मृदा अपरदन क्या हैं? मृदा अपरदन के प्रभाव

मृदा अपरदन क्या हैं (mrada apardan kya hai) –

मृदा अपरदन एक भौतिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा मृदा पदार्थ एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचते हैं! सामान्यतः भूमि की ऊपरी सतह पर कृषि योग्य मिट्टी की 15 से 25 सेमी. परत को हम मृदा कहते हैं! यह पौधों की वृद्धि और विकास के लिए आवश्यक पोषक तत्वों का भंडार है! मृदा अपरदन के प्रभाव बहुत हानिकारक हैं!

प्रतिवर्ष कुछ प्राकृतिक शक्तियों, जैसे – जल तथा वायु द्वारा मृदा की ऊपरी परत वार्ड का एक स्थान से दूसरे स्थान पर एकत्रित होती रहती है इससे अधिकांश पोषक पदार्थ बर्दाश्त से बाहर कर नष्ट हो जाते हैं जल द्वारा मृदा का कटकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जमा होने को कहते हैं अन्य शब्दों में कानों के प्रथम तथा परिवहन एवं अन्य जमा होने को मृदा अपरदन या मृदा क्षरण कहते हैं! 

मृदा अपरदन के प्रभाव (mrida apardan ke prabhav) – 

प्रायः मृदा अपरदन के कारण उर्वरता की वार्षिक हानि फसलों द्वारा प्रयोग की गई उर्वरता से लगभग 20 गुना अधिक है! मृदा उथली हो जाती है क्योंकि पानी ऊपर की मृदा को लगातार बहाकर ले जाता है अतः भूमि की उत्पादकता कम हो जाती हैं जिससे जान और माल दोनों की प्रतिवर्ष हानि होती है! नदियों की जल धारण क्षमता कम होने से प्राय संपूर्ण व्यवस्था में भंग हो जाती है! मृदा अपरदन के प्रभाव इस प्रकार हैं –

(1) भूमि निम्नीकरण –  

हमारी खाद्य एवं पर्यावरण सुरक्षा के लिए भूमि निम्नीकरण एक खतरा है! देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 45% भाग विभिन्न निम्नलिखित कारकों से निर्मित हो चुका है, जिसमें से 65% अधिक भूमि निम्नीकरण जल एवं वायु अपरदन से होता है! 

(2) बाढ़ आना – 

मृदा अपरदन से नदियों, नालों, जलाशयों एवं समुद्र में सिल्ट के लगातार जमा होने से इनमें पानी को बहाकर ले जाने एवं एकत्र करने की क्षमता कम हो जाती है! अतः वर्षा का पानी नदी एवं नालों से उफनकर बाढ़ का रूप ले लेता है, जिससे आसपास के क्षेत्र में तबाही होती है! जलाशयों एवं झीलों में सिल्ट जमा होने से इनकी जल संचयन क्षमता कम हो जाती है, जिससे वर्षा के बाद आवश्यक जलापूर्ति की परेशानी उत्पन्न होती है, समुद्र में सिल्ट जमा होने से समुद्री जहाजों के मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं! 

(3) मृदा उत्पादकता में हास – 

मृदा अपरदन से उपजाऊ मृदा की पृष्ठ सतह के कटकर बह जाने से पादक पोषक तत्व का भी हा्स होता है तथा मृदा के महीन कण भी विस्थापित हो जाते हैं! इसी प्रकार वायु अपरदन के प्रभाव से मृदा की ऊपरी सतह पर कव उर्वर रेतीली परत जमा हो जाने से अनुत्पादक आवरण बनता है! अतः मृदा अपरदन से प्रभावित मृदा की उत्पादकता निरंतर घटती रहती है! मृदा की गहराई कम होने से उपज में सार्थक कमी होती है!  

(4) वनस्पति आच्छादन में कमी – 

मृदा अपरदन से ऊपरी उपजाऊ सतह के कट जाने से वनस्पति आच्छादन में भी कमी आ जाती है! अधोसतह में जल आसानी से प्रवेश नहीं कर पाता, जिससे विशेष रूप से असिंचित क्षेत्रों में आगामी फसल के लिए जल और नमी संचित नहीं हो पाती है! वायु अपरदन से बीजों के अंकुरण एवं वनस्पति आवरण रेत से दब जाते हैं, जिससे वनस्पति आच्छादन में निरंतर कमी होती रहती है!  

