पंचायती राज व्यवस्था क्या है –
भारत में “पंचायती राज” शब्द का अभिप्राय ग्रामीण स्थानीय स्वशासन पद्धति से है।यह भारत के सभी राज्यों में, जमीनी स्तर पर लोकतंत्र के निर्माण हेतु राज्य विधानसभाओं द्वारा स्थापित किया है।
1992 के 73वें संविधान संशोधन द्वारा पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्राप्त हुआ। इस संविधान संशोधन द्वारा संविधान में भाग 9 को पुनः स्थापित कर 16 अनुच्छेद [243-243(O)] तथा 11वीं अनुसूची भी जोड़ी गई ग्यारहवीं अनुसूची में कुल 29 विषयों का उल्लेख है जिन पर पंचायत को कानून बनाने की शक्ति प्रदान की गई है।
पंचायती राज व्यवस्था का इतिहास –
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद गांधीजी के ग्राम स्वराज्य की संकल्पना को साकार करने के उद्देश्य से पंचायती राज व्यवस्था पर विशेष बल दिया गया! महात्मा गांधी के अनुसार, यदि गांव नष्ट होते हैं तो भारत नष्ट हो जाएगा! गावों की उन्नति और प्रगति पर ही भारत की उन्नति और प्रगति निर्भर करती है! भारत के संविधान निर्माता भी इस तथ्य से भली भांति परिचित थे, अत: उन्होंने अनुच्छेद 40 के अंतर्गत पंचायती राज व्यवस्था को राज्य नीति निर्देशक तत्व के अंतर्गत रखा!
अनुच्छेद-40 को क्रियान्वयन करने हेतु केंद्र में पंचायती राज एवं सामुदायिक विकास मंत्रालय की स्थापना की गई, जिसका मंत्री एस. के. डे. को बनाया गया! 2 अक्टूबर, 1952 को सामुदायिक विकास कार्यक्रम प्रारंभ किया गया! इस कार्यक्रम का उद्देश्य सामान्य जनता को विकास प्रणाली से अधिक से अधिक सहयुक्त करना था!
इस कार्यक्रम के अधीन खंड को इकाई मानकर उसे विकास हेतु सरकारी कर्मचारियों के साथ जनता को विकास की प्रक्रिया से जोड़ने का प्रयास किया गया, लेकिन जनता को कोई अधिकार नहीं दिया गया! परिणामस्वरुप यह कार्यक्रम सरकारी अधिकारियों तक सीमित रह गया और असफल हो गया! इसके बाद 2 अक्टूबर 1953 को राष्ट्रीय प्रचार सेवा को प्रारंभ किया गया, यह भी असफल रहा!
इसके पश्चात बलवंत राय मेहता समिति, अशोक मेहता समिति, डॉक्टर जी.वी.के राव समिति, डॉक्टर एल. एम. सिंघवी समिति तथा पी. के. थुंगल समिति द्वारा संविधान पंचायती राज के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया गया! इसके पश्चात 73 वा संविधान संशोधन अधिनियम, 1952 को पारित किया गया! इस अधिनियम द्वारा पंचायती राज व्यवस्था को अंतिम रूप दिया गया!
बलवंत राय मेहता समिति –
सामुदायिक विकास कार्यक्रम तथा राष्ट्रीय प्रसार सेवा के असफल होने के बाद पंचायत राज व्यवस्था को मजबूत बनाने की सिफारिश करने हेतु 1957 बलवंत राय मेहता की अध्यक्षता में ग्रामोदय समिति का गठन किया गया! इस समिति ने स्थानीय स्वशासन हेतु ग्राम से लेकर जिला स्तर तक त्रि-स्तरीय पंचायत व्यवस्था का सुझाव दिया!
इस त्रिस्तरीय व्यवस्था में ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत, ब्लॉक स्तर पर पंचायत समिति और जिला स्तर पर जिला परिषद के गठन की सिफारिश की गई थी! समिति ने यह भी सिफारिश की थी कि लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की शुरुआत पंचायती समिति के स्तर पर होनी चाहिए!
अशोक मेहता समिति (ashok mehta samiti) –
बलवंत राय मेहता समिति की सिफारिशों के आधार पर स्थापित पंचायती राज व्यवस्था में कई कमियां उत्पन्न हो गई, जिन्हें दूर करने हेतु 1977 में अशोक मेहता समिति का गठन किया गया! इस समिति ने पंचायत राज व्यवस्था के त्रि-स्तरीय ढांचे के स्थान पर द्वि-स्तरीय ढांचे की संस्तुति की!
डॉ. जी. वी. के. राव समिति –
1985 में डॉ. जी. वी. के. राव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया! समिति को यह कार्य सौंपा गया कि वह ग्रामीण विकास तथा गरीबी को दूर करने के लिए प्रशासन व्यवस्था पर सिफारिश करें!
