पशुपालन क्या है (pashupalan kya hai) –
सभ्यता एवं संस्कृति के विकास के साथ-साथ मनुष्य ने बुद्धि एवं विवेक का भी विकास होता गया! पुरातात्विक काल में मनुष्य आखेटक एवं घुमंतू था परंतु मध्यपाषाण काल में जीवन में स्थायित्व आने के साथ-साथ मनुष्य शिकारी के साथ साथ पशुपालक भी बन गया और पशुपालन शुरू कर दिया! इस प्रकार भारत में पशुपालन प्रारंभ हुआ!
पशुपालन का अभिप्राय पशुओं की देखभाल तथा उनका उपयोग होता है! देखभाल से तात्पर्य पशुओं के प्रजनन, उनके पोषण, उनके आवास तथा उनकी स्वास्थ्य संबंधी देखभाल से हैं, जबकि उनके उपयोग से तात्पर्य उनसे ऊर्जा स्त्रोत के रूप में दूध, मांस आदि खाद्य पदार्थों को प्राप्त करना है!
विकास के क्रम में पशुपालन कृषि यह प्रक्रिया के साथ-साथ स्वतंत्र व्यवसाय के रूप में विकसित हुआ और वर्तमान में हमारी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का मूलभूत आधार है! पशुधन में एक व्यापक शब्द है, जिसमें गाय, भेड़, बकरी, ऊॅट तथा मुर्गियों को भी सम्मिलित किया जाता है!
पशुपालन का महत्व (pashupalan ka mahatva) –
पशुपालन से प्राप्त विभिन्न पदार्थ ही जीवन चलाने में उत्तरदाई है! इन पदार्थों के विभिन्न उपयोग किसान के जीवन में हैं, जिनका वर्णन निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत किया गया है –
(1) दूध एवं दूग्ध पदार्थ –
भेड़, बकरी, गाय, भैंस एवं ऊँट से दूध प्राप्त होता है, वह मनुष्य के लिए संपूर्ण भोजन है! इस दूध में ऊर्जा पैदा करने वाले अवयव वसा, प्रोटीन एवं शर्करा मनुष्य की प्रतिदिन की आवश्यकता को पूरा करते हैं! इसके अतिरिक्त इन पशुओं के दूध में सभी प्रकार के खनिज पदार्थ, विटामिन एवं शक्तिवर्धक पदार्थ भी पाए जाते हैं! जिसकी आवश्यकता मनुष्य के शरीर में होती है, इसीलिए किसी विद्वान ने यहां तक कहा है कि “Milk is Better than Silk” अर्थात रेशम की अपेक्षा दूध अधिक मूल्यवान वस्तु है!
(2) ऊन –
पशुओं से उन की प्राप्ति भी होती है! अब देश के अन्य कम वर्षा वाले भागों में भी भेड़ पालन संभव हो पाया है! पहाड़ी क्षेत्रों में भेड़ अधिक पाली जाती है! ऊन का विभिन्न फैक्ट्रियों द्वारा कपड़ा बनाने में उपयोग किया जाता है! किसान, श्रमिकों एवं अन्य व्यापारियों की जीविका का साधन है! राज्य की आर्थिक स्थिति भी इसे मजबूत होती है!
(3) चमड़ा –
चमड़ा उद्योग भारत के उद्योगों में आजकल बहुत ऊपर है! इस उद्योग से भारत में लाखों लोगों को रोजगार मिला है! राजस्थान में यह मुख्य उद्योग है! भेड़, बकरी, गाय एवं उनके चमड़े से रोजमर्रा के उपयोग में लाई जाने वाली वस्तुओं का निर्माण किया जाता है! उदाहरण के लिए जूते, कोर्ट, पर्स या विभिन्न उपकरणों के कवर के लिए इन पशुओं के चमड़ा का उपयोग किया जाता है!
(4) सींग एवं खुर –
विभिन्न पशुओं के सिंग एवं खुर का उपयोग सजावट की वस्तुओं में किया जाता है! इनसे बटन, कंघे आदि वस्तुओं का निर्माण भी किया जाता है! इन वस्तुओं की विदेशों में अधिक खपत हैं तथा इनसे विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है!
(5) खाद –
भेड़, बकरी तथा गाय के मलमूत्र का खाद के रूप में उपयोग किया जाता है, जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति में वृद्धि होती है! इसके अतिरिक्त पशुओं से मांस प्राप्त करते समय जो रक्त मिलता है, उसे भी खाद में बदल दिया जाता है!
(6) हड्डी का चुरा –
विभिन्न पशुओं से जो अतिरिक्त हड्डियां प्राप्त होती है, उनसे हड्डी का चूरा तैयार किया जाता है! यह एक पौष्टिक आहार है, जिससे मुर्गियों के उपयोग में लाया जाता है! इस आहार में कैल्शियम, फास्फोरस तथा अन्य कई प्रकार के तत्व मिलते हैं, जिससे मुर्गी की खनिज लवण की आवश्यकताएँ पूरी होती है!
भारतीय अर्थव्यवस्था में पशुपालन का महत्व (bhartiya arthvyavastha me pashupalan ka mahatva) –
भारत में लगभग 20.5 मिलियन लोग अपनी आजीविका के लिए पशुधन पर निर्भर हैं, यह ग्रामीण समुदाय के दो-तिहाई लोगों को आजीविका प्रदान करता है! यह भारत में लगभग 8% आबादी को रोजगार भी प्रदान करता है! इस क्षेत्र का सकल घरेलू उत्पाद में 11% और कुल कृषि सकल घरेलू उत्पाद का 25.6% योगदान है!
भारत में पशुपालन की चार कठिनाइयां (bharat me pashupalan ki char kathinaiyon) –
(1) संगठित बाजारों तक खराब पहुंच से किसानों को दूध के उचित मूल्य नहीं मिल पाता है!
(2) गुणवत्तापूर्ण प्रजनन करने वाले सांडों की सीमित उपलब्धता के कारण उच्च कोटि के पशुओं की संख्या में कमी!
(3) टीकों की कमी और टीकाकरण की व्यवस्था का पर्याप्त न होना!
(4) औद्योगीकरण और शहरीकरण के कारण अधिकांश चरागाह भूमि या तो खराब हो गई है या अतिक्रमण कर ली गई है, जिससे पशुओं के भोजन की उपलब्धता में कमी आई हैं!
(5) पशुपालन के लिए वैज्ञानिक प्रबंधन पद्धतियों की कमी और प्रशिक्षण की कमी के कारण, रोग नियंत्रण, नस्ल सुधार, और उत्पादन वृद्धि में कठिनाइयाँ का सामना करना पड़ता हैं।
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