मत्स्य पालन क्या है? मत्स्य पालन के प्रकार, महत्व, समस्याएं

मत्स्य पालन क्या है (matsya palan kya hai) –

भारत में मछली पकड़ने और खाने का कार्य बहुत पुराने समय से चला आ रहा है। प्राचीन संस्कृत और हिंदी साहित्यो में भी अनेक स्थानों पर मछलियों का जिक्र हुआ है ऐसा अनुमान है कि भारत में मत्स्य पालन का कार्य 350 ईसा पूर्व प्रारंभ हुआ था।

कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में मछलियों को युद्ध के समय विष डालकर मारने का उल्लेख किया है। इन बातों से स्पष्ट है कि मत्स्य का ज्ञान भारत के प्राचीन काल से ही है, परंतु प्राचीन काल में मछली पालन का ज्ञान तथा मछलियों का अध्ययन वैज्ञानिक आधार पर ना होकर परंपरागत था!

आधुनिक काल में स्वतंत्रता प्राप्ति तक यह कार्य परंपरागत तरीके से चलता आ रहा था। 1947 के पहले तक केंद्र सरकार मत्स्य पालन के क्षेत्र में कोई हस्तक्षेप नहीं करती थी तथा सभी राज्य इस कार्य हेतु स्वतंत्र थे।

1947 के बाद केंद्र ने इस कार्य को अपने हाथों में ले लिया तथा इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय कार्य किए,जिसके परिणाम स्वरूप भारत में मत्स्य उत्पादन 600 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रतिवर्ष से बढ़कर आज 3000 से 4000 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष हो गया।

भारत में मत्स्य पालन के प्रकार (matsya palan ke prakar) –

भारत में मित्स्यिकी के मुख्य दो प्रकार हैं-

(1) समुद्री मित्स्यिकी –


समुद्री जल में कुल मत्स्य पालन का 40% उत्पादित होता है। इसके अंतर्गत प्रमुख उत्पादक क्षेत्र कच्छ, मालाबार एवं कोरोमंडल के तटीय क्षेत्र है। भारत में समुद्री जल में पाई जाने वाली प्रमुख मछलियां सरडाइन, हेरिग, ज्यूफिश, भारतीय सामन आदि है।

(2) स्वच्छ जल या अन्तदेशीय मित्स्यिकी –


आंतरिक जलीय क्षेत्र को स्वच्छ जलीय क्षेत्र माना जाता है, जिसके अंतर्गत नदियां, नहरे, तालाब, झीले आदि आते है। इन क्षेत्रों में विशाल जनसंख्या को पूर्ण अथवा अल्प रोजगार प्राप्त होता है। स्वच्छ जल में कुल मत्स्य उत्पादन का 60 प्रतिशत उत्पादित होता है। रोहू, कतला, मशीर, मुरार आदि स्वच्छ जल में पाई जाने वाली मछलियां है।

भारतीय अर्थव्यवस्था में मत्स्य पालन का महत्व –

भारतीय अर्थव्यवस्था में मत्स्य पालन का महत्वपूर्ण स्थान है, और इसके महत्व को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है:

(1) आय और रोजगार के साधन‌ –

मत्स्य पालन भारत में लाखों लोगों के लिए रोजगार का स्रोत है। यह विशेष रूप से तटीय और द्वीपीय क्षेत्रों के निवासियों के लिए महत्वपूर्ण है। मत्स्य पालन और उससे संबंधित गतिविधियाँ लाखों परिवारों की आय का एक प्रमुख हिस्सा हैं।

(2) आर्थिक योगदान –

मत्स्य पालन क्षेत्र भारतीय GDP में महत्वपूर्ण योगदान करता है। मछली और समुद्री उत्पादों के निर्यात से भारत को विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है, जो देश के आर्थिक विकास में सहायक है।

(3) पोषण और खाद्य सुरक्षा –

मछलियाँ और समुद्री खाद्य पदार्थ उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन, विटामिन, और मिनरल्स का स्रोत हैं। ये खाद्य पदार्थ भारत की खाद्य सुरक्षा और पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने में मदद करते हैं।

(4) संसाधन प्रबंधन –

मत्स्य पालन पारंपरिक और आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर संसाधनों का कुशल प्रबंधन करता है। आंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा बनाए रखने के लिए नए प्रौद्योगिकी और विधियाँ अपनाई जाती हैं।

(5) विकासात्मक प्रभाव –

मत्स्य पालन की गतिविधियाँ ग्रामीण और तटीय क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देती हैं। इससे संबंधित अवसंरचनाओं का विकास, जैसे – बंदरगाह, प्रसंस्करण इकाइयाँ और विपणन चैनल, स्थानीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाते हैं।

इस प्रकार मत्स्य पालन भारतीय अर्थव्यवस्था को महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करता है और देश के सामाजिक और आर्थिक विकास में योगदान करता है।

मत्स्य पालन का महत्व (matsya palan ka mahatva) –

(1) मछलियों से कई प्रकार के तेल प्राप्त होते हैं, जिनका उपयोग चिकित्सा के क्षेत्र में दवाइयों के निर्माण में किया जाता है।

(2) कुछ बड़ी-बड़ी मछलियां चमड़ा प्राप्ति की स्त्रोत होती है इनका उपयोग विभिन्न उद्योग में किया जाता है

(3) मछली पालन एक ऐसा व्यवसाय है, जिसके लिए बहुत अधिक वित्त की आवश्यकता नहीं होती है। इस कारण यह व्यवसाय ऐसे लोगों को रोजगार उपलब्ध कराता है, जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होती है।

(4) भारत में आज मछली पालन व्यापक पैमाने पर किया जा रहा है। मछलियों का निर्यात विभिन्न देशों में किया जाता है जो विदेशी मुद्रा अर्जित करने का महत्वपूर्ण स्त्रोत बन गई है।

(5) भारत में ऐसे जल निकाय है,जो बेकार पड़े हैं, इनका उपयोग मछली उत्पादन में किया जा सकता है।

मत्स्य पालन की समस्याएं (matsya palan ki samasya) –

(1) देश में अपतटीय एवं समुद्री मत्स्य संसाधन के दोहन हेतु विशेष नौकाओं एवं तकनीकी का अभाव होना।

(2) गहरे समुद्री मत्स्यन हेतु अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है,क्योंकि यह मत्स्य क्षेत्र तटो से अधिक दूर है।

(3) पुंजी गहन संसाधनों की बाजार मांग का अनिश्चित होना!

(4) तटीय जल के संसाधनों का अति दोहन होने के कारण उसका रिक्तीकरण हुआ है।

(5) गहन समुद्री मत्स्य जहाजों का अपतटीय जल क्षेत्रों में अतिक्रमण।

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