अपशिष्ट प्रबंधन क्या है (waste management in hindi) –
अपशिष्ट प्रबंधन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें उत्पन्न होने वाले विभिन्न अपशिष्ट पदार्थों का निपटान किया जाता है, ताकि मानव के स्वास्थ्य तथा पर्यावरण पर इसका नकारात्मक प्रभाव न पड़े! मानवीय गतिविधियां कई प्रकार के अपशिष्ट उत्पन्न करती है, जो पर्यावरणीय रूप से हानिकारक हो सकता है! इन अपशिष्टों में ठोस, गैस, या रेडियोधर्मी अपशिष्ट हो सकते हैं!
अपशिष्ट उन पदार्थों को कहते हैं, जो उपयोग के बाद निरर्थक एवं बेकार हो जाते हैं, जैसे – समाचार पत्र, डिब्बे, पॉलिथीन, राख, आवासीय कचरा, आदि! इन अपशिष्ट पदार्थों की समुचित डंपिंग एवं निपटान की आवश्यकता होती है! भारतीय शहरों एवं कस्बों में कचरा पर्यावरण प्रदूषण का प्रमुख स्रोत पदार्थों की मात्रा में वृद्धि के चलते उनकी समस्या आती है, बल्कि अत्यंत विकसित या विकासशील देशों के लिए भी बन गई है!
अपशिष्ट प्रबंधन की आवश्यकता (apshisht prabandhan ki avashyakta) –
अपशिष्ट प्रबंधन का मुख्य उद्देश्य मानव स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण पर कचरे के प्रतिकूल प्रभावों को कम करना है। हमारा पर्यावरण अपशिष्टों के कारण खराब हो रहा है! हमारी पृथ्वी को हमारे द्वारा उत्पन्न होने वाले कचरे की विशाल मात्रा और इसके हानिकारक प्रभावों को बनाए रखने में असमर्थ होने में बहुत कम लगने वाला है! ऐसी स्थिति में, अपशिष्ट प्रबंधन के महत्व पर पर्याप्त ध्यान दिया जाना आवश्यक हो गया है। दुनियाभर के देश अंततः अपने कचरे को ठीक से नहीं संभालने के खतरों के प्रति जागरूक हो रहे हैं।
अपशिष्ट प्रबंधन की विधियां (apshisht prabandhan ki vidhiyan) –
(1) भूमि में संग्रह –
यह प्रक्रिया अधिकांश देशों में अपनाई जाती है, जिसमें अपशिष्ट पदार्थों को जमीन के अंदर दफना दिया जाता है! अपशिष्ट पदार्थों के संग्रह हेतु अक्सर गैर उपयोगी खाने, खनन रिक्तियाँ या बड़े-बड़े गड्ढों का प्रयोग किया जाता है! यद्यपि यह अपशिष्ट निपटान का बहुत ही आसान एवं अपेक्षाकृत कम खर्चीला तरीका है, परंतु गलत तरीके से किया गया अपशिष्ट संग्रहण पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डालता है!
कभी-कभी यह कचरा हवा में उड़कर कीडों को आकर्षित करता हैं, तो कभी-कभी आसपास के क्षेत्र को दूषित कर देता है! वर्तमान में कई अपशिष्ट के ढेरों से प्लास्टिक या अन्य प्रयोग में आने वाली सामग्रियों का पृथक्करण कर लिया जाता है तो कहीं इनके ऊपर कुछ गैस आधारित प्रणाली संयत्र स्थापित किए गए हैं! कभी-कभी इन को जलाकर विद्युत उत्पन्न भी किया जाता है!
(2) भस्मीकरण –
भस्मीकरण अपशिष्ट पदार्थों को निपटान की एक ऐसी विधि है, जिसमें अपशिष्ट पदार्थों का दहन शामिल है! भस्मीकरण में पदार्थ को अधिक ताप देकर गैस, भाप और राख में परिवर्तित किया जाता है!
व्यक्तियों द्वारा या उद्योगों द्वारा इसका प्रयोग तरल, ठोस एवं गैसीय अपशिष्ट निपटान के लिए किया जाता है, परंतु जैविक चिकित्सा अपशिष्ट निपटान हेतु जब इसका प्रयोग किया जाता है तो कई प्रकार की हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है! हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होने के कारण यह प्रक्रिया विवादित बनी हुई है!
(3) पुनर्चक्रण –
अपशिष्ट पदार्थों को अन्य संसाधनों या उससे किसी भी मूल्य की वस्तु को उत्पन्न करना पुनर्चक्रण कहलाता है! इसे अपशिष्ट पदार्थ का पुनर्नवीनीकरण भी कहा जाता है! सर्वप्रथम पुनर्चक्रण हेतु अपशिष्ट पदार्थों का संग्रह वाहनों के माध्यम से किया जाता है! तत्पश्चात इसमें से विभिन्न आवश्यक सामग्रियों को अलग-अलग किया जाता है!
