ग्लोबल वार्मिंग क्या है? ग्लोबल वार्मिंग के कारण एवं प्रभाव, लाभ-हानि

ग्लोबल वार्मिंग क्या है (what is global warming in hindi) –

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वैश्विक स्तर पर मानवीय क्रियाकलापों द्वारा विकिरण या ऊष्मा संतुलन में परिवर्तन हो रहा है, जो भूमंडलीय उष्मन तथा उससे जनित भूमंडली पर्यावरण परिवर्तन के रूप में विश्व के समक्ष समस्या उत्पन्न कर रहा है! सौरमंडल में पृथ्वी की सतह के करीब के वातावरण के औसत तापमान में वृद्धि को वैश्विक तापन या ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं, वैश्विक तापन के कारण वैश्विक जलवायु प्रतिरूप में परिवर्तन आ रहा है! सामान्यतः मानव क्रियाओं द्वारा उत्सर्जित हरित गृह गैसों में वृद्धि के परिणामतः उत्पन्न ताप वृद्धि को वैश्विक तापन कहते हैं! 

ग्लोबल वार्मिंग का अर्थ (global warming in hindi meaning) –

ग्लोबल वार्मिंग का अर्थ है कि पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि होना, जिसके कारण मौसम में परिवर्तन हो रहा और पृथ्वी के तापमान में हो रही! इस वृद्धि के परिणामस्वरुप बारिश के तरीकों में बदलाव, हिमखंडो और ग्लेशियर के पिघलने से समुद्र के जलस्तर में वृद्धि और वनस्पति व जीव जंतुओं पर प्रभाव के रूप में सामने आ सकते हैं! विगत 100 वर्षों में पृथ्वी का औसत तापमान 1 डिग्री सेंटीग्रेड बढ़ गया है! 

ग्लोबल वार्मिंग के कारण (global warming ke karan) –

(1) ग्रीन हाउस प्रभाव –

ग्रीन हाउस इफेक्ट को हरित गृह प्रभाव भी कहा जाता हैं! यह एक प्राकृतिक घटना हैं, परंतु वर्तमान में इसके समय एवं मात्रा में परिवर्तन हो गया हैं जिससे वैश्विक तापन में वृद्धि हो रहीं हैं! ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ने के कारण तापमान में वृद्धि होती हैं! 

(2) जलवाष्प – 

जलवाष्प सूर्यातप के कुछ अंश को ग्रहण कर धरातल पर सूर्यातप की मात्रा को कम करता है! यह पार्थिव विकिरण को अवशोषित कर कार्बन डाइऑक्साइड की भांति हरित गृह प्रभाव उत्पन्न करता है! मानव जलवाष्प उत्सर्जन हेतु प्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार नहीं माने जाते हैं, क्योंकि वे जलवाष्प की उतनी मात्रा उत्सर्जित नहीं करते जिससे वातावरण के सांद्रण में महत्वपूर्ण परिवर्तन हो जाए! हालांकि वातावरण में जलवाष्प की मात्रा बढ़ने का कारण कार्बन डाइऑक्साइड एवं अन्य हरित गृह गैसे भी है, जिनसे कारण पौधों के वाष्पोत्सर्जन की दर में तेजी आ जाती है! 

(3) कार्बन डाइऑक्साइड – 

कार्बन डाइऑक्साइड गैस वैश्विक तापमान में लगभग 60% की भागीदारी करती है! यह एक प्राथमिक हरित गृह गैस है जो कि मानवीय क्रियाओं द्वारा उत्सर्जित होती है! कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण में प्राकृतिक रूप से पृथ्वी के कार्बन चक्र के रूप में मौजूद रहती है! यह एक प्रमुख ताप अवशोषक गैस हैं! वातावरणीय कार्बन डाइऑक्साइड में कोई परिवर्तन वातावरण के तापमान को परिवर्तित कर सकता है!

(4) क्लोरो फ्लोरो कार्बन (CFC) – 

एयर कंडीशनर और रेफ्रिजरेटर के अत्यधिक उपयोग के कारण वातावरण में सीएफ़सी की मात्रा में वृद्धि हो रही हैं जो वायुमंडलीय ओजोन परत को प्रभावित करती है! ओजोन परत पृथ्वी की सतह को सूर्य से निकलने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों से बचाती है। क्लोरोफ्लोरो कार्बन के कारण ओजोन परत की मोटाई में कमी आ रही है, जिससे पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है। 

(5) वनों का हा्स –

पौधे ऑक्सीजन का मुख्य स्रोत हैं! वे कार्बन डाइऑक्साइड को ग्रहण करते और ऑक्सीजन को छोड़ते हैं जिससे पर्यावरण संतुलन बना रहता है! कई घरेलू और व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए वनों की कटाई की जा रहीं है! इससे पर्यावरण असंतुलन पैदा हो गया है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा मिल रहा है! 

