कोहरा किसे कहते हैं (kohra kise kahate hain) –
संक्षेप में या सरल भाषा में धरातल पर बादल निर्माण की क्रिया को कोहरा (kohra) कह सकते हैं। धरातल के निकट नमीयुक्त वायु जब तेजी से ठण्डी होने लगती है तो कोहरा बनने लगता है। अद्घोष्ण व उष्ण-शीतोष्ण प्रदेशों में सर्दियों में एवं शीत-शीतोष्ण प्रदेशों में ठण्डे धरातल पर उष्ण व आर्द्र वायु के प्रवेश से वायु की नमी शीघ्र शीतल होने लगती है और कोहरा दिखाई देने लगता है।
कोहरे में वाष्प कण जल कण में बदलकर वायुमण्डल को धुंधला या अदृश्य-सा बना देते हैं। सर्दियों की रातों में पिछले प्रहर में जब आर्द्र पवनों के तापमान अधिक नीचे गिरते हैं तो कोहरा बनता है। यदि नमी अधिक होती हैं तो कोहरा घना भी हो सकता है।
सभी प्रकार के कोहरे में दृश्यता तेजी से घटती है। यदि 1-2 किलोमीटर तक का दृश्य दिखाई दे तो उसे छिछला कोहरा या कुहासा (Mist) एवं जब आधे से 1 किलोमीटर तक दिखाई दे तो उसे साधारण कोहरा एवं जब 250-300 मीटर तक (एक-डेढ़ फर्लांग) ही दिखाई दे तो उसे घना कोहरा कहते हैं। ऐसी दशा में वायु यातायात सम्भव नहीं है। इससे अधिक दृश्यता घटने में पर सड़क यातायात भी कठिन हो जाता है।
कोहरा के प्रकार (kohra ke prakar) –
निर्माण प्रक्रिया के आधार पर कोहरे के चार प्रकार होते हैं –
(i) विकिरण कोहरा (Radiation fog) –
जब भूमि से शीत लहरों का शिकी परिव उत्तर है तो अत्यधिक ठण्डी भूमि के कारण आई वायु की पतली परत संघनन द्वारा के समी जाती है। सूर्यताप द्वारा ऊष्मा प्राप्त करने के बाद जब पृथ्वी विकिरण द्वारा है तो धरातलीय वायुमण्डल की वायु में संघनन होने लगता है जिससे कोहरा के कारण इसकी उत्पत्ति होती है अतः इसे विकिरण कोहरा कहा जाता है। इसमें कोहरे की मोटाई 15 से 50 मीटर तक ही होती है।
(ii) सम्पर्कय या अभिवाहनिक कोहरा (Advection fog) –
भवान उत्पत्ति धरातल पर एक स्थान से दूसरे स्थान पर वायु की धाराओं के ठण्डी होने जब आर्द्र एवं अपेक्षतया उष्ण वायु राशि समुद्र से भूमि की ओर बहती है तो शीतोष्ण प्रदेशों में रात्रि को मन्द मन्द हवा के कारण तापमान तेजी से भूमि की में आने से गिरने लगते हैं, इससे सघन एवं अधिक ऊंचाई वाला कोहरा उत्पन्न क्षेत्र भी अधिक विस्तृत होता है।
(iii) वाताग्री या सीमाग्री कोहरा (Fog or Frontal Zones) –
वाताव का अर्थ वायु का अगला भाग होता है। ठण्डी व शुष्क एवं गर्म व आर्द्र वायु राशि के गुण-धर्म अलग-अलग होते हैं। ठण्डी हवा भारी एवं भूमि के साथ बहती हैं। गर्म हवा हल्की होती है। अत: जब कभी गर्म हवा ठण्डी हवा की ओर बढ़ती है तो वह तेजी से ऊपर उठ जाती है जिससे ठण्डी व गर्म हवा के मिलने के स्थल पर वाताग्र (Fronts) बनते हैं। ऐसे भागों में भूमि पर कोहरे की दशा तथा कुछ ऊंचाई पर मेघ दिखाई देने लगते हैं। अतः इस प्रकार का कोहरा वाताग्री कोहरा कहलाता है।
(iv) पहाड़ी कोहरा (Mountain Fog) –
जब गर्म व आर्द्र हवाएँ मार्ग में पड़ने वाले पहा की ओर ऊपर उठती हैं तो ऊपरी ढलानों की शीतल वायु के सम्पर्क में आने से वहाँ शीघ्र संव होने से कोहरा छा जाता है। इससे पहाड़ी ढालों पर पाला नहीं गिरता। पहाड़ी ढालों पर उत होने के कारण इसे पहाड़ी कोहरा कहते हैं।
कोहरे के विकास के लिए अनुकूल दशाएँ (kohre ke vikas ke liye anukul dashaye) –
कोहरे के विकास में निम्नलिखित दशाएँ अपेक्षित है –
(i) शीत ऋतु की लम्बी व शान्त रातें।
(ii) वायु में ऊँची आर्द्रता या अधिक नमी ।
(iii) रात्रि में स्वच्छ आकाश एवं अधिक भौमिक विकिरण। (iv) पिछली रात में भूमि से शीत लहरों के विकिरण से ताप विलोमता की दशा का विकास।
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