भारतीय राजनीतिक चिंतन में बुद्धवादी परंपरा का महत्व बताइए

भारतीय राजनीतिक चिंतन में बुद्धवादी परंपरा का महत्व (bhartiya rajnitik chintan me buddhavaadee parampara ka mahatva) –

भारतीय राजनीतिक चिंतन के बुद्धवादी परंपरा का उल्लेख पाली ग्रंथो- दिर्घनिकाय व अंगुत्तरनिकाय में मिलते हैं। तत्कालीन चिन्तन में बुद्धवादी परंपर में प्रथम बार स्पष्ट रूप से मानवीय गरिमा और सबकी सम्पूर्ण समानता में दृढ़ विश्वास प्रकट किया और ब्राह्मण विशेषाधिकार को चुनौती दी। 

प्राचीन समय में प्रचलित राज्य की उत्पत्ति के दैवीय सिद्धांत के विपरीत प्रथम बार बौद्ध ग्रन्थों में ही राज्य को व्यक्तियों द्वारा निर्मित बताया है। बुद्धवादी परंपरा के अनुसार सृष्टि के आरम्भ में खुशहाल अवस्था के बाद पाप बढ़ा। लोगों के पास सम्पत्ति आयी इससे अव्यवस्था फैल गयी। लोगों ने एक सामर्थ्यवान व्यक्ति से समझौता किया, जो कर के बदले में लोगों की सम्पत्ति, जीवन आदि की सुरक्षा का वचन देता था। 

उस व्यक्ति को राजन कहा गया। बौद्ध ग्रंथों में राजपद वंश परम्परा की अपेक्षा योग्यता पर ज्यादा बल दिया जाता था। बौद्ध संघों में जनतंत्रात्मक व्यवस्था थी। बौद्ध ग्रंथों में गणतन्त्रों की सूची मिलती है। प्राचीन समय में गणतन्त्रों के अनेक रूपों का वर्णन बौद्ध ग्रन्थों में मिलता है।

बौद्ध साहित्यों में सम्प्रभुत्ता का स्वरुप सीमित था। जनता को अत्याचारी राजा के विरुद्ध विरोध का अधिकार था। राजा को दस कर्तव्यों से बांधा गया था। शासन व्यवस्था का स्वरूप कल्याणकारी था। कृषि सुधार, उद्यम विस्तार, सिंचाई व्यवस्था, कुओं की व्यवस्था आदि प्रशासन के मुख्य कर्तव्य थे। बौद्ध साहित्यों में नागरिकों के अधिकारों का वर्णन मिलता है तथा साथ ही नागरिकों पर कानून का पालन, करुणा, देशभक्ति और अनुशासन के कर्तव्यों का पालन अनिवार्य था।

बौद्ध साहित्यों में ‘धम्म’ को राज्य का संविधान माना गया है, जिसका पालन राजा तथा प्रजा दोनों को करना पड़ता है।

बौद्ध ग्रंथों में राजा का मुख्य कर्तव्य गेह विजय (युद्ध) नहीं था, बल्कि धम्म विजय था। बौद्ध ग्रन्थों में पड़ोसी राष्ट्रों के साथ सम्बन्धों के विषय पर शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व पर बल दिया गया है तथा पंचशील के मार्गदर्शक सिद्धांत का वर्णन किया गया है।

बौद्ध परम्पराओं ने भारतीय समाज व राजनीति पर गहरा प्रभाव डाला है, जिसमें मुख्यतया वर्णव्यवस्था विरोध, समानता, करूणा, पंचशील सिद्धांत, लोकतान्त्रिक व्यवस्था, अहिंसा व शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व का सिद्धांत प्रमुख है।

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