ज्वार भाटा किसे कहते हैं? ज्वार भाटा की उत्पत्ति, प्रकार और लाभ

ज्वार भाटा किसे कहते हैं (jwar bhata kise kahate hain) –

चंद्रमा एवं सूर्य के आकर्षण शक्तियों के कारण सागरीय जल के ऊपर उठने तथा नीचे गिरने को ज्वार भाटा (jwar bhata) कहते हैं! सागरीय जल के ऊपर उठकर आगे बढ़ने को ज्वार (Tides) तथा सागरीय जल के नीचे गिर कर पीछे लौटने (सागर की ओर) को भाटा (Ebb) कहते हैं! 

महासागर और समुद्र में ज्वार भाटा के लिए मुख्यतः तीन उत्तरदायी कारक है –

(1) सूर्य का गुरुत्वीय बल,

(2) चंद्रमा का गुरुत्व बल एवं

(3) पृथ्वी का अपकेंद्रीय बल!

चंद्रमा का ज्वार उत्पादक बल सूर्य के अपेक्षा  दोगुना होता है क्योंकि वह सूर्य की तुलना में पृथ्वी के अधिक निकट है! 

ज्वार प्रतिदिन दो बार आते हैं – एक बार चंद्रमा के आकर्षण से और दूसरी बार पृथ्वी के अपकेंद्रीय बल के कारण! सामान्यतः ज्वार प्रतिदिन दो बार आता है! परंतु इंग्लैंड के दक्षिणी तट पर स्थित साउथेम्प्टन में ज्वार प्रतिदिन चार बार आते हैं यहां दो बार ज्वार इंग्लिश चैनल से होकर और दो बार उत्तरीय सागर से होकर विभिन्न अंतराल पर पहुंचते हैं! 

ज्वार भाटा के प्रकार (jwar bhata ke prakar) –

ज्वार मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं –

(1) उच्च ज्वार  (2) निम्न ज्वार! 

(1) उच्च ज्वार (Spring Tide in hindi) – 

सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी तीनों एक ही सीध में होते हैं तो सूर्य और चंद्रमा की आकर्षण शक्तियां सम्मिलित रूप से पृथ्वी को प्रभावित करती हैं जिससे अत्याधिक ऊंचे ज्वार उत्पन्न होते हैं! इन्हें उच्च या दीर्घ ज्वार कहते हैं! 

(2) निम्न ज्वार (Neap Tide in hindi) –

जब सूर्य और चंद्रमा पृथ्वी के केंद्र पर समकोण बनाते हैं तो सूर्य और चंद्रमा की आकर्षण शक्तियां एक दूसरे को निष्क्रिय करने के प्रयास में अपेक्षाकृत क्षीण हो जाती है जिससे पृथ्वी पर उनके बल का प्रभाव कम हो जाता है और कम ऊंचाई वाले ज्वार उत्पन्न होते हैं! जिन्हें न्यून ज्वार अथवा लघु ज्वार करते हैं 

(3) दैनिक ज्वार (dainik jwar) –

जिस स्थान पर दिन में केवल एक बार ज्वार-भाटा आता है, तो उसे दैनिक ज्वार-भाटा कहते हैं! दैनिक ज्वार 24 घंटे 52 मिनट के बाद आते हैं. फिलीपाइन द्वीप और समूह मैक्सिको की खाड़ी में दैनिक ज्वार के उदाहरण हैं! 

(4) अर्द्ध दैनिक ज्वार (Semi diurnal tides) – 

किसी एक स्थान पर दो बार आने वाले ज्वार को अर्द्ध दैनिक ज्वार कहा जाता है! यह 12 घंटे 26 मिनट बाद आता है! अर्द्ध दैनिक ज्वार भाटा में की ऊंचाइयों तथा निचाइयाॅं क्रमशः बराबर रहती है! यह ज्वार भाटा अटलांटिक महासागर में प्रमुख रूप से आते हैं! 

(5) भूमि उच्च तथा भूमि निम्न ज्वार (Apogean and perigean tides) –

चंद्रमा पृथ्वी के चतुर्दिक अंडाकार परिभ्रमण पथ पर चक्कर लगाता है! अत: वह किसी समय पृथ्वी के निकट अथवा किसी समय पृथ्वी से दूर होता है! चंद्रमा की पृथ्वी से निकटतम दूरी की स्थिति को उपभू अथवा निम्न तथा अधिकतम दूरी की स्थिति को अपभू अथवा उच्च कहते हैं! 

चंद्रमा के समीप होने पर ज्वार की ऊंचाई अधिक किंतु उसके दूर होने पर कम हो जाती है! चंद्रमा की समीपीय स्थिति में आने वाले ज्वार को निम्न या उपभू ज्वार तथा अधिकतम दूरी वाले ज्वार को उच्च या अपभू ज्वार कहा जाता है

(6) अयनवृत्तीय और विपुवत रेखीय ज्वार –

सूर्य के भांति चंद्रमा को भी पृथ्वी के साथ उत्तरायण एवं दक्षिणायण स्थिति होती रहती है! परिक्रमण करता हुआ चंद्रमा महीने में एक बार विषुवत रेखा के उत्तर में तथा एक बार दक्षिण में होता है! जब चंद्रमा का झुकाव उत्तर की ओर अधिकतम होता है तो वह कर्क रेखा पर लंबवत होता हैं तथा यही ज्वार केंद्र होता है! इसी प्रकार दक्षिणायन अवस्था में चंद्रमा मकर रेखा पर लंबवत होता है जिससे ज्वार आता है! 

