधार पर – नवीकरण योग्य और अनवीकरण योग्य!

(3) स्वामित्व के आधार पर – व्यक्तिगत, सामुदायिक, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय

(4) विकास के स्तर के आधार पर – संभावी, विकसित, भंडार और संचित कोष! 

(5) संसाधनों की प्रकृति के आधार पर – प्राकृतिक और मानव निर्मित 

(1) उत्पत्ति के आधार पर संसाधन – 

(1) जैव संसाधन – 

इन संसाधनों की प्राप्ति जीवमंडल से होती है और इनमें जीवन में व्याप्त होता है, जैसे – मनुष्य, प्राणिजात, वनस्पतिजात, मत्स्य जीवन, पशुधन आदि! 

(1) अजैव संसाधन –  

वे सभी संसाधन जो निर्जीव वस्तुओं से बने होते हैं, अजैव संसाधन कहलाते हैं! जैसे – चट्टान, धातु आदि! 

संसाधनों के प्रकार sanshadhan

(2) समाप्यता के आधार पर –

(1) नवीकरणीय संसाधन क्या है (navikarniya sansadhan kise kahate hain) –

वे संसाधन जिन्हें भौतिक, रासायनिक या यांत्रिक प्रक्रियाओं द्वारा नवीनीकृत या पुनः उत्पन्न किया जा सकता है, उन्हें नवीकरणीय अथवा पुन: पूर्ति योग्य संसाधन कहा जाता है! उदाहरण – सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल, वन और वन्य जीव आदि

(2) अनवीकरणीय संसाधन किसे कहते हैं (anavikarniya sansadhan kise kahate hain)-

इन संसाधनों का विकास एक लंबे भूवैज्ञानिक अंतराल में होता है! खनिज और जीवाश्म ईंधन इस प्रकार के संसाधनों के उदाहरण है! इसके बनने में लाखों वर्ष लग जाते हैं! इनमें से कुछ संसाधन जैसे धातुओं पुनः चक्रीय हैं तथा कुछ संसाधन जैसे जीवाश्म ईंधन अचक्रीय है एवं एक बार प्रयोग के साथ समाप्त हो जाते हैं! 

(4) विकास के स्तर के आधार पर संसाधन –

(1) संभावी संसाधन – 

वे संसाधन, जो किसी प्रदेश में विद्यमान होते हैं परंतु उनका उपयोग नहीं किया गया है, संभावित संसाधन कहलाते हैं! उदाहरण के तौर पर भारत के पश्चिमी भाग विशेषता राजस्थान और गुजरात में पवन और सौर ऊर्जा के संसाधनों की अपार संभावना है परंतु इनका सही ढंग से विकास नहीं हो पाया है! 

(2) विकसित संसाधन (viksit sansadhan kise kahate hain) – 

वे संसाधन जिनका सर्वेक्षण किया जा चुका है और उनके उपयोग की गुणवत्ता और मात्रा निर्धारित की जा चुकी है, विकसित संसाधन कहलाते हैं! संसाधनों का विकास प्रौद्योगिकी और उनकी संभाव्यता के स्तर पर निर्भर करता है! 

(3) भंडारित संसाधन किसे कहते हैं (bhandarit sansadhan kise kahte hai) –

पर्यावरण में उपलब्ध वे पदार्थ जो मानव की आवश्यकता की पूर्ति कर सकते हैं परंतु उपयुक्त प्रौद्योगिकी के अभाव में उसकी पहुँच से बहार हैं, भंडारित संसाधन में शामिल हैं! उदाहरण के लिए, जल दो गैसों, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का यौगिक है, हाइड्रोजन ऊर्जा का मुख्य स्रोत बन सकता है! परंतु इस उद्देश्य से, इसका प्रयोग करने के लिए हमारे पास उन्नत तकनीकी उपलब्ध नहीं है! 

(4) संचित संसाधन किसे कहते हैं (sanchit sansadhan kise kahate hain) – 

यह संसाधन भंडार का ही हिस्सा है, जिन्हें तकनीकी ज्ञान की सहायता से प्रयोग में लाया जा सकता है, परंतु इनका उपयोग अभी आरंभ नहीं हुआ है! इनका उपयोग भविष्य में आवश्यकता की पूर्ति के लिए किया जा सकता है! नदियों के जल को विद्युत पैदा करने में प्रयुक्त किया जा सकता है, परंतु वर्तमान समय में इनका उपयोग सीमित पैमाने पर हो रहा है! इस प्रकार बांधों में जल, वन आदि संचित कोष है! 

(5) संसाधनों की प्रकृति के आधार पर – प्राकृतिक और मानव निर्मित –

(A) प्राकृतिक संसाधन किसे कहते हैं (prakrutik sansadhan kise kahate hain) – 

वे संसाधन जो प्रकृति से प्राप्त होते हैं और अधिक संशोधन के बिना उपयोग में लाए जा सकते हैं, प्राकृतिक संसाधन कहलाते हैं! जैसे – वायु, नदियां, झीलों का जल, मृदा और खनिज आदि सभी प्राकृतिक संसाधन है! 

