वायुमंडल के गर्म एवं ठंडे होने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए

वायुमंडल के गर्म एवं ठंडे होने की प्रक्रिया  (vayumandal ki garm evam thande hone ki prakriya) – 

कोई भी वस्तु, पदार्थ एवं स्थान निम्न दो विधियों से ताप को प्राप्त करता है! प्रत्यक्ष विधि एवं परोक्ष विधि! पृथ्वी का वायुमंडल भी इन दोनों विधियों से उष्मा या सूर्यातप प्राप्त करता है, किंतु वायुमंडल समस्त सूर्याताप का केवल 14% भाग ही प्रत्यक्ष रुप से अवशोषित करता है जो कि अत्यल्प है!

वास्तव में वायुमंडल परोक्ष विधि से अपना अधिकांश सूर्याताप प्राप्त करता है! सूर्य की किरणें पहले पृथ्वी तल को गर्म करती है! इस गर्म पृथ्वी तल के संपर्क में वायु परतें आती हैं और तल से ऊपर की ओर वे क्रमशः गर्म होती है! 

ऊष्मा की प्राप्ति निम्नलिखित तीन प्रक्रिया द्वारा होती है –

(1) विकिरण (Radiation) – 

किसी पदार्थ द्वारा अपनी उष्मा आपको लघु या दीर्घ ऊर्जा तरंगों द्वारा उत्सर्जन की क्रिया को विकिरण कहते हैं! सूर्य अपनी उष्मा का उत्सर्जन लघु तरंगों के द्वारा करता है! इसे सौर्यिक विकिरण कहते हैं! पृथ्वी अपनी ऊष्मा का उत्सर्जन दीर्घ तरंगों के रूप में करती है जिसे भौमिक या पार्थिव विकिरण कहते हैं! पार्थिव विकिरण द्वारा वायुमंडल की निचली परत ही गर्म होती है तथा अधिक ऊंचे भाग बहुत कम और दीर्घावधि में गर्म हो पाते हैं!   

(2) संचालन (Conduction) – 

आण्विक सक्रियता द्वारा पदार्थ के माध्यम से उष्मा के संचार को संचालन कहते हैं! विभिन्न तापक्रम के दो पदार्थों को आपस में मिलाकर रख देने पर गर्म पदार्थ से शीतल पदार्थ की ओर उष्मा का संचार उस समय तक होता रहेगा जब तक कि दोनों पदार्थों का तापक्रम समान न हो जाये!

पृथ्वी का धरातल दिन में वायु की अपेक्षा अधिक ताप ग्रहण करता है! इसे गर्म धरातल के संपर्क में आने वाली वायु गर्म होकर ऊपर उठ जाती है और वायुमंडल की परतों में ताप का संचार करती है! वायुमंडल के ऊपरी परतें धीरे-धीरे गर्म होती रहती हैं!   

(3) संवहन (Convention) – 

किसी पदार्थ में एक भाग से दूसरे भाग की ओर उस पदार्थ के तत्वों के साथ ऊष्मा के संचार को संवहन कहते हैं! संवाहनिक संचरण केवल तरल तथा गैसीय पदार्थों में ही संभव है, क्योंकि इनमें अणुओं के बीच का संबंध में अत्याधिक क्षीण होता है! 

वायुमंडल गैसों का भंडार है! अतः इसमें भी संवाहनिक संचरण उत्पन्न होता है! विकिरण एवं संचालन द्वारा वायु गर्म होकर फैलती है! परिणामस्वरूप इसके आयतन में वृद्धि होती है और घनत्व कम हो जाता है, इससे हल्की वायु पर उठती है! यह ऊपर उठती वायुराशि ऊपरी पहुँची वायुराशियों को चलकर पार करती हुई अधिक ऊपर ठंडे क्षेत्रों में पहुंच जाती है! 

शीतल क्षेत्र होने के कारण ऊपर पहुंची वायुराशि का भी शीतल होना प्रारंभ हो जाता है और उसका घनत्व बढ़ने लगता है! अतः ये वायुराशि नीचे उतरने लगती है! उधर गर्म वायु राशि के ऊपर उठ जाने से वहां रिक्ता आ जाती है! इसकी पूर्ति के लिए शीतल वायु धरातल के निकट क्षैतिज दिशा में बहती हुई वहां पहुंच जाती है! गर्म क्षेत्र में पहुंचकर यह वायु भी गर्म होकर ऊपर उठती है! इस प्रकार ऊर्ध्वाधर और क्षितिज पवनों का चक्र बन जाता है! इस चक्र को ही संवाहनिक धारा कहते हैं!   

(5) अभिवहन (Advection) – 

तापमान तथा उष्मा का क्षैतिज रूप में स्थानांतरण अभिवहन कहलाता हैं! क्षैतिजाकार गतिमान वायु किसी भी स्थान पर पहुँच कर वहाँ के तापमान को प्रभावित करतीं हैं! गर्म हवाएँ तापमान को बढ़ा देती है और शीतल हवाएं तापमान को कम कर देती हैं वायुमंडल के इस प्रकार गर्म अथवा ठंडे होने की प्रक्रिया को अभिवहन कहते हैं! 

(5) दबाव (Pressure) – 

शीतल एवं सघन होती हुई पवने नीचे उतरती हैं जिससे वायु की निचली परतो पर दबाव पड़ता है, जिससे उनमें कुछ तापमान बढ़ जाता है! 

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