ज्वार भाटा की उत्पत्ति (jwar bhata ki utpatti) –

महासागरीय जल में सूर्य तथा चंद्रमा के आकर्षण शक्ति के परिणामस्वरुप ही ज्वार की उत्पत्ति होती है! यद्यपि सूर्य, चंद्रमा से बहुत बड़ा है, तब भी चंद्रमा की आकर्षण शक्ति का प्रभाव सूर्य से दोगुना है! इसका प्रमुख कारण सूर्य का चंद्रमा की तुलना में पृथ्वी से अधिक दूर होना है! 

पृथ्वी पर 24 घंटे में प्रत्येक स्थान पर दो बार ज्वार भाटा आता है जब भी सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीधी रेखा में होते हैं तो उनकी सम्मिलित शक्ति के परिणामस्वरुप दीर्घ ज्वार  (Spring tide) का अनुभव किया जाता है! यह स्थिति सीजिगी की कहलाती है! ऐसा पूर्णिमा एवं अमावस्या को होता है! 

इसके विपरीत जब सूर्य, पृथ्वी तथा चंद्रमा संपूर्ण बनाते हैं तो चंद्रमा सूर्य का आकर्षण बल एक-दूसरे के विपरीत कार्य करता है, जिसके कारण निम्न ज्वार (Neap Tide) का अनुभव होता है! यह स्थिति कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष की सप्तमी या अष्टमी को देखी जा सकती है!  

पृथ्वी पर चंद्रमा के सम्मुख स्थित भाग पर चंद्रमा की आकर्षण शक्ति के कारण ज्वार आता है, किंतु इसी समय पृथ्वी के चंद्राविमुख भाग पर भी ज्वार आता है! इसका कारण पृथ्वी के घूर्णन को संतुलित करने के लिए अपकेंद्रीय बल का प्रभावशाली होना है! सामान्यतः प्रत्येक स्थान पर 12 घंटे के बाद जवाब आना चाहिए परंतु यह प्रतिदिन 26 मिनट की देरी से आता है, इसका प्रमुख कारण चंद्रमा का पृथ्वी के सापेक्ष गतिशील होना है! 

ज्वार भाटा के कारण –

महासागरीय जल में सूर्य तथा चंद्रमा के आकर्षण शक्ति के परिणामस्वरुप ही ज्वार की उत्पत्ति होती है! इसके अलावा पृथ्वी के घूर्णन का भी इसमें योगदान होता है

ज्वार भाटा के लाभ या महत्व (Benefits or importance of tides in hindi)-

jwar bhata के प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं –

(1) ज्वारीय तरंगों के साथ बहुत सारी मछलियां समुद्र के तट पर आ जाती हैं! 

(2) ज्वारीय तरंगों से विद्युत का उत्पादन किया जाता हैं! 

(3) ज्वारीय तरंगों के माध्यम से भारी जलपोत समुद्र के तट पर आ जाते हैं! 

(4) यह लहरें लौटते समय समुद्र की गंदगी को अपने साथ ले जाती है, जिससे तट स्वत: स्वछता स्वच्छ हो जाते हैं! 

(5) ज्वार के माध्यम से समुद्र के भीतर स्थित विभिन्न प्रकार के रत्न जैसे – शंख, सीप, मूंगा, मोती आदि समुद्र तट पर आ जाते हैं! 

ज्वार भाटा से हानि (jwar bhata se hani)-

(1) ज्वार भाटा के कारण लहरों की विपरीत दिशा में जाने पर जहाजों को परेशानी होती है! 

(2) ज्वार भाटा के कारण समुद्र के तटीय और निचले इलाकों में पानी भर जाता है और बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है! 

(3) ज्वार भाटा से समुद्री जीवों के आवासों में परिवर्तन हो सकता है, जिससे उनके जीवन पर बुरा असर पड़ सकता है।

(4) ज्वार की उच्च लहरें तटों को काटकर नुकसान पहुंचा सकती हैं, जिससे भूमि का कटाव होता है और तटरेखा पीछे हट सकती है।

प्रश्न :- दीर्घ ज्वार किसे कहते हैं?(dirgh jwar kise kahate hain)

उत्तर :- जब सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी तीनों एक ही सीध में होते हैं तो सूर्य और चंद्रमा की आकर्षण शक्तियां सम्मिलित रूप से पृथ्वी को प्रभावित करती हैं, जिससे अत्याधिक ऊंचे ज्वार उत्पन्न होते हैं! इन्हें दीर्घ ज्वार कहते हैं! 

प्रश्न :- ज्वार-भाटा 24 घंटे में कितनी बार आता है?

उत्तर :- पृथ्वी पर 24 घंटे में प्रत्येक स्थान पर दो बार ज्वार भाटा आता है जब भी सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीधी रेखा में होते हैं तो उनकी सम्मिलित शक्ति के परिणामस्वरुप दीर्घ ज्वार (Spring tide) का अनुभव किया जाता है! यह स्थिति सीजिगी की कहलाती है! ऐसा पूर्णिमा एवं अमावस्या को होता है!

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