पारिस्थितिकी क्या है (what is ecology in hindi) –
पारिस्थितिकी वह विज्ञान है जिसके अंतर्गत समस्त जीवों तथा भौतिक पर्यावरण के मध्य उनके अंतर संबंधों का अध्ययन किया जाता है
पारिस्थितिकी तंत्र क्या है (what is ecosystem in hindi) –
पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem) शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग प्रयोग ए. जी. टान्सले द्वारा 1935 में किया गया था! सामान्य रूप से जीवमंडल के सभी संघटकों के समूह, जो पारस्परिक क्रिया में सम्मिलित होते हैं, को पारिस्थितिकी तंत्र कहा जाता है! यह पारितंत्र प्रकृति की क्रियात्मक इकाई है जिसमें इसके जैविक और अजैविक घटकों के बीच होने वाली जटिल क्रियाएं सम्मिलित होती है!
पारितंत्र एक ऐसी इकाई होती है जिसके भीतर वे सभी जैविक समुदाय आ जाते हैं जो कि एक निर्दिष्ट क्षेत्र के भीतर एक साथ कार्य करते हैं तथा भौतिक पर्यावरण के साथ इस तरह परस्पर किया करते हैं कि ऊर्जा का प्रवाह स्पष्टतः निश्चित जैविक संरचनाओं के भीतर होता है और जिसमें विभिन्न तत्वों का सजीव तथा निर्जीव अंशों में चक्रण होता रहता है!
पारिस्थितिकी तंत्र की विशेषताएं (paristhiti tantra ki visheshta) –
पारिस्थितिकी तंत्र की विशेषता इस प्रकार हैं –
(1) पारिस्थितिकी तंत्र की उत्पादकता उसमें ऊर्जा की सुलभता पर निर्भर करती है!
(2) पारिस्थितिकी तंत्र के विभिन्न प्रकार ऊर्जा द्वारा संचालित होते हैं!
(3) पारिस्थितिकी तंत्र खुला तंत्र है जिसमें पदार्थों तथा उर्जा का सतत निवेश तथा बहिर्गमन होता है!
(4) पारिस्थितिकी तंत्र प्राकृतिक संसाधन तंत्र होते हैं!
(5) पारिस्थितिकी तंत्र संचरित एवं सुसंगठित तंत्र होता हैं!

पारिस्थितिकी तंत्र के घटक (paristhiti tantra ke ghatak) –
पारिस्थितिकी तंत्र के दो घटक होते हैं – अजैविक घटक और जैविक घटक!
(1) अजैविक घटक (ajaivik ghatak) –
पारितंत्र के अजैविक घटक काफी महत्वपूर्ण होते हैं! अजैविक घटकों में मृदा, जल, वायु तथा प्रकाश ऊर्जा आदि आते हैं! इनमें बहुसंख्यक अकार्बनिक पदार्थ, जैसे – ऑक्सीजन, नाइट्रोजन आदि तथा रासायनिक एवं भौतिकीय प्रक्रियाएं (भूकंप, बाढ़, दावानल, जलवायु तथा मौसम दशाएं) भी शामिल हैं!
(2) जैविक घटक (jaivik ghatak) –
जैविक घटक के अंतर्गत उत्पादक, उपभोक्ता तथा अपघटक आते हैं! उत्पादक स्वपोषित होते हैं, जो कि साधारणतया क्लोरोफिल युक्त जीव होते हैं और अकार्बनिक अजैविक पदार्थों को सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में संचित कर अपना भोजन बनाते हैं! जैविक घटकों को मुख्यतः तीन प्रकार से विभाजित किया जा सकता है – उत्पादक, उपभोक्ता और अपघटक!
पारिस्थितिकी तंत्र के प्रकार (paristhiti tantra ke prakar) –
उपयोग के आधार पर पारिस्थितिकी तंत्र दो प्रकार का होता है – कृषित पारितंत्र एवं अकृषित पारितंत्र!
(1) कृषित पारिस्थितिकी तंत्र (cultivated ecosystem)-
कृषित पारिस्थितिकी तंत्र को प्रमुख फसलों के आधार पर कई उपवर्गों में विभाजित किया जा सकता है! जैसे – गेहूं क्षेत्र पारिस्थितिकी तंत्र, चावल क्षेत्र पारिस्थितिकी तंत्र क्षेत्र, चारा पारिस्थितिकी तंत्र, गन्ना क्षेत्र पारिस्थितिकी तंत्र आदि
(2) अकृषित पारितंत्र (uncultivated ecosystem) –
अकृषित पारिस्थितिकी तंत्र के अंतर्गत वन पारिस्थितिकी तंत्र, ऊंची घास पारिस्थितिक तंत्र, बंजर भूमि पारिस्थितिकी तंत्र, दलदल क्षेत्र पारिस्थितिकी तंत्र आदि आते हैं
निर्माण के आधार पर पारिस्थितिकी तंत्र दो प्रकार का होता है – प्राकृतिक पारितंत्र एवं मानव निर्मित पारितंत्र!
प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र (prakritik paristhitik tantra) –
इसका समाज संचालन प्रकृति से होता है और जैविक घटकों का उदभव, विकास, विनाश, स्थानीय या क्षेत्रीय आधार पर प्राकृतिक पर्यावरण के तत्वों से नियंत्रित होता है! जहां से जैव उदभव, विकास एवं समस्त चक्रण और अनुक्रमण बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के चलते रहते हैं उस इकाई को प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र कहते हैं!
समस्त जैव जगत में मनुष्य सर्वाधिक बुद्धिमान प्राणी है! इसलिए उच्च तकनीक एवं नवीन अनुसंधान कर वह प्राकृतिक संसाधनों का शोषण करता रहा है! वह ऊर्जा और उष्मा पाने के लिए वन काटता है! मिट्टी में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करता है! वृहद यंत्र, खरपतवार-नाशक विषाक्त रसायनों को प्रयोग करता है!
वृहद यंत्र के उपयोग से कृषि, उद्योग, खनिज, परिवहन, व्यापार एवं वाणिज्य के क्षेत्र में उसने इतना परिवर्तन कर दिया है कि कृत्रिम पारिस्थितिकी तंत्र निर्माण हो गया है! अत: आर्थिक विकास के आधार पर इसे पांच उपवर्ग विभाजित किया जाता है!
पारिस्थितिकी तंत्र की क्रियाशीलता (paristhitik tantra ki kriyasheelta) –
पारिस्थितिकी तंत्र की क्रियाशीलता ऊर्जा प्रवाह के प्रारूप पर निर्भर करती है क्योंकि किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र के जीवित संघटको के सभी पक्ष ऊर्जा प्रभाव पर आश्रित होते हैं! ऊर्जा प्रभाव पारिस्थितिक तंत्र में जैविक एवं अजैविक पदार्थों के वितरण एवं संचरण में भी सहायक होता है!
ऊर्जा का प्रवाह एक दिशी मार्ग का अनुसरण करता है जबकि पदार्थों का गमन तथा संचरण सक्रिय मार्गो से संपन्न होता है! ऊर्जा का प्रवाह एवं प्रारूप ऊष्मागतिकी के प्रथम एवं द्वितीय द्वारा नियंत्रित होता है!
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