वायुमंडलीय दाब किसे कहते हैं? इसको प्रभावित करने वाले कारक, उदाहरण

वायुमंडलीय दाब किसे कहते हैं (atmospheric pressure in hindi) –

हमारी पृथ्वी को चारों ओर से वायुमंडल घेरे हुए हैं! वायुमंडल के इस अथाह सागर में हम उसी प्रकार रहते हैं, जैसे, समुद्र की तली में मछलियां! अन्य तत्वों की भांति वायु में भी भार होता है, वायु अपने भार के कारण पृथ्वी के धरातल पर दबाव डालती है! वायुमंडलीय दाब का अर्थ हैं – किसी दिए गए स्थान और समय पर वहां की वायु के स्तंभ का भार! 

वायुमंडलीय दाब को बैरोमीटर द्वारा मापा जाता है! वायुदाब मापने की इकाई मिलीबार है! जब कभी बैरोमीटर में उतार-चढ़ाव होता है, तो इससे मौसम संबंधी जानकारी प्राप्त होती है, जैसे – बैरोमीटर के पठन में तेजी से गिरावट तूफानी मौसम का संकेत देती है! बैरोमीटर का पठन का पहले गिरना और फिर धीरे-धीरे बढ़ना वर्षा की स्थिति को इंगित करता है! इसके अतिरिक्त बैरोमीटर के पठन लगातार बढ़ना प्रतिचक्रवाती और साफ मौसम का संकेत देता है!

हम सदैव ही 112 किग्रा. का भार अपने ऊपर लादे फिरते हैं किंतु फिर भी वायु का कोई दाब महसूस नहीं होता क्योंकि हमारे चारों ओर से वायु का दबाव समान रूप से पड़ता है! वायु के दबाव को बैरोमीटर की सहायता से मापा जाता है! इसे मापने के लिए मिली बार इकाई का प्रयोग किया जाता है! मिलीबार 1 वर्ग सेमी धरातल पर 1 ग्राम भार के बल के बराबर होता है! 

वायुमंडलीय दाब के उदाहरण –

वायुमंडलीय दाब के उदाहरण इस प्रकार हैं –

(1) उच्च दबाव प्रणाली –

जब वायुमंडलीय दाब उच्च होता है, तो इसे उच्च दबाव प्रणाली कहा जाता है। इस स्थिति में, हवा नीचे की ओर दबाव डालती है और मौसम आमतौर पर शुष्क और स्पष्ट होता है। 

उदाहरण – अधिकांश भूमध्यरेखीय क्षेत्रों में उच्च दबाव प्रणाली देखने को मिलती है।

(2) निम्न दबाव प्रणाली –

जब वायुमंडलीय दाब निम्न होता है, तो इसे निम्न दबाव प्रणाली कहते हैं। इस स्थिति में, हवा ऊपर की ओर उठती है और इसे बादलों और वर्षा के साथ जोड़ा जा सकता है। 

उदाहरण – चक्रवात और तूफान निम्न दबाव क्षेत्रों में विकसित होते हैं।

(3) हवा का प्रवाह –

वायुमंडलीय दाब में अंतर हवाओं का निर्माण करता है। 

उदाहरण – समुद्र और तट पर दिन और रात के समय के बीच तापमान में अंतर के कारण होने वाली हवाएँ वायुमंडलीय दाब में अंतर से प्रभावित होती हैं।

(4) मौसम की भविष्यवाणी करने में- 

मौसम पूर्वानुमान में वायुमंडलीय दाब के पैटर्न का विश्लेषण किया जाता है। मौसम विशेषज्ञ यह पता लगाते हैं कि उच्च और निम्न दबाव क्षेत्रों का स्थान और गति मौसम की भविष्यवाणी के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।

(5) विमानन की ऊँचाई –

विमानों के उड़ान भरने के दौरान वायुमंडलीय दाब को ध्यान में रखा जाता है, क्योंकि दाब ऊँचाई के साथ घटता है। पायलट विमान के कॉकपिट में दबावमापी उपकरणों का उपयोग करते हैं ताकि वे सही ऊँचाई पर उड़ान भर सकें।

वायुमंडलीय दाब को प्रभावित करने वाले कारक (vayumandaliye dab ko prabhavit karne wale karak) –

(1) तापमान –

तापमान एवं वायुदाब में विशेष निकट का संबंध है क्योंकि जब तापमान उच्च रहते हैं तो वायुदाब घटने लगता है और जब तापमान नीचे रहते हैं तो वायुदाब बढ़ने लगता है! अत: दोनों के मध्य में विपरीत संबंध पाया जाता है! जहाँ वायू गर्म होकर हल्की होने लगती है, वही वायुदाब घटता जाता है! इस कारण जब भी तापमापी में तापमान बढ़ते चले जाते हैं, वायुदाबमापी में उसी के अनुसार वायुदाब या पारा घटता या नीचे चला जाता है! अर्थात तापमान अधिक होने पर वायुदाब कम और तापमान कम होने पर वायुदाब अधिक होता है! 

(2) आर्द्रता – 

वायुदाब को प्रभावित करने में आर्द्रता या नमी का भी महत्वपूर्ण योगदान है! जब भी वायु में नमी होती है, वायु भारी होती है, जबकि शुष्क वायु में इससे कुछ अधिक भार होता है! नमीयुक्त वायु काफी ऊंचाई तक पाई जाती है! अधिक ऊंचाई (3 से 4 किमी.) तक पहुंचकर वायु संघनन की क्रिया से वृष्टि करती है! 