समिति ने राज्य स्तर पर राज्य विकास परिषद, जिला स्तर पर जिला परिषद, मंडल स्तर पर मंडल पंचायत और ग्राम स्तर पर ग्राम सभा के गठन की सिफारिश की! इस समिति ने विभिन्न अनुसूचित जाति तथा जनजाति एवं महिलाओं के लिए भी आरक्षण की सिफारिश की लेकिन समिति की सिफारिशों को अमान्य दिया गया
पंचायती राज व्यवस्था के उद्देश्य –
पंचायती राज व्यवस्था के उद्देश्य इस प्रकार हैं –
(1) भारत गांवों का देश है अतः भारत की उन्नति तभी हो सकती है जब गांव की उन्नति हो! गांव के समग्र विकास के लिए ग्रामीण शासन व्यवस्था आवश्यक है!
(2) लोकतंत्र के इस आधारभूत अवधारणा इस पर आधारित है कि शासन के प्रत्येक स्तर पर जनता अधिक से अधिक शासन संबंधी कार्य में हाथ बटाए तथा खुद पर राज्य करने का उत्तरदायित्व स्वयं वहन करें!
(3) स्थानीय सामाजिक आर्थिक समस्या का हल स्थानीय लोगों द्वारा करना और स्थानीय लोगों को स्थानीय मामलों में नियोजन करने और उनका संचालन करने हेतु अवसर मुहैया कराना!
(4) स्थानीय समस्याओं, जरूरतों और असंतोष आदि के संदर्भ में स्थानीय लोगों को ही वस्तुस्थिति की सही जानकारी होती है, अतः स्थानीय शासन में लोगों को भागीदार बनाना!
(5) समाज के कमजोर वर्गों महिलाओं, दलितों और पीड़ितों का सशक्तिकरण करना!
पंचायती राज व्यवस्था की विशेषताएं –
पंचायतों का गठन –
अनुच्छेद 243(B) भारत में त्रिस्तरीय पंचायती राज का प्रावधान करता है। प्रत्येक राज्य में ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत, मध्यवर्ती स्तर पर जनपद पंचायत, जिला स्तर पर जिला पंचायत के गठन का प्रावधान करता है।
यदि किसी राज्य की जनसंख्या 20,00,000 से कम है, तो वहां मध्यवर्ती स्तर पर पंचायतों का गठन करना आवश्यक नहीं है। उल्लेखनीय है कि पश्चिम बंगाल में चार स्तरीय पंचायती व्यवस्था अपनाई गई हैं।
पंचायतों की संरचना –
ग्राम, जनपद तथा जिला पंचायत के सभी सदस्य जनता द्वारा सीधे चुने जाएंगे। मध्य एवं जिला स्तर पर पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव निर्वाचित सदस्यों द्वारा उन्ही में से अप्रत्यक्ष रूप से होगा, जबकि ग्राम स्तर पर पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव राज्य के विधानमंडल द्वारा निर्धारित तरीके से किया जाएगा।
लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा तथा विधानपरिषद् के सदस्यों का मध्यवर्ती तथा जिला पंचायतों में प्रतिनिधित्व (पदेन सदस्य रुप में ) राज्य विधान मंडल द्वारा बनाई गई विधि द्वारा नियत किया जाएगा।
पंचायतों में आरक्षण –
यह अधिनियम प्रत्येक स्तर पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा महिलाओं के लिए स्थानों के आरक्षण का प्रावधान करता है। अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिए स्थानों का आरक्षण उनकी जनसंख्या के अनुपात में होगा,
जबकि महिलाओं के लिए उपलब्ध कुल सीटों की संख्या में आरक्षण का एक तिहाई से कम नहीं होगा। यह अधिनियम राज्य विधानमंडल को यह शक्ति प्रदान करता है कि वह अन्य पिछड़ा वर्ग को किसी स्तर की पंचायतों में या अध्यक्षों के पदों पर आरक्षण दे सकता है।
पंचायतों का कार्यकाल –
यह अधिनियम सभी स्तरों पर पंचायतों का कार्यकाल पांच वर्ष के लिए निश्चित करता है। तथापि समय पूरा होने से पूर्व भी उसे विघटित किया जा सकता है। इसके बाद पंचायत गठन के लिए नए चुनाव होंगे।
(अ) इसकी 5 वर्ष की अवधि खत्म होने से पूर्व या
(ब) विघटित होने की दशा में इसके विघटित होने की तिथि से 6 माह खत्म होने की अवधि के अंदर।
सदस्य के लिए योग्यताएं एवं अयोग्यताएं-
वह व्यक्ति, जिसने 21 वर्ष की आयु प्राप्त कर ली है तथा संबंधित राज्य के विधानमंडल के निर्वाचन हेतु किसी विधि द्वारा अयोग्य न कर दिया गया हो, तो वह पंचायत का सदस्य चुने जाने की योग्य होगा है। यदि यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि किसी पंचायत का कोई सदस्य उपयुक्त आधार पर अयोग्य है या नहीं, तो इसका निश्चय ऐसी रीति से किया जाएगा, जो राज्य विधानमंडल विधि बनाकर उपबंधित करें ।
पंचायतों के कार्य एवं शक्तियां –
राज्य विधानमंडल पंचायतों को आवश्यकतानुसार ऐसी शक्तियां और अधिकार दे सकता है, जिससे कि वह स्वशासन संस्थाओं के रूप में कार्य करने में सक्षम हो। यह शक्तियां निम्नलिखित से संबंधित हो सकती है-
(1) आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय कार्यक्रम को तैयार करें।
(2) आर्थिक विकास तथा सामाजिक न्याय की ऐसी योजनाओं का नियमित करना जो उन्हें सौंपी जाए।
(3) 11वीं अनुसूची में सूचीबद्ध विषय । इसके अलावा राज्य विधानमंडल पंचायतों के वित्तीय स्रोत व कर लगाने के संबंध मेंं शक्तियां प्रदान कर सकता हैं!