(6) वाहनों का उपयोग –

आजकल बहुत कम दूरी के लिए भी वाहनों के उपयोग किया जाता हैं, जिससे विभिन्न गैसों का उत्सर्जन होते हैं! वाहनों को चलाने के लिए जीवाश्म ईंधन का उपयोग किया जाता हैं जो वातावरण में बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य विषाक्त पदार्थों का उत्सर्जन करते हैं जिसके परिणामस्वरूप तापमान में वृद्धि होती है! 

ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव (global warming ke prabhav) –

वनों के विनाश से जहां वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ती गई, वहीं ऑक्सीजन की मात्रा घटती गई! परिणामस्वरूप वायुमंडलीय तापमान में वृद्धि हुई, क्योंकि कार्बन डाइऑक्साइड वह गैस है जो कि पृथ्वी से परावर्तित पार्थिव विकिरण के लिए पारदर्शी नहीं होती हैं! इससे तापमान बढ़ता है और जलवायु परिवर्तन होता है! इतना ही नहीं, जहां जलवायु शुष्क होती है, वहां रेगिस्तान भी बढ़ते हैं! वैश्विक तापन के परिणाम निम्नलिखित रूपों में सामने आए हैं –

(1) बर्फ का पिघलना – 

जब भूमंडलीय तापमान बढ़ता है, तो इसका प्रभाव बर्फ के पिघलने के रूप में सामने आता है! तापमान के हिमांक से ऊपर चले जाने पर हिमाच्छादित क्षेत्र पिघलने लगते हैं! ध्रुवों पर जमी बर्फ के पिघलने से पर्यावरण और जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है! विश्व के कई क्षेत्रों में ग्लेशियर के पिघलने की प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है! 

हिमालय भी इससे अछूता नहीं रहा! ग्लेशियर मीठे जल के स्रोत होते हैं, जब यह पिघल जाएंगे, तो मीठा जल का अकाल पड़ेगा ही, पेयजल में भी लवणों की मात्रा बढ़ जाएगी! बर्फ के ग्लेशियर पिघलने से दोहरी समस्या उत्पन्न होती है! पहले तो बाढ़ आती है, बाद में सूखे की स्थिति निर्मित होती है!  

(2) समुद्र तल का ऊपर उठना –

जब ग्लेशियर पिघलना प्रारंभ होते हैं तो पिघला हुआ पानी पहले नदियों में आता है और उसके बाद नदियों से होकर सागरों में मिल जाता है! इससे समुद्र का जलस्तर बढ़ने लगता है! पूर्व की तुलना में आज समुद्रों के तल के ऊपर उठने का मुख्य कारण ग्लेशियर का पिघलना ही है! 

वैज्ञानिकों के अनुसार वर्ष 1993 से 2003 तक समुद्र तल में 3 मिलीमीटर की गति से उठान दर्ज की गई है और यदि तापमान में होने वाली वृद्धि से बर्फ का पिघलना इसी प्रकार जारी रहा, तो वर्ष 2100 तक समुद्र तल 28 से 43 मीटर तक ऊपर उठ सकता है!  

(3) महासागरीय धाराओं में परिवर्तन – 

वैश्विक तापन   का प्रभाव महासागरीय धाराओं में परिवर्तन के रूप में दृष्टिगोचर होता है, क्योंकि इससे महासागरीय जल के तापमान, लवणता तथा घनत्व आदि में परिवर्तन आता है! इससे महासागरीय धाराओं की गति, दिशा एवं आकार प्रभावित होता है! जब धाराओं का प्रवाह चक्र प्रभावित या परिवर्तित होता है, तो उष्मा के हस्तांतरण की प्रक्रिया भी बाधित होती है! 

(4) वर्षा के प्रारूप में परिवर्तन – 

वैश्विक तापन का एक प्रभाव यह भी सामने आता है कि इससे ध्रुवीय क्षेत्रों के तापमान में अधिक वृद्धि होती है, बजाय उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के! इससे वर्षा की पेटियों का ध्रुवों की ओर विस्थापित होने का खतरा बढ़ जाता है! इससे वर्षा की गहनता और तीव्रता बढ़ती है! फलतः शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में विनाशकारी तूफान और बाढ़ आदि के खतरे भी बढ़ जाते हैं! 

(5) ग्लोबल वार्मिंग का कृषि पर प्रभाव (global warming ka krishi par prabhav) – 

वैश्विक तापन के कृषि पर व्यापक दुष्प्रभाव पड़ते हैं! तापमान बढ़ने से जहां पौधों में नमी कम हो जाती है, वही भूमि की आर्द्रता में कमी होने से ऐसे पौधे ठीक से पनप नहीं पाते हैं, जिन्हें ज्यादा नमी एवं जल की आवश्यकता होती है! अधिक तापमान के कारण उन फसलों के नष्ट होने का खतरा बढ़ जाता है, जिन्हें कीट पतंगों से खतरा होता हैं! तापमान वृद्धि होने पर पैदा हुए कीट पतंगों पर सामान्य कीटनाशकों का प्रभाव कम पड़ता है! फलतः फसलों को नुकसान पहुंचता है! 

