महासागरीय जल का तापमान क्या है? इसको प्रभावित करने वाले कारक

महासागरीय जल का तापमान क्या हैं (mahasagariya jal ka taapman kya hai)-

महासागरीय जल का एक महत्वपूर्ण गुण उसमें पाया जाने वाला तापमान है! यह महासागरीय जल का एक महत्वपूर्ण भौतिक गुण है! मुख्यतः सागरीय जल के तापमान का सबसे महत्वपूर्ण स्त्रोत सूर्य है, परंतु सूर्य के अलावा अल्प मात्रा में सागर तल के नीचे पृथ्वी के आंतरिक भाग तथा जल की दबाव प्रक्रिया भी तापमान निर्धारण में भूमिका निभाती है! 

महासागरीय जल का तापमान सूर्यताप की मात्रा, ऊष्मा संतुलन, सागरीय जल का घनत्व, वाष्पीकरण एवं संघनन तथा स्थानिक मौसमी दशाओं के द्वारा भी निर्धारित होता है! समुद्र की सतह के तापमान पर अक्षांशीय स्थिति, प्रचलित पवनें, महासागरीय धाराएं, महासागरीय स्थल खंडों की स्थिति आदि घटकों का भी प्रभाव पड़ता है! 

सामान्यतः महासागरीय जल का औसत तापमान भूमध्य रेखा के आसपास लगभग 27°C होता है, जो यह विषुवत रेखा से ध्रुवों की ओर जाने पर क्रमिक रूप से घटता जाता है! यहां उल्लेखनीय है कि सर्वाधिक तापमान भू-मध्य रेखा पर होना चाहिए, परंतु ऐसा नहीं होता, इसका प्रमुख कारण यहां पर होने वाली सतत संवहनीय वर्षा है! इस कारण सर्वाधिक तापमान अयनवर्ती अक्षांश पर (कर्क रेखा एवं मकर रेखा के पास) पाया जाता है, क्योंकि यहां आकाश खुला रहता है तथा वर्षा कम होती है!  

महासागरीय जल के तापमान को प्रभावित करने वाले कारक (mahasagariya jal ke taapman ko prabhavit karne wale karak) –

धरातलीय तापमान के समान ही समुद्र जल का तापमान वनस्पति जगत एवं जीव जगत दोनों के लिए महत्वपूर्ण होता है! समुद्री जल का तापमान न केवल महासागर में रहने वाले जीवों तथा वनस्पतियों को प्रभावित करता है! अपितु तटवर्ती स्थलीय भागों की जलवायु को भी प्रभावित करता है! महासागरीय जल के तापमान को प्रभावित करने वाले कारक इस प्रकार हैं – 

(1) स्थलखंडो का वितरण – 

पृथ्वी पर उत्तरी गोलार्ध में स्थलखंड अधिक है, जबकि दक्षिणी गोलार्ध में स्थलखंड की कमी है! यही कारण है कि दक्षिण गोलार्ध के महासागरों की तुलना में उत्तरी गोलार्द्ध के महासागर गर्मियों में सबसे अधिक गर्म (15° से 30° उत्तर अक्षांशों के मध्य) एवं शीतकाल में महाद्वीपों से चलने वाली बर्फीली हवाओं के प्रभाव से विशेष रूप से ठंडे हो जाते हैं!

इसके विपरीत, यद्यपि अंटार्कटिक महाद्वीप बर्फ से ढका है, फिर भी दक्षिणी गोलार्ध के महासागरों का निरंतर विस्तार रहने से वहां का तापमान ग्रीष्म काल में उत्तरी गोलार्ध से कम गर्म एवं शीतकाल में सम या शीतल रहता है! अतः यहां मौसमवार सागरीय जल के तापमान में अंतर कम पाया जाता है! 

(2) प्रचलित पवनें –

पवनों का प्रभाव सागर तल पर स्पष्ट दिखाई देता है! पवनें न केवल वायुमंडल के ताप को शीतोष्ण वायुमंडलीय प्रदेशों की ओर प्रवाहित करती है अपितु जिस सागर तल से होकर बहती है, उसे भी उष्ण या शीतल बनाती है! पछुआ पवनें अयनवृतों का ताप शीतोष्ण सागर की ओर भी वितरित करती है! 

ऐसे प्रभाव से न केवल सागर तल ही प्रभावित होता है, बल्कि विक्षोभमंडल की संघनन की क्रिया में पछुआ हवाओं के प्रदेशों में (शीतोष्ण प्रदेश में) हिम वर्षा के स्थान पर जल वृष्टि का महत्व बढ़ जाता है! इससे भी सागर जल के तापमान ऊंचे बने रहते हैं! पवनों के प्रभाव से ही या सनातनी पवनों की दिशा के अनुसार ही गर्म या ठंडे जल की धाराएं दिशा-विशेष में बहती हुई महाद्वीपों के विशेष तट को प्रभावित करती है! 

(3) हिमशिलाओं का प्रभाव – 

अंटार्कटिक महाद्वीप एवं ग्रीनलैंड बर्फ से ढके प्रदेश है! यहां से हिमखंड सागर तल पर दूर तक बहते रहते हैं! ऐसे में हिम शैलों के प्रभाव से उनके आसपास के सागर जल का तापमान काफी नीचे गिर जाता है! न्यूफाउंडलैंड के निकट, हडसन की खाड़ी में, पूर्वी साइबेरियन के तटीय भागों एवं सुदूर दक्षिणी ध्रुवीय सागरों के बर्फीले तापमान का एक मुख्य कारण हिम खंडों के ध्रुवों से 50° से 60° अक्षांशों तक बहकर आना एवं वहाँ पिघलना रहा है! 

(4) समुद्री धाराएँ – 

विषुवत रेखीय एवं उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में निरंतर तापमान ऊॅंचा रहने से सागर काफी गहराई तक गर्म हो जाते हैं! इससे पानी हल्का एवं गर्म बनकर शीतोष्ण प्रदेशों की ओर प्रचलित स्थायी वायु की दिशा एवं फेरल के नियम के अनुसार पूर्व से पश्चिम की ओर बहता हुआ महाद्वीपीय तटों से टकराकर ठंडे जल की ओर बहने लगता है!

इसी के प्रभाव से उष्ण-शीतोष्ण प्रदेशों में महाद्वीपों के पूर्वी तट पर गर्म धाराएं बहती हैं! इन्हीं गर्म धाराओं का आगे चलकर प्रभावशाली पछुआ हवाओं के प्रभाव से यहां का उष्ण पानी पूर्वोत्तर दिशा की ओर बहता हुआ शीत-शीतोष्ण प्रदेशों में महाद्वीपों के पश्चिमी तट पर बहता हैं! 

उत्तरी गोलार्ध में स्थल खंड अधिक होने से वहाँ यह प्रभाव अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई देता है! ऐसे प्रभाव से ही पश्चिमी यूरोप, पूर्वी संयुक्त राज्य एवं चीन का पूर्वी तट व जापान कठोर शीतकाल में भी उष्ण बना रहता है! इसी भांति उत्तरी अमेरिका का अलास्का का तट तथा दक्षिणी गोलार्ध में दक्षिणी-पूर्वी ऑस्ट्रेलिया का तटीय भाग एवं उत्तरी न्युजीलैंड उष्ण धाराओं के प्रभाव से शीतकाल में उष्ण बने रहते हैं!  

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