इनमें से अधिकांश संसाधन प्रकृति के निशुल्क उपहार है और सीधे ही उपयोग में लाए जा सकते हैं! कुछ परिस्थितियों में इन संसाधनों का उपयोग करने के लिए औजार और प्रौद्योगिकी की आवश्यकता हो सकती हैं! 

(2) मानव निर्मित संसाधन किसे कहते हैं – 

वे संसाधन जिसका निर्माण मानव अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए करता है, मानव निर्मित संसाधन कहलाता हैं! मानव प्रकृति संसाधनों का उपयोग पुल, सड़क, मशीन और वाहन बनाने में करते हैं! 

संसाधन की विशेषताएं (sansadhan ki visheshta) – 

(1) संसाधन आर्थिक रूप से साध्य होते हैं! 

(2) कुछ संसाधन सीमित और कुछ संसाधन असीमित मात्रा में उपलब्ध होते हैं!

(3) यह मनुष्य को प्रकृति द्वारा प्रदान किए गए निशुल्क उपहार है!

(4)  ये मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं!

(5) ये सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य हैं! 

(6) ये तकनीक के द्वारा प्राप्त होतें हैं!

संसाधन के रूप में लोग (sansadhan ke roop mein log ) – 

स्वयं मानव भी एक महत्वपूर्ण संसाधन है! ये लोगों के विचार, ज्ञान, अविष्कार और खोज ही है जो और अधिक संसाधनों की रचना करते हैं! प्रत्येक खोज अथवा अविष्कार से बहुत से अन्य खोज एवं अविष्कार होते हैं! 

आग की खोज से खाना पकाने की पद्धति एवं अन्य प्रक्रियाओं का प्रचलन हुआ, जबकि पहिये के अविष्कारक से अंततः परिवहन की नवीनतम विधियों का विकास हुआ! जलविद्युत बनाने की प्रौद्योगिकी ने तेजी से बढ़ते हुए जल से ऊर्जा उत्पन्न करके उसे एक महत्वपूर्ण संसाधन बना दिया!  

संसाधनों का महत्व (sansadhan ka mahatva) — 

संसाधन किसी भी देश का आर्थिक और सामाजिक के मेरुदंड होते है! संसाधन विपन्न राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय दौड़ में पिछड़ जाते हैं! इसका मतलब यह नहीं हैं कि प्राकृतिक संसाधन से संपन्न राष्ट्र ही विकास करते हैं! जापान एक ऐसा देश हैं जो प्राकृतिक संसाधन में अत्यंत विपन्न हैं! किंतु मानव संसाधन, तकनीकी दृष्टि से विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा है! 

अत: किसी देश के विकास में भौतिक एवं जैविक संसाधन के साथ साथ मानव संसाधन की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है! विभिन्न संसाधनों के मध्य मानव नियंत्रक की स्थिति में रहता है; जो पर्यावरण में उपलब्ध पदार्थों, प्रौद्योगिकी एवं संस्थाओं के बीच अन्तसंबंध स्थापित करता है, जिससे पर्यावरण में उपलब्ध पदार्थ उपयोगी बन जाते हैं! 

संसाधनों का विकास (sansadhano ka vikas) – 

संसाधनों का सफलतापूर्वक उपयोग करना और उन्हें नवीनीकरण के लिए समय देना संसाधन संरक्षण कहलाता है! संसाधन जिस प्रकार मनुष्य के जीवन यापन के लिए अति आवश्यक है, उसी प्रकार जीवन की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए भी महत्वपूर्ण है! ऐसा विश्वास किया जाता है कि संसाधन प्रकृति की देन है! परिणामस्वरूप, मानव ने इनका का दुरुपयोग किया है जिससे अनेक समस्याएं उत्पन्न हो गई है! 

संसाधनों का उपयोग करने की आवश्यकता और भविष्य के लिए उनके संरक्षण में संतुलन बनाए रखना सतत पोषणीय विकास कहलाता है! संसाधन के संरक्षण के अनेक तरीके हैं! प्रत्येक व्यक्ति उपभोग को कम करके वस्तुओं के पुनर्चक्रण और पून: उपयोग द्वारा योगदान दे सकता है! 

अंततः यह एक विभिन्नता बनाता है क्योंकि सभी जीवन एक दूसरे से जुड़े हुए हैं! सतत पोषणीय विकास द्वारा ही हम अगली पीढ़ी को उनकी जरूरत के अनुसार संसाधन उपलब्ध करवा सकते हैं! इसलिए संसाधन विकास आवश्यक हैं! 

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