केन्द्र राज्य विधायी संबंधों (Center State Relations) की चर्चा कीजिए

केन्द्र राज्य संबंध (Center State Relations in hindi) –

भारतीय संविधान ने संघीय शासन प्रणाली को अपनाया है! संघ एवं राज्य के मध्य शक्तियों का विभाजन संघीय शासन प्रणाली का आधारभूत लक्षण है! भारतीय संविधान में केंद्र-राज्य संबंध  (Center State Relations) संघवाद की ओर उन्मुख और संघवाद की इस प्रणाली को कनाडा के संविधान से अपनाया गया है! 

भारतीय संविधान के भाग 11 (अनुच्छेद 245 से 263) एवं भाग 12 (अनुच्छेद 264 से 293) में केन्द्र-राज्य संबंधों (Center State Relations) की चर्चा की गई है! भारतीय संविधान में केंद्र तथा राज्य के मध्य विधायी, प्रशासनिक तथा वित्तीय शक्तियों का विभाजन किया गया है, परंतु न्यायपालिका को विभाजन की परिधि से बाहर रखा गया है केंद्र तथा राज्य के मध्य संबंधों का विवेचन निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर किया जाता है! 

केंद्र राज्य संबंध (Center State Relations types in hindi-

केंद्र और राज्य (Center State Relations) के संबंधों को निम्नलिखित बिंदुओं के आधार विभाजित किया जाता है

(1) विधायी संबंध (245 – 255) 
(2) प्रशासनिक संबंध (256 -261) 
(3) जल संबंधी विवाद (262) 
(4) अन्तराज्यीय परिषद (263) 
(5) वित्तीय संबंध (268 -293) 

(1) केंद्र एवं राज्य विधायी संबंध (Central and State Legislative Relations in hindi) – 

संविधान के भाग 11 में अनुच्छेद 245-255 तक केंद्र-राज्य के विधायी संबंधों की चर्चा की गई है इन विधायक संबंधों को हम निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर समझ सकते हैं! 

(१) केंद्र राज्य विधान का क्षेत्रीय विस्तार – 

संविधान में केंद्र और राज्यों को प्रदत्त शक्तियों के संबंध में स्थानीय सीमाओं को लेकर विधायी संबंध में निम्नलिखित तरीके से परिभाषित किया है –

(1) संसद संपूर्ण भारत या उसके किसी भी क्षेत्र के लिए कानून बना सकती हैं! 
(2) राज्य विधानमंडल संपूर्ण राज्य या राज्य क्षेत्र के लिए कानून बना सकती है! 
(3) केवल संसद को ‘अतिरिक्त क्षेत्रीय विधान’ बनाने का अधिकार है इस तरह संसद का कानून भारतीय नागरिक एवं उनकी विश्व में कहीं भी संपत्ति पर लागू होता है! 

(२) विधायी विषयों का बंटवारा – 

संविधान की सातवीं अनुसूची में केंद्र और राज्य के मध्य विधायी  विषयों के संबंध में निम्नलिखित त्रिस्तरीय व्यवस्था की गई है –

संघ सूची

इस सूची में उन विषय को शामिल किया जाता है जो राष्ट्रीय महत्व के हैं तथा जिन पर कानून बनाना एकमात्र अधिकार केंद्रीय विधायिका या संसद को प्राप्त है! इस सूची में इस समय कुल 100 विषय है! (मूलतः 97)  इस सूची के प्रमुख विषय रक्षा, बैंकिंग, विदेशी मामले, मुद्रा, बीमा, जनगणना आदि है! 

राज्य सूची – 

इस सूची में उन विषयों को शामिल किया गया है जो स्थानीय महत्व के हैं तथा जिन पर कानून बनाने का एकमात्र अधिकार राज्य विधान मडल को प्राप्त है लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में संसद भी कानून बना सकती है! इस सूची में शामिल विषयों की संख्या इस समय 61 है (मूलत:66 विषय) !  इस सूची के प्रमुख विषय लोकसेवा, कृषि, वन, पुलिस, स्थानीय शासन आदि है!

समवर्ती सूची –

समवर्ती सूची में शामिल विषयों पर संसद तथा राज्य विधानमंडल दोनों द्वारा कानून बनाया जाता है और यदि दोनों कानूनों में विरोध हो, तो संसद द्वारा निर्मित कानूनी माननीय होगा! इस सूची के प्रमुख विषय परिवार नियोजन, जनसंख्या नियंत्रण, समाचार पत्र, शिक्षा, विवाह आदि है! 

राज्य के विधायी मामलों पर केंद्रीय नियंत्रण – 

संविधान में राज्य के विधाई मामलों पर केंद्र का कुछ नियंत्रण स्थापित किया गया है, जो निम्नलिखित है –

(1) राज्यपाल कुछ विशेष प्रकार के विधेयकों को राष्ट्रपति की संस्तुति के लिए सुरक्षित रख सकता है! राष्ट्रपति को उन पर विशेष वीटो की शक्ति प्राप्त है! 

(2) राज्य सूची से संबंधित कुछ मामलों पर विधेयक केवल राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से ही विधानमंडल में पेश किया जा सकता है! 

(3) राष्ट्रपति वित्तीय आपातकाल की स्थिति में राज्य विधान मंडल द्वारा पारित धन या वित्त विधेयक को सुरक्षित रखने का निर्देश दे सकता है!  

राज्य सूची के विषयों पर संसद को कानून बनाने का अधिकार – 

केंद्र एवं राज्यों के बीच शक्तियों के बंटवारा की व्यवस्था सामान्य काल के लिए होती है  लेकिन असामान्य परिस्थितियों में बंटवारे की योजना या तो सुधारी जाती है या स्थगित कर दी जाती है! यह असामान्य परिस्थितियों इस प्रकार है –

(1) राष्ट्रीय हित में! 
(2) राष्ट्रीय आपातकाल! 
(3) राज्यों की सहमति से! 
(4) अंतर्राष्ट्रीय समझौते में! 
(5) राष्टपति शासन में! 

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