पटल विरूपण क्या हैं? पटल विरूपण का संचालन

पटल विरूपण क्या हैं (patal virupan kya hai) –

पटल विरूपण के अंतर्गत वे सभी दीर्घकालीन घटनाएं शामिल हैं जिनके उत्पन्न होने में समय लगता है! ये घटनाएं अंतर्जात बलों द्वारा उत्पन्न होती है! पृथ्वी के आंतरिक भाग में क्षैतिज तथा उध्वार्धर गतियों के फलस्वरूप भू-पटल पर अनेक विकृतियां उत्पन्न होती है! धरातल के नीचे क्रियशील ये शक्तियां विवर्तनिक शक्तियां कहलाती है! 

पटल विरूपण बल पृथ्वी के अंदर धीरे-धीरे कार्य करते हैं और इनका प्रभाव हजारों और लाखों वर्षों के बाद दिखाई देता है! उदाहरण – बाल्टिक सागर का तट प्रति हजार वर्षों में 1.3 मीटर तक ऊपर उठ जाता है! पृथ्वी पर कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर तट या तो ऊपर उठ रहा है या नीचे धस रहा है! 

इन बलों के द्वारा भूपटल पर बड़ी-बड़ी भू-आकृति का निर्माण होता है! क्षैतिज बल के कारण धरातल पर संपीड़न, तनाव तथा अपरूपण होता है! संपीड़न से वलन तथा तनाव से भ्रंश की उत्पत्ति होती है! लंबवत बलों से तटीय भागों में निमज्जन तथा उन्मजज्न की क्रियाएं होती है! 

क्षेत्रीय दृष्टिकोण से पटल भी रोकने वालों को निम्नलिखित दो वर्गों में बांटा जाता है –

(1) महादेशजनक बल (Epeirogentic force) 

(2) पर्वत निर्माणकारी बल (orogenetic forces) 

(1) महादेशजनक बल (Epeirogentic force in hindi) – 

अग्रेजी का Epeirogentic शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्दों से बना हैं, एपीरो (Epeirog) जिसका शाब्दिक अर्थ ‘महाद्वीप’ तथा जेनेसिस (Genesis) जिसका शाब्दिक अर्थ ‘उत्पत्ति’ होता हैं! अर्थात महाद्वीपों की उत्पत्ति से संबंधित बलों को महादेशजनक बल कहते हैं! यह उत्थान अथवा उन्मजन तथा अधोन्मुखी अथवा निमज्जन नामक दो प्रकार के बल होतें हैं! 

(2) पर्वत निर्माणकारी बल (orogenetic forces in hindi) –

अंग्रेजी का Orogenetic शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्द के योग से बना है! इसमें ओरोज का अर्थ ‘पर्वत’ और जेनेसिस का अर्थ है ‘उत्पत्ति’ हैं! अर्थात ओरोजेनिक बल पर्वतों के निर्माण संबंधित है! 

पर्वत निर्माणकारी बल क्षैतिज दिशा में कार्य करते हैं! अतः इन्हें क्षैतिज बल अथवा स्पर्श रेखीय बल भी कहते हैं!पर्वत निर्माणकारी बल दो रूपों में कार्य करता है – तनाव और संपीडन! 

(A) तनाव – 

जब दो क्षैतिज दो विपरीत दिशाओं से क्रियाशील होते हैं तो उनके प्रभाव से तनाव उत्पन्न होता है! परिणामस्वरूप इसे तनावमूलक बल के नाम से पुकारा जाता है! चट्टानों में तनाव उत्पन्न होने से भ्रंश, दरार तथा चटकन आदि पडते हैं! 

(B) संपीड़न – 

जब दो क्षैतिज बल एक ही दिशा में या दो दिशाओं से आमने-सामने कार्य करते हैं तो संपीड़न होता है! इसे संपीड़नात्मक संचलन कहते हैं! संपीड़न के कारण चट्टानों में वलन तथा संवलन पड़ जाते हैं! यही कारण है कि क्षेत्रीय संचलन को पर्वत संचलन कहते हैं! गिलबर्ट ने पर्वत निर्माण की प्रक्रिया को पवर्तन नाम दिया है! 

पटल विरूपण में शामिल प्रक्रियाएँ –

पटल विरूपण (Plate Deformation) में मुख्यतः निम्नलिखित प्रक्रियाएँ शामिल होती हैं –

(1) संगठनात्मक तनाव (Tectonic Stress) –

यह प्रक्रिया पृथ्वी की पपड़ी में तनाव उत्पन्न करती है, जो अक्सर टेक्टोनिक प्लेटों के टकराने, अलग होने या स्लाइड करने से होती है।

(2) फोल्डिंग (Folding) –

जब दो टेक्टोनिक प्लेटें आपस में टकराती हैं, तो पपड़ी की परतें मोड़ जाती हैं। इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप पर्वत श्रृंखलाएँ और अन्य भूआकृतिक संरचनाएँ बनती हैं।

(3) फॉल्टिंग (Faulting) –

यह प्रक्रिया तब होती है जब तनाव के कारण पृथ्वी की सतह पर दरारें या फॉल्ट लाइन्स उत्पन्न होती हैं। इन फॉल्ट लाइनों पर प्लेटों के बीच असमान गति हो सकती है, जिससे भूकंप उत्पन्न हो सकते हैं।

(4) मेटामॉरफिज़्म (Metamorphism) –

इस प्रक्रिया में, उच्च दबाव और तापमान के कारण पपड़ी की चट्टानों का गुणधर्म बदल जाता है, जिससे नई प्रकार की चट्टानें बनती हैं।

(5) व्रैपिंग (Warping) –

इसमें पृथ्वी की पपड़ी का एक बड़े क्षेत्र का धीमा और समान रूप से वक्रण (वरन) होता है, जो आमतौर पर हल्के से लेकर मध्यम तनाव के कारण होता है।

इन प्रक्रियाओं से पटल की भौतिक संरचना में बदलाव आता है और ये भूगर्भीय घटनाओं जैसे भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट, और पर्वत निर्माण के लिए जिम्मेदार होती हैं।

पटल विरूपण बलों द्वारा निर्मित संरचनाएं –

पटल विरूपणी बलों से भूपृष्ठ में संपीड़न तथा तनाव पैदा होता है, जिससे भ्रंश एवं वलन पैदा होते हैं!

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