सभी ग्रामीण वयस्क 18 या उससे अधिक जो मतदाता सूची में नाम अंकित हो, ग्राम समिति तथा ग्राम पंचायत सदस्यों का चुनाव करते हैं! चुनाव प्रत्यक्ष मतदान प्रक्रिया द्वारा होता है, पंचायत सदस्य चुने जाने की न्यूनतम आयु 21 वर्ष होती है
वित्त –
राज्य विधान मंडल निम्नलिखित अधिकार रखता है –
(अ) पंचायत को उपयुक्त कर, चुंगी, शुल्क लगाने और उनके संग्रहण के लिए प्राधिकृत कर सकता है।
(ब) राज्य विधान मंडल राज्य सरकार द्वारा आरोपित और संग्रहित करो, चुंगी,मार्ग कर और शुल्क पंचायतों को सौपे जा सकते हैं।
(स) राज्य की समेकित निधि से पंचायतों को अनुदान सहायता देने के लिए उपबंध करता है।
(द) निधियों के गठन का उपबंध करेगा जिसमें पंचायतों को दिया गया सारा धन जमा होगा।
पंचायती राज व्यवस्था की समस्याएं –
पंचायती राज की समस्याएं इस प्रकार हैं –
(1) पंचायती राज व्यवस्था लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया है! कई बार वह केंद्र को कमजोर बनाती है! वोट की राजनीति के कारण कभी-कभी कोई स्थानीय या क्षेत्रीय मुद्दा राष्ट्रीय हितों से ऊपर हो जाता है!
(2) भारत में ग्रामों का सामाजिक वातावरण भी एक बहुत बड़ी समस्या है! ग्रामीण समाज अशिक्षित, रूढ़िवादी एवं जातिवादी में झगड़ा हुआ है! परिणामतः लोगों में अवसरों एवं अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता का अभाव देखने को मिलता है!
(3) पंचायत चुनाव में व्यापक भ्रष्टाचार एवं हिंसा पंचायती व्यवस्था एवं लोकतंत्र को खोखला कर रहा है!
(4) वित्तीय संसाधनों की कमी पंचायती संस्थानों की बहुत बड़ी कमजोरी है! पंचायती संस्थान सदैव धन के अभाव से ग्रसित रहती है, जिसके कारण वह लोक कल्याणकारी योजनाओं का कार्यान्वयन नहीं कर पाती है!
(5) पंचायत राज व्यवस्था में मध्य एवं जिला स्तर की पंचायतों में विधायक और सांसदों का पदेन सदस्य के रुप में सम्मिलित किया गया है, जो पंचायतों के निर्वाचित सदस्यों के कार्यों को बाधित करतें हैं!
(6) पंचायती राज अधिनियम के माध्यम से दिए गए आरक्षण भी अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं! अधिकांश महिला प्रतिनिधि के स्थान पर उनके पति तथा कमजोर वर्ग के स्थान पर प्रभावशाली व्यक्ति शासन चला रहे हैं!
प्रश्न :- पंचायती राज व्यवस्था सर्वप्रथम किस राज्य में लागू किया गया?
उत्तर :- पंचायती राज्य का शुभारंभ स्वतंत्र भारत में 2 अक्टूबर 1959 ई. को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के द्वारा राजस्थान राज्य के नागौर जिले में हुआ! 11 अक्टूबर 1959 को पंडित नेहरू ने आंध्र प्रदेश राज्य में पंचायती राज्य आरंभ किया इस प्रकार पंचायती राज्य को अपनाने वाला आंध्र प्रदेश दूसरा राज्य बना
प्रश्न :- पंचायती राज व्यवस्था का जनक किसे कहा जाता है?
उत्तर :- पंचायती राज व्यवस्था का जनक बलवंत राय मेहता कहा जाता है! पंचायत राज व्यवस्था को मजबूत बनाने की सिफारिश करने हेतु 1957 बलवंत राय मेहता की अध्यक्षता में ग्रामोदय समिति का गठन किया गया था!
Mp psc