(5) सड़क और जलमार्ग में अवरोध –

पर्वतीय एवं मैदानी क्षेत्रों में मृदा अपरदन सड़क एवं रेलमार्ग में अवरोध पैदा होता है! ऊपरी क्षेत्रों से बहकर आने वाला पानी सड़कों को काट देता है, रेल की पटरी उखाड़ देता है या इतनी सिल्ट एवं सिलाखंड जमा हो जाते हैं कि रेल एवं सड़क आवागमन बुरी तरह से अवरुद्ध हो जाता हैं! तेज तूफान एवं आंधियों से भी सड़क एवं रेलमार्ग पर रेत जमा हो जाने से मार्ग अवरुद्ध हो जाता हैं! 

(6) जलाशय, जलमार्ग,झील एवं बंदरगाहों पर प्रभाव – 

मृदा क्षरण द्वारा नष्ट हुई मिट्टी हमारे तालाब एवं बांधों में एकत्रित होकर उनकी पानी रखने की क्षमता को घटाती है! इसे एकत्रित पानी का उपयोग अधिकतर खेती के उस समय सिंचाई करने में होता है जब वर्षा नहीं होती! उधर बंदरगाहों पर जहां से विदेशी व्यापार पानी के जहाज द्वारा किया जाता है! मिट्टी एकत्रित होने पर, जहाजों के आने-जाने को अवरुद्ध करती है! अतः इस प्रकार भूमिका चरणों में अनेक क्षेत्रों में अधिक हानि पहुंचाता है! 

(7) जैव विविधता का हा्स –

जैव विविधता का हा्स आज पूरे संसार में मुख्य समस्या हैं! भारत की जैव विविधता अनोखी हैं! देश की जैव विविधता में मृदा अपरदन से अभी तक 20% का हा्स हो चुका है! मृदा अपरदन से बीजों के साथ-साथ मृदा के पोषक तत्व भी पानी में बह जाते हैं! इस प्रकार जैव विविधता का हा्स होता है! 

(8) जलापूर्ति पर प्रभाव – 

भूमि की ऊपरी सतह जो चरण के फल स्वरूप नष्ट हो जाती है अपने नीचे की या 2 सत्रह को खुला कर देता है यहां सट्टा आने वाली फसल के लिए अपने अंदर जल का संचयन नहीं कर पाती साथ ही साथ इस की ऊपरी सतह की बनावट भी इस प्रकार की हो जाती है कि वर्षा के दिनों में जल का इसके द्वारा संचार हो पाता फल स्वरुप नीचे की सतह में भी पानी का एकत्रीकरण नहीं हो पाता! 

(8) कृषि की विभिन्न क्रियाओं में बाधाएं – 

भूमि के ऊपर जो भूपरिष्करण क्रियाएं की जाती है! भूमि के कटाव से उनमें बाधा पड़ती है, क्योंकि भूमि की ऊपरी मुलायम सतह बहकर नष्ट हो जाती है और नीचे की कठोर सतह में भूपरिष्करण की क्रियाएं सुविधाजनक नहीं हो पाती! यदि भूमि के कटाव को रोका ना जाए, तो कुछ समय बाद साधारण कटाव की नालियां गहरे नाले के रूप में बदल जाती है एवं अंत में खंड्ड का रूप धारण कर लेती है जो भूमि पर प्रत्येक कृषि कार्य के लिए बाधक होते हैं! 

(9) सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति पर प्रभाव – 

उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि मृदा क्षरण से मृदा की उपजाऊ शक्ति नष्ट होती है फलस्वरुप फसलों की उपज कम होती है! अतः किसानों की आर्थिक दशा खराब हो जाती है! साथ-साथ इसका प्रभाव समाज के दूसरे वर्ग के लोगों पर भी पड़ता है क्योंकि जब किसी आवश्यक फसल की उपज कम होगी तो उसके मूल्य में वृद्धि हो जाएगी! 

साथ-साथ मृदा का क्षरण होने पर उसका मूल्य भी गिर जाएगा एवं ऊंची नीची भूमियों का दृश्य भी आकर्षक नहीं होता हैं! अगर इस प्रकार की भूमियों में खेती करते रहे तो विभिन्न कृषि क्रियाओं पर लागत में इतनी आ जाती है कि आय से अधिक व्यय हो जाता है! अत: यह कार्य अर्थहीन होता है! 

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