भारतीय राजनीति में दबाव समूह की भूमिका (bhartiya rajniti me dabav samuh ki bhumika) –
लोकतंत्र में लोकतंत्र की सफलता दबाव समूह के निष्पक्ष कार्य संचालन पर निर्भर करती है! यदि दबाव समूह स्वतंत्र और निष्पक्ष होकर कार्य सिद्धि का प्रयास करता है तो लोकतंत्र को सफल माना जाता है! कहा जाता है कि दुर्लभ राजनीतिक दल दबाव समूह के विकास में सहायक होते हैं!
जबकि शक्तिशाली राजनीतिक दल दबाव समूह को निर्मित नहीं होने देते परंतु भारत में लागू नहीं होता हैं! यहां न तो कोई राजनीतिक दल शक्तिशाली है और ना ही कोई दबाव समूह, क्योकि भारत में मुख्यतः दबाव समूह का निर्माण स्वयं राजनीतिक दलों द्वारा किया गया हैं! फलतः ये दबाव समूह मुख्यतः राजनीतिक दलों के माध्यम से ही सरकारी नीतियों को प्रभावित करने का प्रयास करते रहते हैं!
इसी संदर्भ में भारतीय राजनीति में दबाव समूह की भूमिका को निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत समझा जा सकता है –
(1) विभिन्न व्यावसायिक समूह के रूप में दबाव समूहों (जैसे अखिल भारतीय अध्यापक संघ या भारतीय प्रशासनिक सेवा संघ) आदि ने भी अपने-अपने व्यवसायिक समूह के पक्ष में सरकारी नीति को प्रभावित किया है और शासन व्यवस्था में इन समूहों के हितों को सुरक्षित रखा है!
(2) श्रमिक संघ के रूप में (इंटक, एटक, हिंद मजदूर सभा, यूनाइटेड ट्रेड यूनियन) आदि दबाव समूह श्रमिकों के हितों के रक्षार्थ सरकारी नीतियों को निरंतर प्रभावित करने का प्रयास करते हैं यद्यपि हाल ही के वर्षों में सरकार पर इनका प्रभाव कम हुआ है!
(3) विशिष्ट व्यापारिक समूह के रूप में एसोचैम एवं फिक्की जैसे दबाव समूह ने अपने हितों को लेकर सरकार पर सदैव दबाव बनाने का प्रयास किया है और काफी हद तक यह सफल भी रहे हैं! आर्थिक सुधारों के बाद सरकार पर इनके प्रभाव में काफी वृद्धि हुई है! परंतु यह कभी-कभी सरकार को अपने हितों के पक्ष में समग्र के हितों के विपरीत भी प्रभावित करते हुए प्रतीत होते हैं!
(4) जातीय संगठन के रूप में दबाव समूह की भूमिका को जाट संगठन द्वद्वारा आरक्षण की सुविधा प्राप्त करने में सफलता, अखिल भारतीय गुर्जर महापंचायत द्वारा आरक्षण हेतु सरकार पर संगठित दबाव; विभिन्न जातियों संगठनों द्वारा अपने जातीय हितों की पूर्ति हेतु किए गए प्रयास आदि के रूप में स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है!
(5) वर्तमान भारत में सामान्य हितों से संबंधित विशिष्ट सामाजिक मुद्दों को लेकर निर्मित दबाव समूह की भूमिका, जिसे मजदूर किसान शक्ति संगठन द्वारा सूचना के अधिकार की प्राप्ति में भूमिका, चिपको आंदोलन की भूमिका, किसान बिल, एलजीबीटी समूह आदि भी दबाव समूह की सकारात्मक भूमिका को परिलक्षित करते हैं!
भारतीय राजनीति में दबाव समूह की भूमिका का मूल्यांकन (bhartiya rajniti me dabav samuh ki bhumika ka mulyankan) –
भारतीय राजनीति में विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित उपरोक्त दबाव समूह की भूमिका के विश्लेषण के पश्चात यह स्पष्ट होता है कि इन्होंने भारतीय राजनीति को प्रभावित कर अपने समूह के विशिष्ट हितों की पूर्ति को कमोबेश सफलता प्राप्त की है और अपने-अपने समूह के हितों को सिद्ध करने के प्रयास में राजनीतिक निर्णय प्रक्रिया में संतुलन स्थापित करके भारतीय लोकतंत्र को मजबूत बनाया है!
परंतु राजनीतिक दलों के साथ दबाव समूह की प्रत्यक्ष संबद्धता भारत में सफल लोकतंत्र के लिए इनकी वास्तविक भूमिका के मार्ग में बाधक रही है क्योंकि राजनीतिक दलों ने इनको कमजोर किया है और ये सरकार पर पूर्ण सांगठनिक दबाव डाल पाने में सक्षम नहीं रहे हैं! इस तथ्य को कमजोर होते श्रमिक संगठन या गुमराह होते छात्र संगठन या कमजोर किसान संगठन के कारण उनके हितों की हो रही उपेक्षा के रूप में स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है!
अत: भारत में लोकतंत्र के कार्यचालन हेतु दबाव समूहों की भूमिका को और संगठित, स्वतंत्र तथा निष्पक्ष बनाए जाने की जरूरत है और यह कार्य राजनीतिक दलों एवं दबाव समूहों के मध्य प्रत्यक्ष संबद्धता को समाप्त करके ही संभव है और तभी भारतीय लोकतंत्र की सफलता के मार्ग में कदम और आगे बढ़ाया जा सकता है!
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भारतीय राजनीति में दबाव समूह की भूमिका के बारे में आप ने बहुत प्रशंसनीय जानकारी लिखी है। आप का दिल से धन्यवाद