कई बार पर्वतों के कारण नम मानसूनी पवनों को भी काफी ऊंचाई तक ऊपर उठना पड़ता है! इसी प्रकार पछुआ पवनें भी शीत वाताग्र या ठंडी हवाओं के प्रभाव से सीमांत या वाताग्र के सारे ऊपर उठकर वर्षा कर देती है! आर्द्रता वायु को हल्का करने से वायुदाब घटाने में भी महत्वपूर्ण योगदान देती रहीं है! अत: वायुदाब का घटना-बढ़ना संघनन की क्रिया एवं वर्षा, सभी आर्द्रता से प्रभावित होते हैं! 

(3) पृथ्वी की दैनिक गति – 

पृथ्वी की दैनिक गति वायुमंडलीय दाब को अत्यधिक प्रभावित करती है! भ्रमण करती हुई पृथ्वी का यह नियम है कि धरातल पर दाब का अनुपात लगभग संतुलित रहे! घूमती हुई पृथ्वी में प्रत्येक वस्तु को अपनी ओर आकर्षित करने की शक्ति बढ़ जाती है! अतः यह समस्त वस्तुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है! 

उदाहरण के लिए, भूमध्य रेखा पर अधिक गर्म हवाएँ ऊपर उठकर और ठंडी होकर 30° से 35° अक्षांश पर ही उतर आती है! उसके बाद धीरे-धीरे पुनः भूमध्य रेखा पर आ जाती है! इस प्रकार इन मध्यवर्ती अक्षांश पर वायुमंडलीय दाब अत्यधिक बढ़ जाता है एवं यहाँ पवनें शांत रहती है! यही कारण है कि पुराने समय में नाविकों की नावें अज्ञानता में यहां डूब जाती थी! इन्हें ‘घोड़ों के अक्षांश’ भी कहते हैं!  

(4) वायुदाब का दैनिक परिवर्तन – 

दैनिक परिवर्तन का अर्थ है कि दिन और रात के समय वायुमंडलीय दाब में क्या परिवर्तन होते रहते हैं! बैरोमीटर में ये परिवर्तन स्थिति तथा दिशा के अनुसार अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग पाए जाते हैं! 

दोपहर के समय भीतरी स्थल भागों पर बैरोमीटर में दाब की जो स्थिति होती है, वह सागर तट के भागों से भिन्न होती है तथा रात के समय सागर तट पर बैरोमीटर में पारे का कम उतार-चढ़ाव पाया जाता है! इस तरह बैरोमीटर में पारे का अत्यधिक उतार-चढ़ाव भूमध्य रेखीय प्रदेशों के निकट ही अधिक पाया जाता है! 60° उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों से ध्रुवों के मध्य वायुदाब का दैनिक परिवर्तन तेजी से घटकर नहीं के बराबर हो जाता है! 

(5) ऊॅंचाई – 

वायुदाब का ऊंचाई से भी निकट का संबंध है! ज्यों ज्यों ऊंचाई बढ़ती जाती है, वायुदाब गिरता या घटता जाता है! यही कारण है कि समुद्र तल पर वायुदाब सबसे अधिक रहता है! प्रारंभ से ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ वायुदाब धीमी गति से गिरता है! अधिक ऊंचाई पर वायुदाब विशेष तेजी से गिरता है! सामान्यतः प्रथम 5.5 किमी. की ऊंचाई पर कुल वायु का आधा भार हमारे नीचे होता है! 

इसी कारण अधिक ऊंचाई पर वायुदाब अधिक विरल या हल्की होती जाती है! अतः समुद्र तल पर जहाँ वायुदाब 1013.25 मिलीबार रहता है, वहीं 300 मीटर की ऊंचाई पर 976.5 एवं 600 मीटर की ऊंचाई पर गिरकर 506 मिलीबार रह जाता है! इस ऊंचाई पर एवं उसके पश्चात ऑक्सीजन में एकदम कमी आने लगती है, इस कारण अधिक ऊंचाई पर सांस लेने में कठिनाई होती है मानव जीवन खतरे में पड़ जाता है! 

वायुमंडलीय दाब के कार्य –

वायुमंडलीय दाब (एटमॉस्फेरिक प्रेशर) के कई प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं –

(1) वातावरण की स्थिरता –

वायुमंडलीय दाब हवा की परतों को स्थिर रखने में मदद करता है, जिससे मौसम और जलवायु की स्थिति बनाए रखी जाती है।

(2) जलवायु और मौसम –

वायुमंडलीय दाब की विभिन्न अवस्थाएँ (जैसे उच्च दाब और निम्न दाब) मौसम के परिवर्तन और जलवायु की विशेषताएँ निर्धारित करती हैं, जैसे हवाएँ, बारिश, और तापमान।

(3) सांस लेने की प्रक्रिया –

वायुमंडलीय दाब शरीर में ऑक्सीजन के प्रवाह को प्रभावित करता है, जिससे सांस लेना संभव होता है।

(4) जल के जीवन चक्र में योगदान –

वायुमंडलीय दाब जलवाष्प के संघनन और बाद में वर्षा के रूप में जल के जीवन चक्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

(5) विमानन और परिवहन –

वायुमंडलीय दाब विमानन की उड़ान और अन्य परिवहन प्रणालियों की कार्यक्षमता को प्रभावित करता है, क्योंकि हवा का दाब ऊंचाई के साथ बदलता है।

इन कार्यों के माध्यम से वायुमंडलीय दाब पृथ्वी पर जीवन की सहजता और स्थिरता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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