अपशिष्ट प्रबंधन पदानुक्रम (waste management hierarchy in hindi) –

अपशिष्ट पदार्थों का प्रबंधन (apshisht padarth ka prabandhan) –
अपशिष्ट पदार्थों के प्रबंधन के अंतर्गत अपशिष्ट हो तथा कचरो का संग्रह समुचित डंपिंग स्थलों पर उनकी भली-भांति निपटान एवं उनके दहन को सम्मिलित किया जाता हैं! अपशिष्ट के प्रबंधन में उनको समुचित रूप से इकट्ठा करना प्रथम ठोस कदम है!
भारतीय नगरों के नगरपालिकाओं के कचरों के ढेरों को को घुमंतू मवेशी, सूअर, चूहा, कबाड़ इकट्ठा करने वाले लोग भी बिखेरते रहते हैं, जिस कारण कचरा दूर तक फैल जाता है! नगरपालिका के कर्मचारी इन अपशिष्ट को डम्प कर देते हैं! गौरतलब है कि भारतीयों नगरों में अपशिष्ट को इकटठा करने तथा कचरो के बड़े-बड़े ढेरों को हटाने का कार्य शायद ही पहले नियमित रूप से किया जाता था!
अपशिष्ट प्रबंधन का अगला महत्वपूर्ण कदम उनका समुचित निस्तारण करना है! इसके लिए आधुनिक वैज्ञानिक तरीकों को अमल में लाना चाहिए! कचरा के निपटान की प्रक्रिया के अंतर्गत निम्न को सम्मिलित किया जाता है!
(1) अपशिष्ट पदार्थों की विधिवत छटाई और उनका समुचित वर्गीकरण!
(2) अज्वनशील या न जलने योग्य अपशिष्टों को समुचित डंपिंग स्थलों में डंपर करना!
(3) ज्वलनशील अपशिष्ट का दहन!
अपशिष्ट प्रबंधन की अवधारणा (apshisht prabandhan ka prabandhan) –
अपशिष्ट प्रबंधन के अनेक अवधारणा है, जो इनके उपयोग के हिसाब से शहर और क्षेत्रों में अलग-अलग होती है! कुछ सर्वाधिक सामान्य परंतु व्यापक रूप से प्रयोग की जाने वाली अवधारणाएं इस प्रकार है-
(1) अपशिष्ट पदानुक्रम आरेख –
अपशिष्ट पदार्थ क्रम से संदर्भित हैं ‘3R’ अर्थात लघु (Reduce) पुनः प्रयोग (Reuse) और पुनर्चक्रण (Recycle)! लघु के अंतर्गत अपशिष्ट पदार्थों को कम तथा उनकी वांछनीयता के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है! पुनः प्रयोग में अपशिष्टों में से ऐसी वस्तुओं को पृथक कर लिया जाता है, जिनका दोबारा उपयोग संभव हो!
(2) विस्तारित निर्माता जिम्मेदारी –
विस्तारित निर्माता जिम्मेदारी एक ऐसी नीति है, जो उत्पाद के जीवनचक्र से संबंधित खर्चा को उत्पाद की बिक्री मूल्य में एकीकृत करने के लिए रखी गई है! विस्तारित निर्माता जिम्मेदारी का उद्देश्य बाजार में पेश किए गए उत्पादों के पूरे जीवनचक्र और डिब्बाबंदी पर जवाबदेही लागू करना है!
(3) प्रदूषण करने वाला भुगतान करेगा सिद्वांत –
प्रदूषण करने वाला भुगतान करेगा सिद्धांत एक ऐसा सिद्वांत हैं, जिसके अंतर्गत प्रदूषण करने वाला वातावरण पर कुप्रभाव के अनुसार भुगतान करता है! अपशिष्ट प्रबंधन के संदर्भ में इसकी संपत्ति आमतौर पर अपशिष्टजनक की आवश्यकता की ओर है, जो उचित अपशिष्ट निपटान का भुगतान करें!
अपशिष्ट प्रबंधन का महत्व (apshisht prabandhan ka mahatva) –
औद्योगिकरण, शहरीकरण और आर्थिक विकास के परिणामस्वरूप शहरी कूड़े-कचरे की मात्रा बहुत बढ़ गई है! बहुत तेजी से बढ़ती जनसंख्या और लोगों के जीवन स्तर में सुधार से यह समस्या और भी जटिल हो गई है! ऐसे में कुशल अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली का मुख्य उद्देश्य कूड़े-करकट से उपयोगी पदार्थों को निकालना और बचे हुए अपशिष्ट से प्रसंस्करण केन्द्र में बिजली का उत्पादन करना है!
साथ ही लैंडफिल में डाले जाने वाले कूड़े की मात्रा को कम से कम करना है क्योंकि तेजी से सिमट रहे भूमि संसाधन पर इसका बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इतना ही नहीं! इस तरह से फेंका गया कूड़ा-कचरा, वायु, मृदा और जल प्रदूषण का खतरा पैदा कर सकता है! इसलिए अपशिष्ट प्रबंधन का महत्व बहुत बढ़ गया है
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