(6) पर्यावरण पर ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव (paryavaran par global warming ka par prabhav) – 

वैश्विक तापन का पर्यावरण पर बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा हैं!  वैश्विक तापन के परिणामस्वरूप हिमनद पिघल रहें हैं, समुद्रों के जलस्तर में वृद्धि हो रहीं हैं, महासागरीय धाराओं की दिशाओं में परिवर्तन हो रहा हैं, वर्षा के प्रतिरूप में परिवर्तन हो रहा हैं, फसलों पर कीटों का प्रकोप बढ़ रहा हैं, कृषि उत्पादन में कमी हो रही हैं, जंगलों में आग का खतरा बढ़ रहा हैं, मिट्टी में नमी की कमी हो रही हैं तथा रेगिस्तानों का प्रसार हो रहा हैं, आदि जैसे अनेक प्रभाव देखने को मिल रहें हैं! 

(7) समाज पर ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव (samaj par global warming ka par prabhav) – 

वैश्विक तापन एक पर्यावरणीय घटना होने के साथ साथ, एक सामाजिक घटना भी हैं, यह समाज के तानेबाने को प्रभावित कर सकतीं हैं! वैश्विक तापन के कारण समुद्रों के जलस्तर में वृद्धि होने से तटीय कृषियोग्य भूमि जलमग्न हो जाएगी, जिससे बहुत से देशों खाद्यान्न संकट उत्पन्न हो सकता हैं! वर्षा के प्रतिरूप में परिवर्तन होने से बहुत से देशों में गरीबी में वृद्धि हो सकती हैं!  

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ग्लोबल वार्मिंग के लाभ और हानि (global warming ke labh aur hani) –

ग्लोबल वार्मिंग के लाभ (global warming ke labh) –

(1) वर्तमान अप्रयुक्त तेल और गैस भंडार उपलब्ध हो सकते हैं! 

(2) लंबे समय तक बढ़ते मौसम का मतलब कुछ क्षेत्रों में कृषि उत्पादन में वृद्धि हो सकता है! 

(3) पूर्व में बर्फीले कनाडाई आर्कटिक द्वीपसमूह के माध्यम से उत्तर पश्चिमी मार्ग परिवहन के लिए संभवतः खुल सकता है! 

(4) संभवतः अगले हिमयुग को रोका जा सकता है! 

ग्लोबल वार्मिंग से हानियाँ (global warming se haniyaan) –

(1) तटीय कृषियोग्य भूमि बेकार हो जाएगी! 

(2) पीने के लिए स्वच्छ जल की कमी हो जाएगी! 

(3) कृषि उत्पादन में भी कमी हो जाएगी! 

(5) महाद्वीपों के तटीय क्षेत्र जलमग्न हो जाएगें, जिससे वहां रहने वाले लोगों का पलायन करना होगा! 

(6) पृथ्वी की प्राकृतिक सौंदर्य में कमी हो जाएगी और पर्यावरण असंतुलन जैसी स्थितियों का सामना करना पड सकता हैं! 

ग्लोबल वार्मिंग से बचाव के उपाय (global warming se bachav ke upay) –

(1) औद्योगिक इकाइयों की चिमनियों से निकलने वाला धुआँ हानिकारक है और इनसे निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड गर्मी बढ़ाती है इन इकाइयों में प्रदूषण रोकने के उपाय करने होंगे! 

(2) वाहनो से निकलने वाले धुएँ का प्रभाव कम करने के लिए पर्यावरण मानकों का सख्ती से पालन करना होगा! उद्योग और खासकर रासायनिक इकाइयों से निकलने वाले कचरे को फिर से उपयोग में लाने लायक बनाने की कोशिश करनी चाहिए! प्राथमिकता के आधार पर पेड़ों की कटाई रोकने चाहिए और जंगलों के संरक्षण पर भी ध्यान देना चाहिए! 

(3) अक्षय ऊर्जा के उपयोग पर ध्यान देना होगा! अगर कोयले से बनने वाले बिजली के स्थान पर पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा और पनबिजली पर उपयोग किया जाए तो वातावरण को गर्म करने वाली गैसों पर नियंत्रण पाया जा सकता है, साथ ही जंगलों में आग लगने पर भी रोक लगाई जा सकती है! 

(4) वैज्ञानिक और पर्यावरणविदों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग में कमी के लिए मुख्य रूप से सीएससी गैसों का उत्सर्जन को रोकना होगा इसके लिए फ्रीज, एयर कंडीशनर और दूसरे कॉलिंग मशीनों का इस्तेमाल कम करना चाहिए क्या ऐसी मशीनों का उपयोग करना चाहिए जिससे सीएफसी गैस से कम निकले! 

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